।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं. २०७६ रविवार
       मातामह-श्राद्ध, शारदीयनवरात्रारम्भ
भगवान्‌से अपनापन



सज्जनो ! यह शरीर माता-पिताका है । इसलिये माता-पिताकी खूब सेवा करो, सब तरहसे उनको सुख पहुँचाओ, उनका आदर-सत्कार करो । वास्तवमें सेवा करके भी आप उऋण नहीं हो सकते । माँके ऋणसे कोई भी उऋण नहीं हो सकता । संसारसे जितने भी सम्बन्ध हैं, उनमें सबसे बढकर माँका सम्बन्ध है । इस शरीरका ठीक तरहसे पालन-पोषण जैसा माँ करती है, वैसा कोई नहीं कर सकतामात्रा समं नास्ति शरीरपोषणम् । इसलिए कहा गया है

कुलं  पवित्रं जननी कृतार्था    वसुन्धरा  पुण्यवती च तेन ।
अपारसंवित्सुखसागारेऽस्मिन लीनं परे ब्रह्मणि यस्य चेतः ॥
                                  (सकंन्दपुराण, माहे. कौमार. ५५/१४०)

अर्थात् जिसका अन्तःकरण परब्रह्म परमात्मामें लीन हो गया है, उसका कुल पवित्र हो जाता है, उसकी माता कृतार्थ हो जाती है, और यह सम्पूर्ण पृथ्वी महान् पवित्र हो जाती है ।

जननी जणे तो भक्त जण, के दाता कै सूर ।
नहिं तो रहजे बाँझडी,   मती गमाजे नूर ॥

         मैंने सन्तोंका बधावा बोलते समय सुना हैधिन जननी ज्यांरे ए सुत जाया ए, सोहन थाल बजाया ए । जिस माताने ऐसे भक्तको जन्म दिया है, वह धन्य है ! कारण कि बालकपर माँका विशेष असर पडता है । प्रायः देखा जाता है कि माँ श्रेष्ठ होती है तो उसका पुत्र भी श्रेष्ठ होता है । इसलिये जिसका मन भगवान्‌में लग जाता है, उसकी माँ कृतार्थ हो जाती है ।

आप दान-पुण्य करके, बड़ा उपकार करके इतना लाभ नहीं ले सकते, जितना लाभ भगवान्‌के शरण होनेसे ले सकते हैं । कारण कि परमात्माके साथ हमारा अकाट्य-अटूट सम्बन्ध है । यह सम्बन्ध कभी भी टूट नहीं सकता । इस सम्बन्धको जीव ही भूला है, भगवान्‌ नहीं भूले । इसलिये जीवके ऊपर ही भगवान्‌की तरफ चलनेकी जिम्मेवारी है । भगवान्‌ तो अपनी ओरसे कृपा कर ही रहे हैं, चाहे वह कैसा ही क्यों न हो । भगवान्‌ सबका पालन, भरण-पोषण करते हैं । पापीको दण्ड देकर सुधारते हैं, नरकोंमें डालकर पवित्र करते हैं । इस तरह भगवान्‌ तो सम्पूर्ण जीवोंका पालन-पोषण करनेमें, उनको पवित्र करनेमें लगे हुए हैं । भगवान्‌ कहते हैं

सनमुख होई जीव मोहि जबहीं ।
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥
                              (मानस, सुन्दर.४४/२)


जीव ही भगवान्‌से विमुख हुआ है, इसलिये इस पर ही भगवान्‌के सम्मुख होनेकी जिम्मेवारी है । जहाँ सम्मुख हुआ कि बेडा पार !  इसलिये हम प्रभुके चरणोंकी शरण हो जायँ और अपनी अहंता बदल दें कि हम परमात्माके हैं । जैसे बहनें-माताएँ अपनी अहंता बदल देती है कि मैं अब इस घरकी नहीं हूँ; जहाँ विवाह हुआ है, उस घरकी हूँ । उनका गोत्र बदल जाता है, पिताका गोत्र नहीं रहता । कई जगह ऐसी बात आती है कि घरमें कोई बालक पैदा हुआ और सूतक लगनेके कारण हम ठाकुरजीकी सेवा नहीं कर सकते, तो कहते है कि तुम्हारी जो विवाहित लड़की घरपर है, वह सेवा कर देगी; क्योंकि उसको तुम्हारा सूतक नहीं लगता, उसका गोत्र दूसरा है । वही लडकी आपके घरमें है और उसके ससुरालमें बालक पैदा हुआ तो आप उसको कहते हैं कि देख बेटी, जलको हाथ मत लगाना । वह खास अपनी बेटी है, पर ससुरालमें बालक पैदा होनेसे सूतक लगता है । ऐसे ही आप अपनी अहंता बदल दें कि हम तो भगवान्‌के हैं तो आप वास्तविकतातक पहुँच जायँगे ।