।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.–२०७५, रविवार
  करणसापेक्ष-करणनिरपेक्ष साधन
और करणरहित साध्य


जिस सत्ताके अन्तर्गत अनेक ब्रह्माण्ड हैं, उस अनन्त सत्तामें और एकदेशीय सत्तामें वस्तुतः कोई भेद नहीं है । भगवान् कहते हैं‒

क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत ।
                                                        (गीता १३ । २)

‘हे भारत ! तू सम्पूर्ण क्षेत्रोंमें क्षेत्रज्ञ मेरेको ही समझ ।’ तात्पर्य है कि वास्तविक सत्ता दो नहीं है, प्रत्युत एक ही है‒‘वासुदेवः सर्वम्’ । अपरा प्रकृतिके जिस अंशमें सम्पूर्ण क्रियाएँ हो रही हैं, उस अंश अर्थात् ‘अहम्‌’ के साथ सम्बन्ध मान लेनेसे सत्तामें भेद दीखने लग जाता है । जिसने अहम्‌के साथ सम्बन्ध माना है, वह एकदेशीय सत्ता हो जाती है । इस एकदेशीय सत्ताको ही जीव, ईश्वरका अंश, परा प्रकृति, क्षेत्रज्ञ आदि नामोंसे कहते हैं । इस एकदेशीय सत्ताको ही ‘मैं हूँ’इस रूपसे जाना जाता है । यह एकदेशीय सत्ता जिस अनन्त सत्ताका अंश है, उस अनन्त सत्ताको ब्रह्म, परमात्मा, भगवान् आदि नामोंसे कहते हैं । उस अनन्त सत्ताको भी है’-रूपसे जाना जाता है । इस प्रकार अहम्‌के कारण एक ही सत्ताके दो भेद हो जाते हैं‒एकदेशीय सत्ता (जीव) और अनन्त सत्ता (ब्रह्म) ।


‘मैं हूँ’यह जड-चेतनकी ग्रन्थि है । इसमें मैंजड (प्रकृति) का अंश है और हूँचेतन (परमात्मा) का अंश है । मैं’-पनकी प्रकृतिके साथ एकता है और हूँकी परमात्मा (है’) के साथ एकता है । मैं’-पनके कारण ही है’ ‘हूँ’-रूपसे दीखता है । अगर मैं-पनन रहे तो हूँ’ ‘हैमें समा जायगा । सभी हूँ’ ‘हैमें समा जाते हैं, पर है ‘हूँमें नहीं समा सकता । वास्तवमें हूँ हैमें समाया हुआ ही है ! उस हैमें मैं’-पन नहीं है । तात्पर्य है कि मैं’-पन (अहम्) से ही सत्तामें हूँऔर हैका भेद होता है । इसलिये सत्ताभेदको मिटानेके लिये मैं’-पनका नाश करना आवश्यक है । यह मैं’-पन भूलसे माना हुआ है । यह भूल अपनेमें अर्थात् व्यक्तित्वमें है, सत्ता (तत्त्व) में नहीं । इस एक भूलमें ही अनेक भूलें हैं ! इस भूलको मिटानेके लिये हूँको हैमें मिलाना बहुत आवश्यक है । हूँको हैमें मिलानेसे मैंनहीं रहेगा, प्रत्युत है’ (तत्त्व) रह जायगा ।