(४१)
संसारको अपना न मानें तो इसी क्षण मुक्ति है ।
(४२)
किसी तरहसे भगवान्में लग जाओ, फिर भगवान् अपने-आप सँभालेंगे ।
(४३)
ठगनेमें दोष है, ठगे जानेमें नहीं ।
(४४)
जिसका स्वभाव सुधर जायगा,
उसके लिये दुनिया सुधर जायगी ।
(४५)
भगवान्के सिवाय कोई मेरा
नहीं है‒यह असली भक्ति है ।
(४६)
लेकर दान देनेकी अपेक्षा न लेना ही बढ़िया है ।
(४७)
भगवान् हठसे नहीं मिलते, प्रत्युत सच्ची लगनसे मिलते हैं ।
(४८)
भोगी व्यक्ति रोगी होता
है, दुःखी होता है और दुर्गतिमें जाता है ।
(४९)
भगवान्से विमुख होते ही जीव अनाथ हो जाता है ।
(५०)
संसारकी आसक्तिका त्याग
किये बिना भगवान्में प्रीति नहीं होती ।
(५१)
लेनेकी इच्छावाला सदा दरिद्र ही रहता है ।
(५२)
ऊँची-से-ऊँची जीवन्मुक्त अवस्था मनुष्यमात्रमें स्वाभाविक है ।
(५३)
भगवत्प्राप्तिका सरल उपाय
क्रिया नहीं है, प्रत्युत लगन है ।
(५४)
साधन स्वयंसे होता है, मन-बुद्धिसे नहीं ।
(५५)
यदि जानना ही हो तो अविनाशीको
जानो, विनाशीको जाननेसे क्या लाभ ?
(५६)
नाशवान्की इच्छा ही अन्तःकरणकी अशिद्धि है ।
(५७)
शरणागति मन-बुद्धिसे नहीं होती, प्रत्युत स्वयंसे होती है ।
(५८)
मनुष्यको कर्मोंका त्याग
नहीं करना है, प्रत्युत कामनाका त्याग करना है ।
(५९)
परमात्माके आश्रयसे बढ़कर दूसरा कोई आश्रय नहीं है ।
(६०)
प्रारब्ध चिन्ता मिटानेके
लिये है, निकम्मा बनानेके लिये नहीं ।
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