।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल द्वितीया, वि.सं. २०७५ बुधवार
तुलसीका प्रिय ‘राम’ नाम
        


सुमिरत   सुलभ   सब  काहू  ।   
लोक   लाहु  परलोक  निबाहू ॥
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके ।
राम लखन सम प्रिय तुलसी के ॥
                                     (मानस, बालकाण्ड २०/२,३)

ये कहने,सुनने और स्मरण करनेमें बहुत ही अच्छे सुन्दर और मधुर हैं । तुलसीदासजीको श्रीराम और लक्ष्मणके समान दोनों प्यारे है । ‘राम, राम, राम........’ कहनेमें आनन्द आता है और ‘राम, राम, राम.......’ सुननेमें आनन्द आता है । मनसे याद करें तो आनन्द आता है । ऐसे ‘राम’ नामके ये दोनों अक्षर बड़े सुन्दर और श्रेष्ठ हैं । गोस्वामीजी महाराज इस प्रकार विलक्षण बात कह रहे हैं । मानो उनको कुछ भी होश नहीं है । ‘राम’ नाम कैसा है ? सुननेवालोंके सामने द्रष्टान्त ऐसा दिया जाता है, जिसे सुननेवाले आसानीसे समझ सकें ।

श्रीरामचरितमानसमें चार संवाद आये हैं१. पार्वतीजी एवं शंकरभगवान्‌का, २. याज्ञवल्क्यजी और भरद्वाजजीका, ३. कागभुशुण्डिजी और गरुड़जीका तथा ४. सन्तों और गोस्वामीजी महाराजका संवाद । यहाँ गोस्वामीजी महाराज सन्तोंको नाम-महिमा सुनाते हुए कह रहे हैं कि ये दोनों अक्षर ऐसे सुन्दर और प्यारे हैं, जैसे तुलसीको राम और लखन प्यारे लगते हैं । रामचरितमानस समाप्त हुई, तब रघुवंशी रामजी और उनके नामइन दोनोंके विषयमें एक बात कही है

कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम ।
तिमि   रघुनाथ   निरन्तर   प्रिय    लागहु  मोहि  राम ॥
                                    (मानस, उत्तरकाण्ड १३० ख)


दोनों उदाहरण ऐसे दिये, जिनको हरेक आदमी समझ सके और जिसमें हरेक आदमीका मन खींचे । सिद्धान्त समझाना हो तो दृष्टान्त  वही दिया जाता है, जो हरेक आदमीके अनुभवमें आता हो । परन्तु यहाँ गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‘राम लखन सम प्रिय तुलसी के’हरेक आदमीको क्या पता कि तुलसीको राम और लक्ष्मण किस तरह प्यारे लगते हैं ? राम-लक्षमण उसको भी प्यारे लगें, तब वह समझे कि ‘राम’ नाम कितना प्यारा हैं ! इतने ऊँचे कवि होकर कैसा दृष्टान्त देते हैं । अब हम क्या समझें, तुलसीको कैसे प्यारे लगते हैं ? तो कहते हैं कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम’जैसे कामीको स्त्री प्यारी लगती है और लोभीको दाम प्यारा लगता है, ऐसे मेरेको राम प्यारे लगें । ‘तिमि रघुनाथ निरन्तर प्रिय लागहु मोहि राम’गोस्वामीजी महाराजने दो नाम लिये । ‘कामिहि नारि पिआरी जिमि’में लिख दिया ‘रघुनाथ’ और ‘लोभिहि प्रिय जिमि दाम’में लिख दिया ‘राम’ नाम । कामीको सुन्दररूप अच्छा लगता है और लोभीको दाम प्यारे लगते हैं । वह सुन्दरताकी ओर नहीं देखता । वह गिनती देखता है । उसको गिनती अच्छी लगती है । रघुवंशियोंके मालिक महाराजाधिराज श्रीराम विराजमान हैं, ऐसा उनका रूप और ‘राम’ नामये दोनों प्यारे लगें अर्थात् भगवान्‌का स्वरूप और भगवान्‌का नामये दोनों प्यारे लगें ।