।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण कृष्ण तृतीया, वि.सं. २०७६ शनिवार
           सत्संगके अमृत-कण
        

(६१)
श्रेष्ठ पुरुष वही है, जो दूसरोंके हितमें लगा हुआ है ।
(६२)
चरित्रकी सुन्दरता ही असली सुन्दरता है ।
(६३)
रुपयोंको सबसे बढ़िया मानना बुद्धि-भ्रष्ट होनेका लक्षण है ।
(६४)
याद करो तो भगवान्‌को याद करो, काम करो तो सेवा करो ।
(६५)
धर्मके लिये धन नहीं चाहिये, मन चाहिये ।
(६६)
मनुष्यको वस्तु गुलाम नहीं बनाती, उसकी इच्छा गुलाम बनाती है ।
(६७)
शरीरका सदुपयोग केवल संसारकी सेवामें ही है ।
(६८)
भगवान्‌ सर्वसमर्थ होते हुए भी हमारेसे दूर होनेमें असमर्थ हैं ।
(६९)
यदि शान्ति चाहते हो तो कामनाका त्याग करो ।
(७०)
कुछ भी लेनेकी इच्छा भयंकर दुःख देनेवाली है ।
(७१)
पारमार्थिक उन्नति करनेवालेकी लौकिक उन्नति स्वतः होती है ।
(७२)
संसार विश्वास करनेयोग्य नहीं है, प्रत्युत सेवा करनेयोग्य है ।
(७३)
सच्ची बातको स्वीकार करना मनुष्यका धर्म है ।
(७४)
ज्ञान मुक्त करता है, पर ज्ञानका अभिमान नरकोंमें ले जाता है ।
(७५)
प्रतिक्षण बदलनेवाले संसारपर विश्वास ही भगवान्‌पर विश्वास नहीं होने देता ।
(७६)
भोगी योगी नहीं होता, प्रत्युत रोगी होता है ।
(७७)
सबमें भगवद्‌भाव करनेसे सम्पूर्ण विकारोंका नाश हो जाता है ।
(७८)
भक्त दुर्लभ है, भगवान्‌ नहीं ।
(७९)
विचार करो, क्या ये दिन सदा ऐसे ही रहेंगे ?
(८०)
भगवान्‌ हमारे हैं, पर मिली हुई वस्तु हमारी नहीं है, प्रत्युत भगवान्‌की है ।