।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल अष्टमी, वि.सं. २०७५ बुधवार
                          भीमाष्टमी
विलक्षण भगवत्कृपा
        


केवल भगवान्‌की कृपाकी तरफ देखते रहनेसे मनुष्य सदाके लिये संसारके दुःखोंसे छूट जाता है । कृपाकी तरफ न देखनेसे वह उस कृपाको ग्रहण नहीं कर सकता, इसीसे वह दुःख पाता है ! परन्तु भगवान्‌की कृपा कभी कम नहीं होती । मनुष्य भगवान्‌के सम्मुख न हो, भगवान्‌को माने नहीं, भगवान्‌का खंडन करे, तो भी भगवान्‌ वैसी ही कृपा करते हैं । पूत कपूत हो जाता है, पर माता कुमाता नहीं होती‘कुपुत्रो जायेत क्‍वचिदपि कुमाता न भवति ।’ भगवान्‌ तो सदासे अनन्त माताओंकी भी माता हैं, अनन्त पिताओंके भी पिता हैं । इसलिये हमारेपर भगवान्‌की स्वतः अपार, असीम कृपा है । जो कुछ हो रहा है, उनकी कृपासे ही हो रहा है । जो कुछ मिल रहा है, उनकी कृपासे ही मिल रहा है । जब कोई अच्छा संग मिल जाय, अच्छी बात मिल जाय, अच्छा भाव पैदा हो जाय, अचानक भगवान्‌की याद आ जाय, तब समझना चाहिये कि यह भगवान्‌की विशेष कृपा हुई है, भगवान्‌ने मेरेको विशेषतासे याद किया है । इस प्रकार भगवान्‌की कृपाकी तरफ देखे, उसका ही भरोसा रखे तो उनकी कृपा बहुत विशेषतासे प्रकट होगी ।

एक बालक घरमें सो रहा था । उसकी माँ जल भरनेके लिये कुएँ चली गयी । माँके जानेके बाद बालककी नींद खुल गयी । उसने देखा कि माँ घड़ेमें पानी लेकर आ रही है तो वह माँकी तरफ चल पड़ा । बाहर तेज धूप पड़ रही थी । धूपसे तपी जमीनपर बालकके कोमल-कोमल पैर जल रहे थे, पर उसको इस बातका होश नहीं था कि मैं यहीं ठहर जाऊँ, माँ तो यहाँ आ ही रही है । वह माँके पास पहुँच गया । माँके सिरपर घड़ा था; अतः वह झुककर उसको कैसे उठाये ? इसलिये माँने उससे कहा कि तू अपना हाथ थोड़ा-सा ऊँचा कर दे । परन्तु बालकने हाथ ऊँचा नहीं किया, उलटे नीचे लेट गया और कहने लगा कि तू मेरेको छोड़कर क्यों चली गयी ? अब गरम जमीनसे उसका शरीर जलता है और वह रोता है । माँ कहती है कि तू थोड़ा ऊँचा हाथ कर दे, पर वह उसकी बात सुनता ही नहीं ! माँ बेचारी घड़ा लेकर घर आती है और बालक भी उठकर उसके पीछे-पीछे दौड़ता है । अगर वह थोड़ा-सा ऊँचा हाथ कर ले तो उसमें क्या नुकसान होता है ? क्या अपमान होता है ? क्या बेइज्जती होती है ? क्या परिश्रम होता है ? किस योग्यताकी जरूरत होती है ? इसी तरह भगवान्‌ हमें गोदमें लेनेके लिये तैयार खड़े हैं, केवल हमें थोड़ा-सा ऊँचा हाथ करना है अर्थात् भगवान्‌के सम्मुख होना है

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।
जन्म कोटि अघ  नासहिं तबहीं ॥
                                     (मानस, सुन्दरकाण्ड ४४/१)

हमें भगवान्‌की कृपाकी तरफ देखना है और ‘हे मेरे नाथ ! हे मेरे नाथ !!’ कहकर भगवान्‌को पुकारना है । पुकारनेमात्रसे भगवान्‌ कल्याण कर देते हैं । वे पहले किये गये पापोंकी तरफ देखते ही नहीं कि इसने कितने पाप किये हैं, कितना अन्याय किया है, कितना मेरे विरुद्ध चला है

जान अवगुन प्रभु मान न काऊ । दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ॥
                                                      (मानस, उत्तरकाण्ड १/३)

रहति न प्रभु चित चूक किये की । करत सुरति सय बार हिए की ॥

                                                    (मानस, बालकाण्ड २९/३)