‘लोक लाहु परलोक निबाहू’—‘राम’ नाम इस लोक और परलोकमें सब जगह काम देता है । इसलिये
गोस्वामीजी कहते हैं—‘मेरे तो माँ अरु बाप दोउ आखर’ । ‘र’ और ‘म’—ये मेरे
माँ-बाप हैं । संसारमें माता-पिताके समान रक्षा करनेवाला, पालन करनेवाला, हित
करनेवाला दूसरा कोई है ही नहीं । गोस्वामीजी कहते हैं कि हमारे तो दोनों अक्षर
माता-पिता हैं, हमारा पालन करनेवाले हैं—
‘र’ रो पिता, माता ‘म’ मो है दोनोंका जीव ।
रामदास कर बन्दगी तुरत
मिलावे पीव ॥
जो माँ-बापका भक्त होता है, उसपर भगवान् राजी
हो जाते हैं । ‘राम’ नामसे भगवान्
मिल जायँ, दर्शन दे दें । लोकमें, परलोकमें सब जगह ही वह निर्वाह करनेवाला है ।
लोकमें जो चाहिये, वह देनेवाला चिन्तामणि है और परलोकमें भगवद्दर्शन करानेवाला है ।
कई ऐसे आदमी देखे हैं, जो दिनभर माँगते रहते हैं, धूमते-फिरते रहते हैं; परन्तु
उनका पेट नहीं भरता । ऐसी दशामें वे भी अगर एकान्तमें ‘राम’-‘राम’ करने लग जायँ तो
प्रत्यक्षमें उनके भी ठाट लग जायगा । अन्न, जल, कपड़े आदि किसी चीजकी कमी रहेगी
नहीं । अब नाम-जप करते ही नहीं तो उसका क्या किया जाय ? नाम-जप करके देखा जाय तो
भाग्य खुल जाता है, विलक्षण बात हो जाती है । जीते-जी भाग्यमें विशेष परिवर्तन
भगवन्नामसे होता है, इसमें कोई सन्देहकी बात नहीं है । साधारण आदमी भी नाम-जपमें
लग जाता है तो लोगोंपर विशेष असर पड़ता है ।
भजन करे पतालामें परगट होत अकास ।
दाबी दूबी नहि दबे कस्तूरी
की बास ॥
कस्तूरीको सौगन्ध दिला दें कि तुम सुगन्धि मत फैलाओ तो क्या
वह रुक जायगी ? सुगन्धि तो फैल ही जायगी । इस तरहसे कोई चुपचाप भी भजन करे और
किसीको पता ही न लगने दे तो भी महाराज यह तो प्रकट हो ही जाता है । उसकी
विलक्षणता, अलौकिकता दीखने लगती है । लोगोंपर असर पड़ने लगता है; क्योंकि भगवान्का
नाम है ही ऐसा विलक्षण । इसलिये लोक और परलोक दोनोंमें लाभ होता है । साधारण घरका
बालक साधु होकर भजनमें तत्परतासे लग जाता है तो वह सन्त-महात्मा कहलाने लगता है ।
बड़े चमत्कार उसके द्वारा हो जाते हैं, जिसको पहले कोई पूछता ही नहीं था । बात क्या
है ? यह सब भगवन्नामकी महिमा है ।
नारायण ! नारायण !!
नारायण !!!
—‘मानसमें
नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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