‘पाप पयोनिधि जन मन मीना’—पहले हमारे समझमें यह बात नहीं आयी थी । पापमें मनुष्यका
इतना मन कैसे लग जाता है ? क्या बात है ? परन्तु आजकल देखते हैं तो कई जगह यह बात
सुननेमें आती है कि बिना पाप-अन्याय किये, झूठ-कपट किये हम जी नहीं सकते । जीवनका आधार पापको मान लिया । ऐसे जो पापोंमें रचे-पचे हैं,
उनसे कहा जाय कि ‘तुम नाम-जप करो’ तो बड़ा कठीन हो जायगा । पापीके मुखसे भगवान्का
नाम नहीं आता । पाप अधिक होनेके कारण ऐसी दशा हो जाती है ।
इस विषयमें मेरे मनमें एक बात आती है । आप भाई-बहन ध्यान
दें ! हम तो हिम्मत करके ‘राम-राम’ करेंगे ही—ऐसा पक्का निश्चय करके नाम-जपमें लग जाओ तो पाप ठहरेगा
नहीं । ये दोनों साथमें नहीं रह सकते । पाप भाग जायगा । भगवान्के नामका आश्रय
लेकर यह निश्चय करो कि उसका पाप नष्ट हो जाता है, जो दृढ़ होकर भजन करता है । तो हम
भी दृढ़व्रत होकर भजन करेंगे । दृढ़तासे हम भजनमें ही लग जायेंगे । तो फिर पाप ठहरेगा नहीं, अशुद्धि टिकेगी
नहीं । जैसे सूर्योदय होनेपर अमवास्यकी बड़ी काली रात भी ठहर नहीं सकती, ऐसे ही आपलोग कृपा करके रात-दिन ‘राम’ नाममें लग जाओ तो सब पाप नष्ट
हो जायँगे ।
एक सन्त थे, उनसे किसीने पूछा—‘महाराज ! आप कहते हैं कि पाप मत करो । पाप तो हमसे छूटता
नहीं; परन्तु हमारेसे पाप छूट जाय—ऐसा कोई
उपाय बतलाओ । पाप छोड़नेकी हमारे हिम्मत नहीं होती ।’ सन्तने कहा—‘तुम रात-दिन ‘राम-राम’ जपमें लग जाओ ।’ ‘पाप पयोनिधि जन मन मीना’—ऐसे पापी लोगोंको भी यह उपाय सन्तने बताया । हमने तो
परम्परासे सुना । उनसे तो इतना ही कहा गया कि तुम राम-राम करो । मैंने सोचा कि
देखो, सन्तोंकी कितनी गहरी सूझ है, जो सीधा उपाय बता दिया कि राम-राममें लग जाओ ।
राम-राममें लगनेसे क्या होगा कि ‘राम’ नाम भीतरमें बैठ जायगा । अभी तो बाहरसे होता
है ।
प्रथम राम रसना
सिवर, द्वितीय कण्ठ लगाय ॥
तृतीय हृदय ध्यान धर, चौथे नाभ मिलाय ॥
अध मध उत्तम प्रिय घर ठानु, चौथे अति उत्तम अस्थानु ॥
ये चहुँ बिन देखे आसरमा, राम भगति को पावे मारमा ॥
(नामापरचा)
ऐसे जब ‘राम’ नाम भीतर उतरेगा तो भीतर जानेपर वह
सब काम कर लेगा । शुद्धि, पवित्रता, निर्मलता, भगवान्की भक्ति—जो आनी चाहिये सब आ जायगी । इसलिये गोस्वामीजी महाराजने बड़ी विचित्र बात लिखी—‘नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी ।’ और कुछ नहीं तो जीभसे ही जपो । ‘तज्जपस्तदर्थभावनम्’—भगवान्के नामका जप करे और भीतर-ही-भीतर ध्यान होता रहे—उसका तो फिर कहना ही क्या है ! जीभमात्रसे नाम जपनेसे योगी जाग जाता है | जो नाम जप करते हैं, जीभमात्रसे
ही, वे भी ब्रह्माजीके प्रपंचसे वियुक्त होकर विरक्त सन्त हो जाते हैं । जीभमात्रसे
जप करना है भी सुगम ।
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