।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण कृष्ण द्वादशी, वि.सं. २०७६ सोमवार
                  श्रावण सोमवार-व्रत 
 मनकी हलचलके नाशके सरल उपाय
        


मनकी हलचलका कारण क्या है ?

जब मनमें हलचल होने लगे तभी यह विचार करना चाहिये कि इसका कारण क्या है ? गहराईसे विचार करनेपर पता लगेगा कि अपनी मनचाहीका न होना और अनचाहीका हो जाना‒यही मनकी हलचलका कारण है ।

         भक्तियोगकी दृष्टिसे शरीर, प्राण, इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि तथा मैंपन अपना नहीं है; अपितु सब कुछ भगवान्‌का है । इनको अपना और अपनेको भगवान्‌से अलग मानना, इस विपरीत मान्यतासे ही मनमें दुःख और हलचल होती है । हलचल होनेका और कोई कारण नहीं है । जो कुछ होता है वह हमारे परमसुहृद् प्रभुका मंगलमय विधान है, यह सोचकर प्रसन्न होना चाहिये; उलटे मनको मैला करना सर्वथा नासमझी ही है ।

ज्ञानयोगकी दृष्टिसे शरीर, प्राण, इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि तथा मैंपन सब कुछ प्रकृतिका है । मैंका आधार परमात्मतत्त्व है, वह अपना स्वरूप ही है । प्रकृति ही प्रकृतिके गुणोंमें बर्त रही है (गीता १३/२९), स्वरूप तो अपने आपमें स्थित है ही । उसमें क्रिया करना-कराना सम्भव ही नहीं है । तब फिर हलचल कैसी ?

कर्मयोगकी दृष्टिसे शरीर, प्राण, मन और बुद्धि तथा मैंपन‒यह सब कुछ अपना नहीं, संसारका है और इनको संसारकी सेवामें ही लगाना है । अपने लिये इनकी आवश्यकता नहीं है । इनको अपना तथा अपने लिये माननेसे ही दुःख आता है और हलचल होती है । यह मान्यता‒यह भूल मिट गयी, फिर दुःख और हलचल कैसे रह सकती है ?

ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, पुरुषार्थवाद और प्रारब्धवाद इन सबका तात्पर्य मनकी चिन्ताको मिटानेमें ही है, कर्तव्यकर्मको छुड़ा देनेमें बिलकुल नहीं है ।

उपर्युक्त दृष्टियोंसे यह बात सिद्ध होती है कि शरीर आदिको चाहे तो भगवान्‌का, चाहे प्रकृतिका और चाहे संसारका मान लो । ‘ये अपने नहीं है’‒इस नित्य-सिद्ध बातको न मानकर अपना मानना भूल और बेसमझी है । यही दुःखोंका और हलचलका कारण है । भूल मिटनेके बाद हलचलके लिये किंचिन्मात्र भी स्थान नहीं है । फिर तो केवल आनन्द-ही-आनन्द है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘जीवनोपयोगी कल्याण-मार्ग’ पुस्तकसे