मैंने विचार करके देखा है,
जिससे हम अपनी कोई बात पूछें,
ऐसा कोई पुरुष मेरी दृष्टिमें आया नहीं ! जिससे हम पूछें,
सलाह लें, ऐसा पुरुष हिन्दुओंमें,
मुसलमानोंमें, ईसाईयोंमें, कहीं भी हमारे देखने-सुननेमें आता नहीं ! कोई-कोई भाई कहते हैं
कि हमारे गुरुजी ऐसे हैं, पर वे उनकी समझमें हैं,
हमारी श्रद्धा बैठती नहीं ! पहले ‘कल्याण’ में बड़े जानकार लोगोंके लेख आते थे,
पर आजकल वैसे लेख लिखनेवाले भी नहीं दीखते ! विद्वत्ता भी पहले-जैसी
नहीं रही । पहले-जैसे विद्वान् अब देखनेमें नहीं आते । तत्त्वकी वास्तविक बातोंको जाननेवाले,
उसमें तत्परतासे समय लगानेवाले आदमी बहुत कम हैं । सत्संग करनेवाले
भी गहराईसे सोचते नहीं कि तत्त्व क्या है
? मैं यह बिल्कुल नहीं मानता
कि आपलोग योग्य नहीं हैं, बुद्धिमान् नहीं हैं । परन्तु आप इस विषयमें सोचते ही नहीं ।
जिस विषयमें आपका विचार ही नहीं, लक्ष्य ही नहीं, उस विषयमें आप आगे कैसे बढ़ोगे
? तत्त्वकी बात जाननेके
लिये तो बहुत-से लोग तैयार हो जायँगे,
पर भीतरसे जैसी लालसा होनी चाहिये, वैसी
लालसा मेरेको दीखती नहीं !
जैसे आजकल तरह-तरहके वैज्ञानिक आविष्कार हो रहे हैं, ऐसे
ही पारमार्थिक विषयमें भी आविष्कार हुए हैं, पर
उनको जाननेवाले बहुत कम हैं । जाननेकी इच्छा ही नहीं है ! इसलिये आपलोगोंसे प्रार्थना है कि इस विषयमें अपनी
उत्कण्ठा बढ़ाओ । पहलेकी अपेक्षा आजकल भगवान् सस्ते हैं,
पर जाननेवाले बहुत कम हैं ! जाननेकी उत्कण्ठा ही नहीं है ! आपलोग
तैयार हो जाओ तो मेरा भी उत्साह बढ़ेगा !
श्रोता‒भगवान्
दिखते नहीं, फिर उन्हें कैसे
मानें ?
स्वामीजी‒गीता कहती है‒‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता
७ । १९) ‘सब कुछ भगवान् ही हैं’ । वास्तवमें भगवान्के सिवाय दूसरा कोई दीखता ही नहीं ! किसीमें दीखनेकी ताकत ही
नहीं है । आप मानते नहीं तो हम क्या करें
? भगवान्के सिवाय आपको कोई मिलता
ही नहीं, भगवान् ही मिलते हैं । इसलिये हरदम खुशी रहनी चाहिये । जब कोई
प्यारा मित्र मिलता है तो मन खुश होता है । हमें हरदम ही मित्ररूपसे परमात्मा मिलते
हैं ! परमात्माके सिवाय और किसीमें मिलनेकी ताकत ही नहीं है ! भूख लगती है तो अन्नरूपसे
भगवान् आते हैं । प्यास लगती है तो जलरूपसे भगवान् आते हैं । थक जाते हो तो नींदरूपसे
भगवान् आते हैं । इसे मान लो आज अभी निहाल हो जाओगे !
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