।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण कृष्ण एकादशी, वि.सं. २०७६ रविवार
            कामदा एकादशी-व्रत (सबका)
 मनकी हलचलके नाशके सरल उपाय
        


अन्तःकरणमें अधिक उथल-पुथल होनेपर
मनको समझानेके लिये (सिद्ध मन्त्र)

(क)       मना मनोरथ छोड़ दे
तेरा  किया  न  होय ।
पानी में घी नीपजे तो
रूखा खाय  न  कोय ॥

भजन

(ख)      जीव तू मत करना फिकरी,
जीव तू मत करना फिकरी ।
भाग लिखी सो हुई रहेगी,
भली बुरी सगरी ॥टेर॥
तप करके  हिरनाकुश  आयो,  वर  पायो  जबरी ।
लोह लकड़ से मर्‌यो नहीं, वो मर्‌यो मौत नखरी ॥१॥
     सहस्र  पुत्र  राजा  सगरके,   तप   कीनो  अकरी ।
थारी गति ने तू ही जाने, आग मिली  ना  लकरी ॥२॥
तीन लोक  की  माता  सीता,  रावण  जाय  हरी ।
जब  लक्ष्मणने  लंका  घेरी,  लंका  गइ बिखरी ॥३॥
आठ पहर साहेब को रटना,  ना करना जिकरी ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो रहना बे-फिकरी ॥४॥

चिन्ता छोड़ते हुए अपने कर्तव्यसे कभी च्युत न हों । श्रीभगवान्‌की आज्ञा है‒

कर्मण्येवाधिकारस्ते   मा  फलेषु कदाचन ।
 मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥
                                           (गीता २/४७)

अर्थ‒तेरा कर्म करनेमात्रमें ही अधिकार है, फलमें कभी नहीं; और तू कर्मोंके फलकी वासनावाला भी मत हो तथा तेरी कर्म न करनेमें भी प्रीती न हो ।

इसलिये करनेमें सावधान रहे और जो हो जाय, उसमें प्रसन्न रहे एवं सदा भगवन्नाम जपता रहे ।

श्रीभगवन्नाम-माहात्मय

सम्पूर्ण पापोंके नाशके लिये भगवन्नाम खास औषधि है । चारों ही युग और चारों ही वेदोंमें नामकी महिमा है, परन्तु कलियुगमें विशेष है; क्योंकि कलियुगमें इसके समान कोई उत्तम उपाय नहीं है‒

चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ । कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ ॥
तुलसी हठि हठि कहत  नित,  चित सुनि हित करि मानि ।
  लाभ राम सुमिरन  बड़ो,  बड़ी बिसारे हानि ॥
 बिगरी  जन्म  अनेक  की  सुधरै  अबहीं आजु ।
   होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ॥

जितनी ही प्रतिकूल परिस्थिति आती है, वह सब पूर्व-पापोंका नाश करनेके लिये तथा अपने कर्तव्यके विषयमें सचेत करनेके लिये आती है । उस समय वह विचार करे‒ ‘इससे मेरा अन्तःकरण पवित्र हो रहा है ।’ हृदयकी सारी हलचल मिटाने और अन्तःकरणको भगवन्मुखी बनानेके लिये जप और कीर्तन करना चाहिये एवं श्रीभगवान्‌को बारम्बार प्रणाम करना चाहिये । श्रीमद्भागवतके अन्तिम श्लोकमें कहा है‒

नामसंकीर्तनं    यस्य   सर्वपापप्रणाशनम् ।
 प्रणामो दुःखशमानास्तं नमामि हरिं परम् ॥


अर्थ‒जिनके नामोंका संकीर्तन सारे पापोंको सर्वथा नष्ट कर देता है और जिनको किया हुआ प्रणाम सारे दुःखोंको शान्त कर देता है, उन्ही परमेश्वर श्रीहरिको मैं प्रणाम करता हूँ ।