।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल नवमी, वि.सं. २०७५ गुरुवार
विलक्षण भगवत्कृपा
        


बालककी गलती माँको थोड़े ही याद रहती है ! बालक माँके कितना ही विपरीत चले, पर उसके सामने आते ही माँको कुछ याद नहीं रहता और वह बड़े प्यारसे उसको गोदमें ले लेती है । इसी तरह भगवान्‌को भी हमारी गलतियोंकी याद नहीं रहती । कैमेरेके सामने जो आता है, कैमरा उसके रूपको पकड़ लेता है, उसकी फोटो ले लेता है । परन्तु भगवान्‌का कैमरा और तरहका है ! हम भजन करते हैं तो इस भावको भगवान्‌ पकड़ते हैं, पर हम भूल करते हैं, उलटा चलते हैं तो इसको भगवान्‌ पकड़ते ही नहीं ! इसने मेरा नाम लिया है, यह मेरे शरण हुआ है, इसने मेरी और मेरे भक्तोंकी कथा सुनी है, सत्संग किया हैये बातें तो भगवान्‌के कैमेरेमें छप जाती हैं, पर विरुद्ध बातें छपती ही नहीं, उनकी याद भगवान्‌को रहती ही नहीं !

बडोंका यह स्वभाव होता है कि वे जिसका सुधार करते हैं, उसपर पहले शासन करते हैं, फिर उसपर स्नेह करते हैं

सासति करि पुनि करहिं पसाऊ ।
नाथ प्रभुन्ह कर  सहज  सुभाऊ ॥
                                     (मानस, बालकाण्ड ८९/२)

शासन करने और स्नेह करनेदोनोंमें उनकी कृपा समान होती है । गीतामें भी ऐसी बात आयी है । भगवान्‌ पहले अर्जुनको धमकाते हैं कि अगर तू मेरी बात नहीं सुनेगा तो नष्ट हो जायगा‘न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि’ (१८/५८) फिर प्यारसे कहते हैं

सर्वगुह्यतमं   भूयः    श्रुणु   मे   परमं   वचः ।
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ॥
                                                     (गीता १८/६४)

‘सबसे अत्यन्त गोपनीय वचन तू फिर मेरेसे सुन । तू मेरा अत्यन्त प्रिय है, इसलिये मैं तेरे हितकी बात कहूँगा ।’

भगवान्‌का, गुरुजनोंका, माता-पिताका ऐसा भाव होता है, तभी हमारा पालन होता है, नहीं तो हमारी क्या दशा हो ! संसारके लोग हमारे अवगुणोंको जान जायँ तो हमारेसे कितनी घृणा करें ! पर भगवान्‌ कण-कणकी बात जानते हैं, फिर भी सहज, स्वाभाविक कृपा करते हैं !

        ऐसो को उदार जग माहीं ।
        बिनु सेवा जो द्रवै दीनपर, राम सरिस कोउ नाहीं ॥
                                              (विनयपत्रिका १६२)

लोगोंमें हमारे अवगुण प्रकट नहीं होते, तभी हमारा काम चलता है । हमारे मनमें जो बुरी बातें आती हैं, उनको अगर लोग जान लें तो एक दिनमें कितनी मार पड़े ! परन्तु लोगोंको उनका पता नहीं लगता । भगवान्‌ तो सब जानते हैं, पर जानते हुए भी हमारा त्याग नहीं करते, प्रत्युत आँख मींच लेते हैं कि बालक है, कोई बात नहीं ! इस कारण हमारा काम चलता है, नहीं तो बड़ी मुश्किल हो जाय ! अगर भगवान्‌ हमारे लक्षणोंकी तरफ देखें तो हमारा उद्धार होना तो दूर रहा, निर्वाह होना भी मुश्किल हो जाय ! परन्तु भगवान्‌ देखते ही नहीं । ऐसे कृपासिन्धु भगवान्‌की कृपापर विश्वास रखें, उसीका भरोसा रखें

एक भरोसो एक बल   एक  आस  बिस्वास ।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास ॥
                                                  (दोहावली २७७)

नारायण !       नारायण !!      नारायण !!!


भगवान्‌ और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे