।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आश्विन शुक्ल द्वितीया, वि.सं. २०७६ सोमवार
भगवान्‌से अपनापन



हम अपनी तरफसे भगवान्‌को अपना मानते नहीं, पर भगवान्‌ अपनी तरफसे हमें अपना मानते हैं । मानते ही नहीं, जानते भी हैं । बच्‍चा माँको अपनी माँ मानता है, पर कभी-कभी अड़ जाता है कि तू मेरा कहना नहीं मानती तो मैं तेरा बेटा नहीं बनूँगा । माँ हँसती है; क्योंकि वह जानती है कि बेटा तो मेरा ही है । बच्‍चा समझता है कि माँको मेरी गरज है, बेटा बनना माँको निहाल करना है, इसलिये कहता है कि तेरा बेटा नहीं बनूँगा, तेरी गोदमें नहीं आऊँगा । परन्तु बेटा नहीं बननेसे हानि किसकी होगी ? माँका क्या बिगड़ जायगा ? माँ तो बच्‍चेके बिना वर्षोसे जीती रही है, पर बच्‍चेका निर्वाह माँके बिना कठीन हो जायगा । बच्‍चा उलटे माँपर अहसान करता है । ऐसे ही हम भी भगवान्‌पर अहसान कर सकते है !

भगवान्‌के एक बड़े प्यारे भक्त थे, नाम याद नहीं है । वे रात-दिन भगवद्भजनमें तल्लीन रहते थे । किसीने उनके लिये एक लंबी टोपी बनायी । उस टोपीको पहनकर वे मस्त होकर कीर्तन कर रहे थे । कीर्तन करते-करते वे प्रेममें इतने मग्न हो गये कि भगवान्‌ स्वयं आकर उनके पास बैठ गये और बोले कि भगतजी ! आज तो आपने बड़ी ऊँची टोपी लगायी ! वे बोले कि किसीके बापकी थोड़े ही है, मेरी है । भगवान्‌ने कहा कि मिजाज करते हो ? तो बोले कि माँगकर थोड़े ही लाये हैं मिजाज ? भगवान्‌ पूछा कि मेरेको जानते हो ? वे बोले कि अच्छी तरहसे जानता हूँ । भगवान्‌ बोले कि यह टोपी बिक्री करते हो क्या ? वे बोले कि तुम्हारे पास देनेको है ही क्या जो आये हो खरीदनेके लिये ? त्रिलोकी ही तो है तुम्हारे पास, और देनेको क्या है ? भगवान्‌ बोले कि इतना मिजाज ! तो वे बोले कि किसीका उधार लाये हैं क्या ? भगवान्‌ने कहा कि देखो, मैं दुनियासे कह दूँगा कि ये भगत-वगत कुछ नहीं हैं तो दुनिया तुम्हारेको मानेगी नहीं । वे बोले कि अच्छा, आप भी कहा दो, हम भी कह देंगे कि भगवान्‌ कुछ नहीं हैं । आपकी प्रसिद्धि तो हमलोगोंने की है, नहीं तो आपको कौन जानता है ? भगवान्‌ने हार मान ली !


माँके हृदयमें जितना प्रेम होता है उतना प्रेम बच्‍चोंके हृदयमें नहीं होता । ऐसे ही भगवान्‌के हृदयमें अपार स्नेह है । अपने स्नेहको, प्रेमको वे रोक नहीं सकते और हार जाते हैं ! और सबसों गये जीत, भगतसे हार्यो कितनी विलक्षण बात है ! ऐसे भगवान्‌के हो जाओ । दूसरोंके साथ हमारा सम्बन्ध केवल उनकी सेवा करनेके लिये है । उनको अपना नहीं मानना है । अपना केवल भगवान्‌को मानना है । भगवान्‌की भी सेवा करनी है, पर उनसे लेना कुछ नहीं है ।