सुमिरत सुलभ सब काहू ।
लोक
लाहु परलोक निबाहू ॥
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके ।
राम लखन सम प्रिय तुलसी के ॥
(मानस, बालकाण्ड २०/२,३)
ये कहने,सुनने और स्मरण करनेमें बहुत
ही अच्छे सुन्दर और मधुर हैं । तुलसीदासजीको श्रीराम और लक्ष्मणके समान दोनों प्यारे है । ‘राम, राम,
राम........’ कहनेमें आनन्द आता है और ‘राम, राम, राम.......’ सुननेमें आनन्द आता
है । मनसे याद करें तो आनन्द आता है । ऐसे ‘राम’ नामके ये दोनों अक्षर बड़े सुन्दर
और श्रेष्ठ हैं । गोस्वामीजी महाराज इस प्रकार
विलक्षण बात कह रहे हैं । मानो उनको कुछ भी होश नहीं है । ‘राम’ नाम कैसा है ? सुननेवालोंके
सामने द्रष्टान्त ऐसा दिया जाता है, जिसे सुननेवाले आसानीसे समझ सकें ।
श्रीरामचरितमानसमें चार संवाद आये हैं—१. पार्वतीजी एवं शंकरभगवान्का, २. याज्ञवल्क्यजी और भरद्वाजजीका, ३.
कागभुशुण्डिजी और गरुड़जीका तथा ४. सन्तों और गोस्वामीजी महाराजका संवाद । यहाँ
गोस्वामीजी महाराज सन्तोंको नाम-महिमा सुनाते हुए कह रहे हैं कि ये दोनों अक्षर
ऐसे सुन्दर और प्यारे हैं, जैसे तुलसीको राम और लखन प्यारे लगते हैं । रामचरितमानस
समाप्त हुई, तब रघुवंशी रामजी और उनके नाम—इन दोनोंके विषयमें एक बात कही है—
कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम ।
तिमि रघुनाथ निरन्तर प्रिय लागहु मोहि राम
॥
(मानस,
उत्तरकाण्ड १३० ख)
दोनों उदाहरण ऐसे दिये, जिनको हरेक आदमी समझ सके और जिसमें
हरेक आदमीका मन खींचे । सिद्धान्त समझाना हो तो दृष्टान्त वही दिया जाता है, जो हरेक आदमीके अनुभवमें आता
हो । परन्तु यहाँ गोस्वामीजी महाराज कहते हैं—‘राम लखन सम प्रिय तुलसी के’—हरेक आदमीको क्या पता कि तुलसीको राम और लक्ष्मण किस तरह
प्यारे लगते हैं ? राम-लक्षमण उसको भी प्यारे लगें, तब वह समझे कि ‘राम’ नाम कितना
प्यारा हैं ! इतने ऊँचे कवि होकर कैसा दृष्टान्त देते हैं । अब हम क्या समझें,
तुलसीको कैसे प्यारे लगते हैं ? तो कहते हैं—‘ कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम’—जैसे कामीको स्त्री प्यारी लगती है और लोभीको दाम प्यारा लगता है, ऐसे मेरेको राम प्यारे
लगें । ‘तिमि रघुनाथ निरन्तर प्रिय लागहु मोहि
राम’—गोस्वामीजी
महाराजने दो नाम लिये । ‘कामिहि नारि पिआरी जिमि’—में लिख दिया ‘रघुनाथ’ और ‘लोभिहि प्रिय जिमि दाम’—में लिख दिया ‘राम’ नाम । कामीको
सुन्दररूप अच्छा लगता है और लोभीको दाम प्यारे लगते हैं । वह सुन्दरताकी ओर नहीं देखता । वह गिनती देखता है । उसको गिनती अच्छी लगती है । रघुवंशियोंके
मालिक महाराजाधिराज श्रीराम विराजमान हैं, ऐसा उनका
रूप और ‘राम’ नाम—ये दोनों प्यारे लगें अर्थात् भगवान्का स्वरूप और भगवान्का नाम—ये दोनों प्यारे लगें ।
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