।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक कृष्ण द्वादशी, वि.सं. २०७६ शुक्रवार
  गोवत्सद्वादशी-व्रत, धन्वन्तरी-जयन्ती, धनतेरस
      स्वभाव-सुधारकी आवश्यकता



ऐसी-ऐसी बातें याद आती हैं कि अगर एकपर भी ध्यान दिया जाय, तो एकदम लाभ हो जाय । ऐसी कई बातें हैं । उनमेंसे एक बात कहता हूँ । मनुष्योंने प्रायः भजन, स्मरण, जप, कीर्तन, सत्संग, स्वाध्याय, व्रत-नियम आदिको महत्त्व दे रखा है । इसमें भी भजन-स्मरणको महत्त्व देते हैं । भगवान्‌के सम्बन्धकी जितनी महिमा है, उतनी महिमा और किसीकी नहीं है, यह सच्‍ची बात है । परन्तु फिर भी जैसा लाभ होना चाहिये, वैसा नहीं हो रहा है । उसका कारण क्या है ? वह यह है कि मनुष्य अपने स्वभावके सुधारकी तरफ ध्यान नहीं देता । पुराना जैसा स्वभाव है वैसा ही करते हैं । तो उससे क्या होगा ? किया हुआ भजन-स्मरण कहीं जायगा नहीं, उसका नाश नहीं होगा, परन्तु वर्तमानमें उसका जीवन शुद्ध, निर्मल चमकेगा नहीं ।

स्वभावमें   दो भयंकर व्याधियाँ हैं‒संग्रह करना और सुख भोगना । इससे स्वार्थ और अभिमान‒ये विशेष दोष आते हैं । इनसे स्वभाव बहुत बिगड़ता है । अपना भी बिगाड़ होता है और दूसरोंका भी । तो अगर पारमार्थिक उन्नति चाहते हैं तो स्वभावका सुधार करें । और जो स्वभावका सुधार है, वह इतने ऊँचे दर्जेकी चीज है कि भगवान्‌को आस्तिक मानते हैं, नास्तिक नहीं मानते, परन्तु सुधरे हुए स्वभाववालोंको आस्तिक और नास्तिक‒दोनों ही मानेंगे । मनुष्य किसी सम्प्रदायका क्यों न हो, उसका सुधरा हुआ स्वभाव सभीको अच्छा लगेगा, सबके भीतर उसका असर पड़ेगा । जिसका स्वभाव बिगड़ा हुआ है, वह अपने सम्प्रदायवालोंको अच्छा नहीं लगेगा, फिर दूसरे सम्प्रदायवाले उसका क्या आदर करेंगे !

अपने स्वभावका सुधार करना बहुत आवश्यक है । भगवान्‌ने तो इतना कह दिया कि दैवी सम्पत्ति मुक्तिके लिये है और आसुरी सम्पत्ति बाँधनेके लिये है‒

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।
                                                           (गीता १६/५)


स्वार्थबुद्धि, भोगबुद्धि‒यही आसुरी स्वभाव है । असुर उसे नहीं कहते, जिसके सींग होते हैं । जो स्वार्थमें पड़कर पैसोंके लिये, भोगके लिये अनर्थ करते हैं, वे असुर हैं । भगवान्‌ने गीतामें कहा है कि राक्षसी, आसुरी और मोहिनी स्वभाववाले लोग मेरा भजन नहीं करते, अपितु मेरी अवहेलना करते हैं, तिरस्कार करते हैं (गीता ९/११-१२) । राक्षसी स्वभाववाले वे हैं, जो अपने स्वार्थके लिये, अपने सुखके लिये दूसरोंका नाश करें और मोहिनी स्वभाववाले वे हैं जो मूढ़तासे बिना किसी मतलबसे दूसरोंका नाश करें, दूसरोंका नुकसान करें । आजकल आसुरी स्वभाव बहुतोंमें है । क्रोध तो आने-जानेवाला है, मूढ़ता सत्संगसे नष्ट हो जाती है, परन्तु यह स्वार्थ-दोष हरदम रहता है । अपने शरीरके सुख-आराम और अनुकूलताकी इच्छा आसुरी प्रकृति है, जो हरदम रहती है ।