।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आश्विन शुक्ल तृतीया, वि.सं. २०७६ मंगलवार
भगवान्‌से अपनापन



आपकी कन्या अपनी अहंता बदल देती है, अपनेको दूसरे घरकी बहू मान लेती है । क्या आपमें उस कन्या-जितनी सामर्थ्य भी नहीं है ? जिस कन्याका आपने पालन-पोषण किया, बड़ी धूमधामसे विवाह किया, उस कन्याके बदलनेपर (दूसरे घरको अपना माननेपर) भी आप नाराज नहीं होते । ऐसे ही आप अपनेको भगवान्‌का और भगवान्‌को अपना मान लें तो कोई नाराज नहीं होगा; क्योंकि यह सच्‍ची बात है । मीराबाईने कहामेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई । गिरधर गोपालके सिवाय मेरा कोई नहीं है और मैं किसीकी नहीं हूँ ।

आप नौकरी करो तो आपकी योग्यताके अनुसार आपको तनख्वाह मिलेगी । परन्तु आप घरमें माँके पास जाओ तो क्या माँ आपकी योग्यताके अनुसार रोटी देगी । आप काम करो तो भी रोटी देगी और काम न करो तो भी रोटी देगी । इस तरह भजन करनेसे ही भगवान्‌से सम्बन्ध होगा, भजन न करनेसे सम्बन्ध नहीं होगायह बात नहीं है । यदि आप भगवान्‌से अपनापन कर लेंगे कि हे नाथ ! मैं तो आपका ही बालक हूँ, तो भगवान्‌ सोचेंगे कि यह जैसा भी है, अपना ही बालक है ! अतः भगवान्‌ को आपका पालन करना ही पड़ेगा । इसलिये ‘मैं तो आपका ही हूँ और आप ही मेरे हैं’—यह बड़ा सीधा रास्ता है ।

भगवान्‌ कहते हैं कि यह जीव है तो मेरा ही अंश, पर प्रकृतिमें स्थित शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धिको खींचता है, उनको अपना मानता है (गीता १५/७) ! अरे किस धंधेमें लग गया ! है कहाँका और कहाँ लग गया ! संसारकी सेवा करो । अपने तन, मन, धन, बुद्धि, योग्यता, अधिकार आदिसे दूसरोंको सुख पहुँचाओ, पर उनको अपना मत मानो । यह अपनापन टिकेगा नहीं । केवल सेवा करनेके लिये ही वे अपने हैं । संसारकी जिन चीजोंमें अपनापन कर लेते हैं, वे ही हमें पराधीन बनाती हैं । वहम होता है कि इतना परिवार मेरा, इतना धन मेरा, पर वास्तवमें ये तेरे नहीं हैं, तू इनका हो गया, इनके पराधीन हो गया ! न तो ये हमारे साथ रहेंगे और न हम इनके साथ रहेंगे । इसलिये बड़े उत्साह और तत्परतासे इनकी सेवा करो तो दुनिया भी राजी हो जाय और भगवान्‌ भी राजी हो जायँ ! आप भी सदा आनन्दमें, मौजमें रहें ! जब सेवा करनेवाला नहीं मिलता, तब सेवा चाहनेवाला दुःखी रहता है । परन्तु सेवा करनेवाला सदा सुखी रहता है, आनन्दमें रहता है ।

नारायण !      नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘भगवान्‌से अपनापन’ पुस्तकसे