श्रोता‒हमने ऐसा पढ़ा है कि द्वापरमें एक महीना साधन करनेसे जो परमात्माकी
प्राप्ति होती है, वह
कलियुगमें एक दिनमें साधन करनेसे हो सकती है । वह ऐसा कौन-सा साधन है, जो
हम एक दिनमें करें और हमें परमात्माकी प्राप्ति हो जाय ?
स्वामीजी‒परमात्मा दुर्लभ नहीं हैं,
उनकी प्राप्तिकी इच्छावाला आदमी दुर्लभ है । परमात्माके
मिलनेमें देरी नहीं है । देरी वास्तवमें अपनी चाहनामें है । परमात्मा दूर थोड़े ही
हैं ! परमात्मा जितने सस्ते हैं, उतनी सस्ती कोई चीज है ही नहीं ! उनकी प्राप्ति तत्काल हो सकती
है, दिनकी बात तो दूर रही ! परमात्मा सबके हृदयमें विराजमान हैं‒‘सर्वस्य चाहं हृदि
सन्निविष्टः’ (गीता १५ । १५) । जो हृदयमें स्थित है,
उसके मिलनेमें देरी क्या लगे
? अतः वास्तवमें
परमात्मप्राप्तिकी इच्छा दुर्लभ है, परमात्मा दुर्लभ नहीं हैं । उनकी इच्छा अनन्य होनी चाहिये ।
एक भरोसो एक
बल एक आस बिस्वास ।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास ॥
(दोहावली
२७७)
आपमेंसे कोई है तो बताये कि हमारा एक ही भरोसा है,
एक ही आशा है, एक ही विश्वास है
? वास्तवमें ऐसी इच्छा ही
दुर्लभ है, परमात्मा दुर्लभ नहीं हैं । परमात्माके समान सर्वव्यापक
दूसरी कोई चीज है ही नहीं । उनकी प्राप्ति एक दिनमें क्या,
एक क्षणमें हो सकती है ! परन्तु आपलोगोंकी दृष्टि भोग तथा
संग्रहकी तरफ है, परमात्माकी तरफ नहीं । आपमेंसे कोई बताओ कि परमात्माके
सिवाय हमारी और कोई इच्छा नहीं है । परमात्मप्राप्तिकी जोरदार इच्छा नहीं है,
हो जाय तो अच्छी बात है ! भगवान्के बिना हमारा कोई काम
अटकता है नहीं ! खा-पी लेते हैं, नींद आ जाती है, भगवान्की जरूरत क्या है
?
परमात्मासे नजदीक कोई चीज है ही नहीं ! परमात्मा
जितने नजदीक हैं, उतना नजदीक आपका शरीर भी नहीं है, प्राण
भी नहीं हैं, मन-बुद्धि भी नहीं हैं ! जो परमात्मा कभी
मिलेंगे, वे अब भी मिले हुए ही हैं । जो कभी आपसे अलग
होगा, वह अब भी अलग ही है । शरीर निरन्तर आपसे अलग हो रहा है । जितनी उम्र बीत गयी,
उतने आप शरीरसे अलग हो गये । क्या अब बालकपना पुनः आयेगा
? क्या बीते दिन पुनः आयेंगे
? कलका दिन भी क्या अब पुनः
आयेगा ? संसार तो गंगाजीके प्रवाहकी तरह निरन्तर बह रहा है,
फिर वह मिलेगा कैसे
? आज दिनतक संसार किसीको कभी
मिला नहीं और न कभी किसीको मिलेगा । परन्तु परमात्मा आपसे कभी अलग हुए नहीं,
अलग हो सकते नहीं । केवल उनसे दूरीका वहम है ।
परमात्मा भी मौजूद हैं और आप भी मौजूद हैं, फिर
देरी किस बातकी ? केवल चाहनाकी कमी है ।
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