।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण एकादशी, वि.सं. २०७५ सोमवार
              पापमोचनी एकादशी-व्रत (सबका)
शरणागतिका रहस्य
        


च्‍चा शरणागत भक्त तो भगवान्‌के गुणोंकी तरफ भी नहीं देखता और अपने गुणोंकी तरफ भी नहीं देखता । वह भगवान्‌के ऊँचे-ऊँचे प्रेमियोंकी तरफ भी नहीं देखता कि ऊँचे प्रेमी ऐसे-ऐसे होते हैं; तत्त्वको जाननेवाले जीवन्मुक्त ऐसे-ऐसे होते हैं ।

प्रायः लोग ऐसी कसौटी लगाते हैं कि यह भगवान्‌का भजन करता है तो बीमार कैसे हो गया ? भगवान्‌का भक्त हो गया तो उसको बुखार क्यों आ गया ? उसपर दुःख क्यों आ गया ? उसका बेटा क्यों मारा गया ? उसका धन क्यों चला गया ? उसका संसारमें अपयश क्यों हो गया ? उसका निरादर क्यों हो गया । आदि-आदि । ऐसी कसौटी कसना बिलकुल फालतू बात है, बड़े नीचे दर्जेकी बात है । ऐसे लोगोंको क्या समझायें ! वे सत्संगके नजदीक ही नहीं आये, इसी वास्ते उनको इस बातका पता ही नहीं है कि भक्ति क्या होती है ? शरणागति क्या होती है ? वे इन बातोंको समझ ही नहीं सकते, परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि भगवान्‌का भक्त दरिद्र होता ही है, उसका  संसारमें अपमान होता ही है, उसकी निन्दा होती ही है । शरणागत भक्तको तो निन्दा-प्रशंसा, रोग-नीरोगता आदिसे कोई मतलब ही नहीं होता । इनकी तरफ वह देखता ही नहीं । वह यही देखता है कि मैं हूँ और भगवान्‌ हैं, बस । अब संसारमें क्या है, क्या नहीं है ? त्रिलोकीमें क्या है ? क्या नहीं है ? प्रभु ऐसे हैं, वे उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करनेवाले हैंइन बातोंकी तरफ उसकी दृष्टि जाती ही नहीं ।

किसीने एक संतसे पूछाआप किस भगवान्‌के भक्त हो ? जो उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय करते हैं, उनके भक्त हो क्या ?’ तो उस सन्तने उत्तर दिया‘हमारे भगवान्‌का तो उत्पत्ति, स्थिति, प्रलयके साथ कोई सम्बन्ध है ही नहीं । यह तो हमारे प्रभुका एक ऐश्वर्य है । यह कोई विशेष बात नहीं है ।’ शरणागत भक्तको ऐसा होना चाहिये । ऐश्वर्य आदिकी तरफ उसकी दृष्टि ही नहीं होनी चाहिये ।


ऋषिकेशमें गंगाजीके किनारे टीबड़ी पर शामको सत्संग हो रहा था । गरमी पड़ रही थी । उधरसे गंगाजीकी ठण्डी हवाकी लहर आयी तो एक सज्जनने कहा‘कैसी ठण्डी हवाकी लहर आ रही है ।’ पास बैठे दूसरे सज्जनने उनसे कहा‘हवाको देखनेके लिये तुम्हें वक्त कैसे मिल गया ? यह ठण्डी हवा आयी, यह गरम हवा आयीइस तरफ तुम्हारा खयाल कैसे चला गया ?’ भगवान्‌के भजनमें लगे हो तो हवा ठण्डी आयी या गरम आयी, सुख आया या दुःख आयाइस तरफ जबतक खयाल है, तबतक भगवान्‌की तरफ खयाल कहाँ ? इसी विषयमें हमने एक कहानी सुनी है । कहानी तो नीचे दर्जेकी है, पर उसका निष्कर्ष बड़ा अच्छा है ।