आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं—
आखर मधुर मनोहर दोऊ ।
बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ॥
(मानस,
बालकाण्ड २०/१)
ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं । ‘मधुर’
कहनेका मतलब है कि रसनामें रस मिलता है । ‘मनोहर’ कहनेका तात्पर्य है कि मनको अपनी
ओर खींच लेता है । जिन्होंने
‘राम’ नामका जप किया है, उनको इसका पता लगता है, और आदमी नहीं जान सकते । विलक्षण
बात है कि ‘राम-राम’ करते-करते मुखमें मिठास पैदा होता है । जैसे, बढ़िया दूध हो और उसमें मिश्री पीसकर मिला दी जाय तो वह
कैसा मीठा होता है, उससे भी ज्यादा मिठास इसमें आने लगता है । ‘राम’ नाममें
लग जाते हैं तो फिर इसमें अद्भुत रस आने लगता है । ऐसे ये दोनों अक्षर मधुर और
मनोहर हैं । ‘बरन बिलोचन जन जिय जोऊ’—ये दोनों अक्षर वर्णमालाकी दो आँखें हैं । शरीरमें दो आँखें
श्रेष्ठ मानी गयी है । आँखके बिना जैसे आदमी अन्धा होता है, ऐसे ‘राम’ नामके बिना
वर्णमाला भी अन्धी है ।
नाम जपते हुए बहुत विलक्षण अनुभव होने
लगता है । छः कमलोंमें
एक नाभिकमल है, उसकी पंखुड़ियाँमें भगवान्के नाम हैं, वे भी दीखने लग जाते हैं । आँखोंसे जैसे बाहरी ज्ञान होता है, ऐसे नाम-जपसे बड़े-बड़े
शास्त्रोंका ज्ञान हो जाता है । जिन सन्तोंने पढ़ायी नहीं की, शास्त्र नहीं
पढ़े, उनकी वाणीमें भी वेदोंकी ऋचाएँ आती हैं । वेदोंमें जैसा लिखा हैं वैसी बातें
उनकी साखियोंमें, वाणियोंमें आती हैं । वेदोंका ज्ञान उनको कैसे हो गया ? ‘राम’
नाम महाराजसे । ‘राम’ नाम महाराज सब अक्षरोंकी आँख है । आँखोंसे दीखने लग जाता है,
और विचित्र बातें दीखने लग जाती हैं ।
श्रीरामदासजी और श्रीलालदासजी महाराज दोनोंकी मित्रता थी ।
उन दोनोंकी मित्रताकी कई बातें मैंने सुनी थी । एक बार एक माई भोजन लेकर जा रही थी
तो उन दोनोंने आपसमें बात कही कि वह जो माई भोजन ला रही है, उसमें राबड़ी है, अमुक
साग है, और ऐसी-ऐसी चीजें हैं । और उलटा कटोरा भी साथमें है । फिर जब देखा तो वैसी
ही बात मिली । इस प्रकार लौकिक द्रष्टिसे भी विशेषता आ जाती है । एकान्तमें भजन
करते हुए उन्हें ऐसा अनुभव होता है कि अमुक जगह अमुक बात हो रही है । इन बातोंको
सन्त लोग प्रकट नहीं करते थे । ऋद्धि-सिद्धि आ जाती है और कभी कुछ बात प्रकट हो
जाती है तो वे कहते कि चुप रहो, हल्ला मत करो, लोगोंको बताओ मत । अन्धेरेमें,
रातमें दीखने लग जाय—ऐसे
चमत्कार होते हैं, यह तो मामूली चमत्कार है । विशेष बात
यह है कि नामजपसे तत्त्वज्ञान हो जाता है । जो परमात्माका स्वरूप है, स्वयंका
स्वरूप है, इन सबका अनुभव हो जाता है । यह मामूली बात है क्या ? लौकिक चमत्कार दीख जाना कोई बड़ी बात नहीं है ।
‘राम’ नाममें अपार-अनन्त शक्ति भारी हुई है । इसलिये
गोस्वामीजी महाराज कहते हैं—‘बरन बिलोचन जन जिय जोऊ’—भक्तोंके हृदयको जाननेके लिये ये नेत्र हैं ।
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