अगर हम आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो हमें यह विश्वास करना चाहिये कि भगवान्ने
हमारी सहायता की है, कर रहे हैं और अवश्यमेव करेंगे । वे
वर्तमानमें भी सहायता कर रहे हैं और भविष्यमें भी जहाँ आवश्यकता पड़ेगी, वहाँ हमारी
सहायता करेंगे । कारण कि वे स्वाभाविक ही परम दयालु
हैं । वे अपने भक्तोंका जैसा पालन-पोषण करते हैं, वैसा-का-वैसा ही पालन-पोषण वे दूसरे प्राणियोंका भी करते हैं । जो
मनुष्य भगवान्से विमुख चलते है, उनको भी भगवान् अन्न, जल, वायु आदि देते हैं ।
जो दुष्टलोग भगवान्के सिद्धान्तसे, शास्त्रसे बिलकुल विरुद्ध चलते हैं, भगवान्की
निन्दा करते हैं उनको भी भगवान् जीवन-निर्वाहकी सामग्री देते हैं । साँप, सिंह
आदि जन्तुओंको भी भगवान् जीवन-निर्वाहकी सामग्री देते हैं । ऐसे परम दयालु भगवान्
क्या हमारा पालन-पोषण नहीं करेंगे ?
अयमुत्तमोऽयमधमो
जात्या रूपेण सम्पदा वयसा ।
श्लाध्योऽश्लाध्यो
वेत्थ न वेत्ति भगवाननुग्रहावसरे ॥
अन्तःस्वभावोक्ता ततोऽन्तरात्मा
महामेघः ।
खदिरश्चम्पक इव वा प्रवर्षणं
किं विचारयति ॥
(प्रबोधसुधाकर २५२/२५३)
‘किसीपर कृपा
करते समय भगवान् ऐसा विचार नहीं करते कि यह जाति, रूप, धन और आयुसे उत्तम है या
अधम ? स्तुत्य है या निन्द्य ? यह अन्तरात्मारूप महामेघ आन्तरिक भावोंका ही भोक्ता
है । मेघ क्या वर्षाके समय इस बातका विचार करता है कि यह खैर है या चम्पा ?’
इसलिये हमें भगवान्पर विश्वास करना
चाहिये कि हमारी जो आवश्यकता होगी, उसको भगवान् देंगे ।
अभी गीता, रामायण आदि सत्शास्त्रोंके द्वारा, सत्संगके द्वारा हमें जो बातें मिल
रही हैं, वे भी केवल भगवान्की कृपासे ही मिल रही हैं ।
मूलमें कृपा एक भगवान्की ही है, पर
वह अलग-अलग माध्यमसे मिलती हुई दीखती है, जैसे हमें टोंटीसे जल प्राप्त होता
हुआ दीखता है, पर विचारपूर्वक देखें तो उसमें जल पाइपसे आता है, पाइपमें जल टंकीसे
आता है, टंकीमें जल नदी, कुएँ आदिसे आता है, नदीमें जल वर्षासे आता है, वर्षामें
जल समुद्रसे आता है, समुद्रका जल अग्निसे उत्पन्न होता है, अग्नि वायुसे उत्पन्न
होती है, वायु आकाशसे उत्पन्न होती है और आकाश परमात्माकी शक्तिसे उत्पन्न होता है
। तात्पर्य है कि सबके मूलमें परमात्मा हैं । जिनसे यह सम्पूर्ण सृष्टि उत्पन्न
हुई है ।
हमें जो कुछ भी प्राप्त हो रहा है,
वह सब भगवान्से ही प्राप्त हो रहा है । वे हमारी योग्यताको देखकर नहीं दे रहें
हैं, प्रत्युत स्वयं अपनी अहैतुकी कृपासे हमें दे रहें हैं । जैसे माँ
बालकका पालन करती है तो बालककी योग्यता, बल, बुद्धि, विद्या, गुण आदिको देखकर नहीं
करती, प्रत्युत माँ होनेके नाते उसका पालन करती है । ऐसे ही भगवान् सबके
माता-पिता हैं । वे किसी कारणसे कृपा करते हों, ऐसी बात नहीं है । वे अपने
स्वाभाविक स्नेहसे, कृपासे, सुहृद्भावसे हमारा
पालन कर रहें हैं । ऐसे भगवान्की कृपाका भरोसा हरेक
मनुष्यको रखना चाहिये । जितना अधिक भरोसा रखेंगे, उतनी ही उनकी कृपा अधिक फलीभूत
होगी, अनुभवमें आयेगी, जिससे शान्ति मिलेगी, निश्चिन्तता, निर्भयता होगी ।
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