।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण कृष्ण तृतीया, वि.सं. २०७६ शुक्रवार
           सत्संगके अमृत-कण
        

(४१)

संसारको अपना न मानें तो इसी क्षण मुक्ति है ।

(४२)

किसी तरहसे भगवान्‌में लग जाओ, फिर भगवान्‌ अपने-आप सँभालेंगे

(४३)

ठगनेमें दोष है, ठगे जानेमें नहीं ।

(४४)

जिसका स्वभाव सुधर जायगा, उसके लिये दुनिया सुधर जायगी ।

(४५)

भगवान्‌के सिवाय कोई मेरा नहीं है‒यह असली भक्ति है ।

(४६)

लेकर दान देनेकी अपेक्षा न लेना ही बढ़िया है ।

(४७)

भगवान्‌ हठसे नहीं मिलते, प्रत्युत सच्‍ची लगनसे मिलते हैं ।

(४८)

भोगी व्यक्ति रोगी होता है, दुःखी होता है और दुर्गतिमें जाता है ।

(४९)

भगवान्‌से विमुख होते ही जीव अनाथ हो जाता है ।

(५०)

संसारकी आसक्तिका त्याग किये बिना भगवान्‌में प्रीति नहीं होती ।

(५१)

लेनेकी इच्छावाला सदा दरिद्र ही रहता है ।

(५२)

ऊँची-से-ऊँची जीवन्मुक्त अवस्था मनुष्यमात्रमें स्वाभाविक है ।

(५३)

भगवत्प्राप्तिका सरल उपाय क्रिया नहीं है, प्रत्युत लगन है ।

(५४)

साधन स्वयंसे होता है, मन-बुद्धिसे नहीं ।

(५५)

यदि जानना ही हो तो अविनाशीको जानो, विनाशीको जाननेसे क्या लाभ ?

(५६)

नाशवान्‌की इच्छा ही अन्तःकरणकी अशिद्धि है ।

(५७)

शरणागति मन-बुद्धिसे नहीं होती, प्रत्युत स्वयंसे होती है ।

(५८)

मनुष्यको कर्मोंका त्याग नहीं करना है, प्रत्युत कामनाका त्याग करना है ।

(५९)

परमात्माके आश्रयसे बढ़कर दूसरा कोई आश्रय नहीं है ।

(६०)

प्रारब्ध चिन्ता मिटानेके लिये है, निकम्मा बनानेके लिये नहीं ।