।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक कृष्ण अष्टमी, वि.सं. २०७६ सोमवार
         शरणागतिकी विलक्षणता



परमात्माका आश्रय लिये बिना सब आश्रय अधूरे हैं, क्योंकि परमात्माके सिवाय और कोई सर्वोपरि तथा पूर्ण नहीं है । रुपये, बेटे-पोते, पद, योग्यता, समाजका बल, अस्त्र-बल, शस्त्र-बल आदि सब-के-सब तुच्छ ही हैं और पूर्ण भी नहीं हैं । अगर परमात्माका आश्रय ले ले, तो फिर और किसीका आश्रय लेना नहीं पड़ेगा । जो भगवान्‌के चरणोंका आश्रय ले लेता है, उसको फिर दूसरे आश्रयकी जरूरत ही नहीं रहती । सुग्रीवने भगवान्‌ श्रीरामका आश्रय लिया तो भगवान्‌ने कह दिया‒

सखा सोच  त्यागहु  बल मोरें ।
सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥
                                                        (मानस ४/७/५)

लोक-परलोकका सब तरहका काम सिवा ईश्वरके कोई कर ही नहीं सकता । ऐसे सर्वोपरि ईश्वरको छोड़कर जो दूसरी तुच्छ चीजोंका सहारा लेता है, दूसरी तुच्छ चीजोंको लेकर अपनेमें बड़प्पनका अनुभव करता है, वह एक तरहसे नास्तिक है‒ईश्वरको न माननेवाला है । अगर वह ईश्वरको मानता तो उसको ईश्वरका ही सहारा होता ।

भगवान्‌का सहारा लेनेवाला परतन्त्र नहीं रहता । एक विचित्र बात है कि पराधीन रहनेवाला पराधीन नहीं रहता ! तात्पर्य है कि भगवान्‌के अधीन रहनेवाला पराधीन नहीं रहता; क्योंकि भगवान्‌ ‘पर’ नहीं हैं । मनुष्य पराधीन तब होता है, जब वह ‘पर’ के अधीन हो अर्थात् धन, बल, विद्या, बुद्धि आदिके अधीन हो । भगवान्‌ तो अपने हैं‒‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी’, इसलिये उनका आश्रय लेनेवाला पराधीन नहीं होता है; निश्चिन्त होता है, निर्भय होता है, निःशोक होता है, निशंक होता है । दूसरेके अधीन रहनेवालेको स्वप्नमें भी सुख नहीं होता‒‘पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं’ (मानस १/१०२/३); परन्तु भगवान्‌के अधीन रहनेवालेको स्वप्नमें भी दुःख नहीं होता । मीराबाईने कहा‒

ऐसे  बरको  क्या  बरूँ,  जो  जन्मे  अरु  मर  जाय ।
बर बरिये गोपालजी, म्हारो चुड़लो अमर हो जाय ॥

इस तरह केवल भगवान्‌का आश्रय ले ले तो सदाके लिये मौज हो जाय । स्वप्नमें भी किसीकी किंचिन्मात्र भी गरज न रहे ! जब किसी-न-किसीका आश्रय लेना ही पड़ता है है तो सर्वोपरिका ही आश्रय लें, छोटेका आश्रय क्या लें ? अतः सबसे पहले ही यह मान लें कि भगवान्‌ हमारे और हम भगवान्‌के हैं‒
       त्वमेव माता च पिता त्वमेव
                                  त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
       त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
                                      त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

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माता रामो  मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।


माँ कौन है भगवान्‌ । सखा कौन है ? भगवान्‌ । धन कौन है ? भगवान्‌ । विद्या कौन है ? भगवान्‌ । हमारे सब कुछ भगवान्‌ ही हैं ।