मेरेको एक सज्जन मिले थे । वे कहते थे कि मैं राम-राम करता हूँ तो राम-नामका चारों
तरफ चक्कर दीखता है । ऊपर आकाशमें और सब जगह ही राम-राम दीखता है । पासमें,
चारों तरफ, दसों दिशाओंमें नाम दीखता है । पृथ्वी देखता हूँ तो कण-कणमें
नाम दीखता है, राम-राम लिखा हुआ दीखता है । कोई जमीन खोदता है तो उसके कण-कणमें
नाम लिखा हुआ दीखता है । ऐसी मेरी वृत्ति हो रही है कि सब समय,
सब जगह, सब देश, सब काल, सब वस्तु और सम्पूर्ण व्यक्तियोंमें राम-नाम परिपूर्ण हो रहा
है । यह कितनी विलक्षण बात है ! कितनी अलौकिक बात है !
भगवान् रामजीने लंकापर विजय कर ली । अयोध्यामें आ करके गद्दीपर विराजमान हुए तो
उस समय राजाओंने रामजीको कई तरहकी भेंट दी । विभीषणने रावणके इकट्ठे किये हुए बहुत
कीमती-कीमती रत्नोंकी माला बनायी थी । माला बनानेमें यही उद्देश्य था कि जब महाराजका
राज्यतिलक होगा, तब मैं भेंट करूँगा । इस तरहसे विभीषण वह माला लाया और समय पाकर
उसने महाराजके गलेमें माला पहना दी । महाराजने देखा कि भाई,
गहनोंकी शौक स्त्रियोंके ज्यादा होती है,
ऐसे विचारसे रामजीने वह माला सीताजीको दे दी । सीताजीको जब माला
मिली तो उनके मनमें विचार आया कि मैं यह माला किसको दूँ ! महाराजने तो मेरेको दे दी
। अब मेरा प्यारा कौन है ? हनुमान्जी पासमें बैठे हुए थे । हनुमान्जी महाराजपर सीतामाताका
बहुत सेह था, बड़ा वात्सल्य था और हनुमान्जी महाराज भी माँके चरणोंमें बड़ी
भारी भक्ति रखते थे । माँने हनुमान्जीको इशारा किया तो चट पासमें चले गये । माँने
हनुमान्जीको माला पहना दी । हनुमान्जी बड़े खुश हुए प्रसन्न हुए । वे रत्नोंकी ओर
देखने लगे । जब माँने चीज दी है तो इसमें कोई विशेष बात है‒ऐसा विचार करके एक मणिको
दाँतोंसे तोड़ दिया, पर उसमें भगवान्का नाम नहीं था तो उसे फेंक दिया । फिर दूसरी
मणि तोड़ने लगे तो वहाँपर बड़े-बड़े जौहरी बैठे थे । उन्होंने कहा‒‘बन्दरको तो अमरूद देना
चाहिये ! यह इन रत्नोंका क्या करेगा ? रत्नोंको तो यह दाँतोंसे फोड़कर फेंक रहा है ।’
किसीने उनसे पूछा‒‘क्यों फोड़ते हो ?
क्या बात है ? क्या देखते हो ?’ हनुमान्जीने कहा‒‘मैं तो यह देखता हूँ कि इनमें भगवान्का नाम
है कि नहीं । इनमें नाम नहीं है तो ये मेरे क्या कामके ?
इस वास्ते इनको फोड़कर देख लेता हूँ और नाम नहीं निकलता तो फेंक
देता हूँ ।’
उनसे फिर पूछा गया‒‘बिना नामके क्या तुम कुछ रखते ही नहीं ?’ हनुमान्जीने कहा‒‘ना,
बिना नामके कैसे रखूँगा ?’ फिर पूछा गया‒‘तो तुम शरीरको कैसे रखते हो ?’ तब हनुमान्जीने नखोंसे शरीरकी त्वचाको चीर करके दिखाया । सम्पूर्ण
त्वचामें जगह-जगह, रोम-रोममें राम, राम, राम, राम लिखा हुआ था‒‘चीरके दिखाई त्वचा
अंकित तमाम, देखी चाम राम नामकी ।’ तो जो नाम जपनेवाले सज्जन हैं, वे
नाममय बन जाते हैं ।
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