।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण कृष्ण दशमी, वि.सं. २०७६ शनिवार
                  एकादशी-व्रत कल है
 मनकी हलचलके नाशके सरल उपाय
        

सन्त-महात्मा या महापुरुष प्रायः अपने प्रवचनमें बार-बार कहा करते हैं कि जिस कामको हमलोग कर नहीं सकते अर्थात् जिसका होना हमसे सम्भव ही नहीं है, तथा जिसे करना भी नहीं चाहिये, उसको करनेकी इच्छासे अशान्ति होगी ही । अतः उसे करनेकी इच्छा नहीं करनी चाहिये । क्योंकि ऐसी इच्छा होनेसे कोई चीज पूरी मिलती नहीं, यदि मिल जाय तो ठहरती नहीं, ठहरती है तो अपूर्ण होनेके कारण उससे तृप्ति नहीं हो सकती । इसलिये इच्छा या कामना रखकर क्रिया करना उचित नहीं है । यदि यही चाह परमात्माकी प्राप्तिके लिये उत्कट हो जाय तो उनकी प्राप्ति हो जाय । श्रीभगवान्‌ नित्य प्राप्त हैं, इसलिये केवल चाहमात्रसे ही मिल जाते हैं । उनकी प्राप्ति होनेके बाद कृत्य-कृत्यता, ज्ञात-ज्ञातव्यता और प्राप्त-प्राप्तव्यता सभी प्राप्त हो जाती है, कुछ भी बाकी नहीं रहता ।

विचार करना चाहिये‒जो होनेवाला है वह होकर रहेगा । जो नहीं होनेवाला है वह होगा नहीं । फिर नयी चाह करें ही क्यों ? केवल अपने कर्तव्यका तत्परतासे पालन करते रहें ।

जब भी मनमें दुःख, शोक, चिन्ता, विषाद और हलचल हो तभी यदि नीचे लिखे सिद्ध मन्त्रोंकी कई बार आवृत्ति कर ली जाय तो ये सभी विकार शीघ्र ही दूर हो सकते हैं ।

भविष्यकी चिन्ता मिटानेके लिये
(सिद्धमन्त्र)

              (क)  यदभावि न तद्भावि भावि चेन्न तदन्यथा ।
      इति चिन्ताविषघ्नोऽयमगदः किं न पीयते ॥

अर्थ‒जो नहीं होनेवाला है वह होगा नहीं, जो होनेवाला है वह होकर ही रहेगा । चिन्तारूपी विषका शमन करनेवाली इस औषधिका पान क्यों न किया जाय !

                (ख)         होइहि सोइ राम रचि राखा ।
           को करि तर्क  बढ़ावै  साखा ॥

                           भूत, भविष्य और वर्तमान
                    तीनों कालकी चिन्ता मिटानेके लिये
                                       (सिद्धमन्त्र)

        (क)  अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
 गतासूनगतासूंश्च   नानुशोचन्ति  पण्डिताः ॥
                                        (गीता २/११)

अर्थ‒तू शोक न करनेयोग्य मनुष्योंके लिये शोक करता है और पण्डितोंके-से वचनोंको कहता है; परन्तु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये हैं, उनके लिये भी पण्डितजन शोक नहीं करते ।

     (ख) होतब होत बड़ो बली ताको अटल बिचार ।
   किंण मानी मानी  नहीं  होनहार  से  हार ॥


(जो होनेवाला होता है, वह बड़ा बलवान होता है, उसका अटल विचार होता है । कइयोंने तो यह बात मान ली और कइयोंने मानी नहीं, जो होनहार है उससे तो हार माननी ही पड़ेगी )

हर समय भगवान्‌के भरोसे प्रसन्न रहनेके लिये
(सिद्धमन्त्र)

(क)  सर्वधर्मान्  परित्यज्य  मामेकं  शरणम व्रज ।
           अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
                                                          (गीता १८/६६)

अर्थ‒सम्पूर्ण धर्मोंको अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य-कर्मोंको मुझमें त्यागकर (समर्पितकर) तू केवल एक मेरी ही शरणमें आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर ।

          (ख)  चिन्ता दीनदयाल को मो मन सदा अनन्द ।
                जायो सो प्रतिपालिहै   रामदास गोविन्द ॥