लोगोंमें कहावत है‒‘छल-बलकी खेती भली, बेला-पुलको दान ।’ वर्षा बरसते ही चट खेती कर लो
तो वह हो जायगी । दो दिनके बाद वह नहीं होगा, जो आरम्भमें हो जायगा । इसी प्रकार जब सुपात्र मिल जाय, तभी दान दे दो तो उसका बड़ा
भारी पुण्य होता है । द्रौपदीकी एक बात हमने सुनी है । द्रौपदी पहले
जन्ममें एक स्त्री थी । एक दिन वह नदीमें जल भरने गयी । सरदीका समय था । एक
ब्राह्मण देवता लँगोटी लगाकर नदीमें स्नान कर रहा था । संयोगवश उसकी लँगोटी
पानीमें बह गयी । बाहर माताएँ खड़ी थीं । वह बेचारा ठण्डसे काँपने लगा । परन्तु
बाहर कैसे आये ? कपड़ा था नहीं पासमें । उस स्त्रीने देखा कि इस बेचारेके पास कपड़ा
नहीं है और सरदीमें ठिठुर रहा है । उसने अपनी साड़ीकी लीरी फाड़कर उसकी तरफ फेंकी,
पर वह बह गयी । एक-दो लीरी फाड़कर उसकी तरफ फेंकी, पर वे भी बह गयीं । फिर एक लीरी
पत्थर बाँधकर फेंकी तो वह उसके हाथमें आ गयी और उसकी लँगोटी लगाकर वह बाहर निकल
आया । उस स्त्रीके मनमें यह भाव नहीं आया कि अपनी साड़ी कैसे फाड़ दूँ ? उस एक चीरीकी
लीरसे कितना बढ़ गया चीर ! जब द्रौपदीका चीर खींचा गया, उस समय भगवान्ने कहा‒
आरतवान अतीतको, दीवी चीर कि लीर ।
मैं
न बढ़ायौ द्रौपदी, तू हि बढ़ायौ चीर ॥
बेचारा दुःखी ब्राह्मण जलमें काँप रहा था । लज्जा-निवारणके
लिये तूने अपना चीर फाड़कर दे दिया । उसी कारण यह तुम्हारा चीर बढ़ गया । ‘दुस्सासन की भुजा थकित भई, बसन रूप भये स्याम ।’ इस प्रकार समयपर जो दान दिया जाता है, वस्तुका सदुपयोग किया
जाता है, उसका बड़ा भारी माहात्म्य होता है ।
आपके पास शक्ति कम है, परिस्थिति भी बड़ी विकट आयी हुई है,
फिर भी आप घबरायें नहीं, प्रत्युत सोचें कि इस समय क्या किया जाय । कुछ-न-कुछ उपाय
निकल आयेगा । आपके द्वारा बड़ा उपकार हो जायगा । जो आपका कल्याण कर देगा । सज्जनो ! वस्तु, परिस्थितिकी
महिमा नहीं है, उसके उपयोगकी महिमा है । आप अनुकूल परिस्थितिका भी सदुपयोग
कर सकते हैं और प्रतिकूल परिस्थितिका भी । स्वस्थताका भी सदुपयोग कर सकते हैं और
अस्वस्थताका भी । पासमें बहुत कुछ हो अथवा कुछ न हो‒दोनों परिस्थितियोंका आप
सदुपयोग कर सकते हैं । इसलिये आप अपनी परिस्थिति देखकर घबरायें नहीं । उस
परिस्थतिका सदुपयोग करें तो भगवान् प्रसन्न हो जायँगे ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒ ‘भगवान्में अपनापन’ पुस्तकसे
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