जिसकी नाममें रुचि होती है, उसे पता लगता है कि नामकी महिमा
क्या होती है ? दूसरेको क्या पता नाम क्या चीज है ? हरेक आदमी क्या समझे ? नाममें रुचि ज्यादा होती है जप करनेसे, भजन करनेसे और उसमें
तल्लीन होनेसे । सन्त-महात्माओंकी वाणीमें जो बातें आती हैं, वे विलक्षण बातें
स्वयं अनुभवमें आने लगती हैं । सन्तोंने अलग-अलग स्थानोंपर अपना अलग-अलग
अनुभव लिखा है ।
एक बहन थी । उसने अपने नाम-जपकी ऐसी बातें बतायीं, जो
सन्तोंकी वाणीमें भी मिलती नहीं । उसने कहा कि नाम जपते-जपते शरीरमें ठण्डक
पहुँचती है । सारे शरीरमें ठण्डा-ठण्डा झरना बहता है तथा एक प्रकारके मिठास और
आनन्दकी प्राप्ति होती है । मैंने सन्तोंकी वाणी पढ़ी है, पर ऐसा वर्णन नहीं आता,
जैसा उस बहनने अपना अनुभव बताया । ऐसे-ऐसे अलौकिक चमत्कार सन्त-महात्माओंने थोड़े-थोड़े
ही लिखे हैं । वे कहाँतक लिखें ? जो अनुभव होता है, वो
वर्णन करनेमें आता नहीं । वे खुद ही जानते हैं ।
सो सुख जानइ मन अरु काना ।
नहिं रसना पहिं जाइ बखाना ॥
वह कहनेमें नहीं आता । आप इसमें लग जायँ । भाइयोंसे, बहनोंसे, सबसे मेरी प्रार्थना है कि आप नाम-जपमें लग
जायँ । आप निहाल हो जायेंगे और दुनिया निहाल हो जायगी । सबपर असर पड़ेगा और आपका तो
क्या कहें, जीवन धन्य हो जायगा । ‘भगवन्नाम’ की अपार महिमा है । गोस्वामीजी
महाराज आगे वर्णन करते हैं—
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी
सालि सुदास ।
राम नाम बर बरन जुग सावन
भादव मास ॥
(मानस,
बालकाण्ड १९)
पहले ‘राम’ नामके अवयवोंका वर्णन हुआ फिर ‘महामन्त्र’ क वर्णन हुआ । अब दो अक्षरोंका वर्णन
होता है । ‘रा’ और ‘म’—ये दो
अक्षर हैं । जो भगवान्के प्यारे भक्त हैं, वे सालि (बढ़िया चावल) की खेती हैं और
वर्षा-ऋतु श्रीरघुनाथजी महाराजकी भक्ति है । वर्षा-ऋतुमें खूब वर्षा हुआ करती है ।
चावलोंकी खेती, बाजरा आदि अनाजोंकी खेतीसे भिन्न होती है । राजस्थानमें खेतमें यदि
पानी पड़ा रहे तो घास सुख जाय, पर चावलके खेतमें हरदम पानी भरा ही रहता है । जिससे
खेतमें मछलियाँ पैसा हो जाती हैं । सालिके चावल बढ़िया होते हैं । चावल जितने बढ़िया
होते हैं, उतना ही पानी ज्यादा माँगते हैं । उनको पानी हरदम चाहिये ।
‘रा’ और ‘म’—ये दो श्रेष्ठ वर्ण हैं । ऐसे ही श्रावण और भाद्रपद इन दो
मासोंकी वर्षा-ऋतु कही जाती है । श्रेष्ठ भक्तके यहाँ
‘राम’ नामरूपी वर्षकी झड़ी लगी रहती है ।
|