भगवान्के दर्शनके लिये क्या करें ? भगवान्के नामका जप करें
और भगवान्से प्रार्थना करें कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ तो इससे भगवान्में
प्रेम हो जायगा और प्रेम होनेसे भगवान् प्रकट हो जायँगे ।
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जबतक अपने लिये कुछ भी ‘करने’ और ‘पाने’ की इच्छा रहती है,
तबतक नित्यप्राप्त परमात्मतत्त्वका अनुभव नहीं हो सकता ।
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भगवत्प्राप्ति केवल उत्कट अभिलाषासे होती है । उत्कट
अभिलाषा जाग्रत् न होनेमें मुख्य कारण सांसारिक भोगोंकी कामना ही है ।
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सत्ययुग आदिमें बड़े-बड़े ऋषियोंको जो भगवान् प्राप्त हुए
थे, वे ही आज कलियुगमें भी सबको प्राप्त हो सकते हैं ।
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भोगोंकी प्राप्ति सदाके लिये नहीं
होती और सबके लिये नहीं होती । परन्तु भगवान्की प्राप्ति सदाके लिये होती है और
सबके लिये होती है ।
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परमात्माकी प्राप्तिमें भावकी प्रधानता है, क्रियाकी नहीं ।
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भगवान् हठसे नहीं मिलते, प्रत्युत सच्ची लगनसे मिलते हैं ।
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परमात्माकी प्राप्तिमें मनुष्यके पारमार्थिक भाव, आचरण आदिकी मुख्यता है, जाति या वर्णकी मुख्यता नहीं
।
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परमात्मप्राप्तिमें विवेक, भाव और वैराग्य (रागका त्याग) जितना मूल्यवान् है, उतनी क्रिया मूल्यवान्
नहीं है ।
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जब प्रत्येक क्रियाका आदि-अन्त होता है तो
फिर उसका फल कैसे अनन्त होगा ? अतः अनन्त तत्त्व (परमात्मा) क्रियासाध्य नहीं है ।
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परमात्मप्राप्तिकी उत्कट अभिलाषा होनेसे एक
विरहाग्नि उत्पन्न होती है, जो अनन्त जन्मोंके पापोंका नाश करके परमात्मप्राप्ति
करा देती है ।
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परमात्मप्राप्तिकी उत्कट अभिलाषा न होनेमें
खास कारण है‒सांसारिक सुखकी इच्छा, आशा और भोग ।
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कोई चीज समानरूपसे सबको मिल सकती है तो वह
परमात्मा ही है । परमात्माके सिवाय कोई भी चीज समानरूपसे सबको नहीं मिल सकती ।
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हम परमात्माके सिवाय और कुछ प्राप्त कर ही
नहीं सकते, जो प्राप्त करेंगे, वह सब ‘नहीं’ में चला जायगा ।
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