।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं. २०७५ शनिवार
पापसे छूटनेका उपाय
        


बहुतसे लोग कह देते हैं‘तुम नाम-जपते हो तो मन लगता है कि नहीं लगता है ? अगर मन नहीं लगता है तो कुछ नहीं, तुम्हारे कुछ फायदा नहींऐसा कहनेवाले वे भाई भोले हैं, वे भूलमें हैं, इस बातको जानते ही नहीं; क्योंकि उन्होंने कभी नाम-जप करके देखा ही नहीं । पहले मन लगेगा, पीछे जप करेंगेऐसा कभी हुआ है ? और होगा कभी ? ऐसी सम्भावना है क्या ? पहले मन लग जाय और पीछे ‘राम-राम’ करेंगेऐसा नहीं होता । नाम जपते-जपते ही नाम-महाराजकी कृपासे मन लग जाता है ‘हरिसे लागा रहो भाई । तेरी बिगड़ी बात बन जाई, रामजीसे लागा रहो भाई ॥’ इसलिये नाम-महाराजकी शरण लेनी चाहिये । जीभसे ही ‘राम-राम’ शुरू कर दो, मनकी परवाह मत करो । ‘परवाह मत करो’इसका अर्थ यह नहीं है कि मन मत लगाओ । इसका अर्थ यह है कि हमारा मन नहीं लगा, इससे घबराओ मत कि हमारा जप नहीं हुआ । यह बात नहीं है । जप तो हो ही गया, अपने तो जपते जाओ । हमने सुना है

माला  तो  करमें  फिरे,   जीभ  फिरे  मुख  माहिं ।
मनावाँ तो चहुँ दिसि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं ॥

‘भजन होगा नहीं’यह कहाँ लिखा है ? यहाँ तो ‘सुमिरन नाहिं’ऐसा लिखा है । सुमिरन नहीं होगा, यह बात तो ठीक है; क्योंकि ‘मनवा तो चहुँ दिसि फिरे’ मन संसारमें घूमता है तो सुमिरन कैसे होगा ? सुमिरन मनसे होता है; परन्तु ‘यह तो जप नाहिं’ऐसा कहाँ लिखा है ? जप तो हो ही गया । जीभमात्रसे भी अगर हो गया तो नाम-जप तो हो ही गया ।

हमें एक सन्त मिले थे । वे कहते थे कि परमात्माके साथ आप किसी तरहसे ही अपना सम्बन्ध जोड़ लो । ज्ञानपूर्वक जोड़ लो, और मन-बुद्धिपूर्वक जोड़ लो तब तो कहना ही क्या है ? और नहीं तो जीभसे ही जोड़ लो । केवल ‘राम’ नामका उच्‍चारण करके भी सम्बन्ध जोड़ लो । फिर सब काम ठीक हो जायगा । ‘अनिच्छया ही संस्पृष्टो दहत्येव हि पावकः’आग बिना मनके छू जायेंगे तो भी वह जलायेगी ही, ऐसे ही भगवान्‌का नाम किसी तरहसे ही लिया जाय

भाय  कुभाय  अनख  आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
                                 (मानस, बालकाण्ड २८/१)

इसका अर्थ उलटा नहीं लेना चाहिये कि हम कुभावसे ही नाम लें और मन लगावें ही नहीं । बेगारखाते ऐसे ही नाम लेंऐसा नहीं । मन लगानेका उद्योग करो, सावधानी रखो, मनको भगवान्‌में लगाओ, भगवान्‌का चिन्तन करो, पर न हो सके तो घबराना बिलकुल नहीं चाहिये । मेरे कहनेका मतलब यह है कि मन नहीं लग सका तो ऐसा मत मानो कि हमारा नाम-जप निरर्थक चला गया । अभी मन न लगे तो परवाह मत करो; क्योंकि आपकी नीयत जब मन लगानेकी है तो मन लग जायगा । एक तो हम मन लगाते ही नहीं और एक मन लगता नहींइन दोनों अवस्थओंमें बड़ा अन्तर है । ऐसे दिखनेमें तो दोनोंकी एक-सी अवस्था ही दीखती है । कारण कि दोनों अवस्थओंमें ही मन तो नहीं लगा । दोनोंकी यह अवस्था बराबर रही; परन्तु बराबर होनेपर भी बड़ा भारी अन्तर है । जो लगाता ही नहीं, उसका तो उद्योग भी नहीं है । उसका मन लगानेका विचार ही नहीं है । दूसरा व्यक्ति मनको भगवान्‌में लगाना चाहता है, पर लगता नहीं । भगवान्‌ सबके हृदयकी बात देखते हैं

रहति न प्रभु चित चूक किए की । करत सुरति सय बार हिए की ॥
                                               (मानस, बालकाण्ड २९/५)

भगवान्‌ हृदयकी बात देखते हैं, कि यह मन लगाना चाहता है, पर मन नहीं लगा । तो महाराज ! उसका बड़ा भारी पुण्य होगा । भगवान्‌पर उसका बड़ा असर पड़ेगा । वे सबकी नीयत देखते हैं । अपने तो मन लगानेका प्रयत्न करो, पर न लगे तो उसमें घबराओ मत और नाम लिये जाओ ।

                             राम !   राम !!   राम !!!