।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं. २०७५ रविवार
नाम-जपका अनुभव
        


‘राम’ नामकी वन्दनाका प्रकरण चल रहा है । इसमें ‘राम’ नामकी महिमाका वर्णन भी आया है । इसकी महिमा सुननेसे ‘राम’ नाममें रुचि हो सकती है, पर इसका माहात्म्य तो ‘राम’ नाम जपनेसे ही मिलता है । नाम-महिमा कहने और सुननेसे उसमें रुचि होती है और नाम-जप करनेसे अनुभव होता है, इसलिये बड़ी उपयोगी बात है । इसकी वास्तविकता जपनेसे ही समझमें आयेगी, पूरा पता उससे ही लगेगा । जैसे, भूखे आदमीको भोजनकी बात बतायी जाय तो उसकी रुचि विशेष हो जाती है । पर बिना भूखके भोजनमें उतना रस नहीं आता । जोरसे भूख लगती है, तब पता लगता है कि भोजन कितना बढ़िया है ! वह रुचता है, जँचता भी है और पच भी जाता है । उस भोजनका रस बनता है, उससे शक्ति आती है । ऐसे ही रुचिपूर्वक नामका जप करनेसे ही नामका माहात्म्य समझमें आता है, इसलिये ज्यों-ज्यों अधिक नाम जपते हैं, त्यों-ही-त्यों उसका विशेष लाभ होता है ।

जैसे, धन कमानेवालोंके पास धन ज्यादा बढ़ जाता है तो उनके धनका लोभ भी बढ़ता जाता है । परन्तु अन्तमें वह पतन करता है, क्योंकि धन नाशवान् वस्तु है । मानो साधारण आदमीके धनका अभाव थोड़ा होता है । धनी आदमीके अभाव ज्यादा होता है । साधारण आदमीके सैकड़ोंका, धनीके हजारोंका, अधिक धनीके लाखोंका और उससे भी बड़े धनीके करोड़ोंका घाटा होता है । वैसे ही भजन करनेवालोंके भी भजनकी जरूरत होती है । जो इसकी महिमा जानते हैं, उन्हें बहुत बड़े अभावका अनुभव होता है कि हमारे भजन बहुत कम हुआ । परन्तु जो लोग भजन नहीं करते हैं, उन्हें पता ही नहीं, वे इसके माहात्म्यको जानते ही नहीं । परन्तु वे ज्यों ही अपनेमें कमी समझते है, त्यों ही भजनका माहात्म्य समझमें आता है । ऐसे माहात्म्यको समझनेवालोंके लिये लिखा है कि नामके उच्‍चारणमात्रसे कल्याण हो जाय ।

‘भगवन्नाम-कौमुदी’ नामक एक ग्रन्थ है । उसमें बड़े शास्त्रार्थ-दृष्टिसे विवेचना की गयी है । नामका उच्‍चारण करनेवाले नामके पात्र माने गये हैं । जैसे गजेन्द्रने आर्त होकर भगवान्‌का नाम लिया तो भगवान्‌ प्रत्यक्ष प्रकट हो गये । आर्त होकर जो नाम लिया जाता है, उसका बहुत जल्दी महत्त्व दीखता है । ऐसे ही भावपूर्वक नाम लिया जाता है, उसका विलक्षण ही असर होता है । एक पदमें आता है

कृष्ण नाम जब श्रवण सुने री मैं आली ।
भूली री भवन हौं तो बावरी भयी री ॥


        जिन गोपिकाओंके हृदयमें भगवान्‌का प्रेम है, वे उनका नाम सुननेसे ही पागल हो जाती हैं । पता ही नहीं कि स्वयं मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ ! ऐसे ही भगवन्नामसे ऐसी दशा हो जाती है । ‘कल्याण’के भूतपूर्व सम्पादक भाई श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारकी नाम-निष्ठा अच्छी थी । कल्याण शुरू नहीं हुआ था, उस समयकी बात है । किसीने कह दिया‘राम नाम लेनेसे क्या होता है ?’ तो उन्होंने कहा‘कल्याण’ हो जाता है ।’ उसने कहा‘अर्थ समझे बिना क्या है ?’ ‘राम’ नाम अंग्रेजीमें मेढा और भेड़ाका भी है ।’ तब उन्होंने जोशमें आकर कह दिया, ‘राम-नामसे कल्याण होता है ।’ ऐसे जोशमें आकर कहनेसे उन्हें आठ पहरतक होश नहीं आया । खाना-पीना, टट्टी-पेशाब सब बन्द । इस बातसे उनकी माँजी बड़ी दुःखी हो गयीं कि हनुमानको क्या हो गया ? ऐसे जो भगवान्‌का नाम लेता है, उसमें बहुत विलक्षणता आ जाती है ।