।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    पौष कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७६ मंगलवार
          सदुपयोगसे कल्याण


लोगोंमें कहावत है‒‘छल-बलकी खेती भली, बेला-पुलको दान ।’ वर्षा बरसते ही चट खेती कर लो तो वह हो जायगी । दो दिनके बाद वह नहीं होगा, जो आरम्भमें हो जायगा । इसी प्रकार जब सुपात्र मिल जाय, तभी दान दे दो तो उसका बड़ा भारी पुण्य होता है । द्रौपदीकी एक बात हमने सुनी है । द्रौपदी पहले जन्ममें एक स्त्री थी । एक दिन वह नदीमें जल भरने गयी । सरदीका समय था । एक ब्राह्मण देवता लँगोटी लगाकर नदीमें स्नान कर रहा था । संयोगवश उसकी लँगोटी पानीमें बह गयी । बाहर माताएँ खड़ी थीं । वह बेचारा ठण्डसे काँपने लगा । परन्तु बाहर कैसे आये ? कपड़ा था नहीं पासमें । उस स्त्रीने देखा कि इस बेचारेके पास कपड़ा नहीं है और सरदीमें ठिठुर रहा है । उसने अपनी साड़ीकी लीरी फाड़कर उसकी तरफ फेंकी, पर वह बह गयी । एक-दो लीरी फाड़कर उसकी तरफ फेंकी, पर वे भी बह गयीं । फिर एक लीरी पत्थर बाँधकर फेंकी तो वह उसके हाथमें आ गयी और उसकी लँगोटी लगाकर वह बाहर निकल आया । उस स्त्रीके मनमें यह भाव नहीं आया कि अपनी साड़ी कैसे फाड़ दूँ ? उस एक चीरीकी लीरसे कितना बढ़ गया चीर ! जब द्रौपदीका चीर खींचा गया, उस समय भगवान्‌ने कहा‒

आरतवान अतीतको, दीवी चीर कि लीर ।
मैं न बढ़ायौ द्रौपदी,   तू हि बढ़ायौ चीर ॥

बेचारा दुःखी ब्राह्मण जलमें काँप रहा था । लज्जा-निवारणके लिये तूने अपना चीर फाड़कर दे दिया । उसी कारण यह तुम्हारा चीर बढ़ गया । ‘दुस्सासन की भुजा थकित भई, बसन रूप भये स्याम ।’ इस प्रकार समयपर जो दान दिया जाता है, वस्तुका सदुपयोग किया जाता है, उसका बड़ा भारी माहात्म्य होता है ।

आपके पास शक्ति कम है, परिस्थिति भी बड़ी विकट आयी हुई है, फिर भी आप घबरायें नहीं, प्रत्युत सोचें कि इस समय क्या किया जाय । कुछ-न-कुछ उपाय निकल आयेगा । आपके द्वारा बड़ा उपकार हो जायगा । जो आपका कल्याण कर देगा । सज्जनो ! वस्तु, परिस्थितिकी महिमा नहीं है, उसके उपयोगकी महिमा है । आप अनुकूल परिस्थितिका भी सदुपयोग कर सकते हैं और प्रतिकूल परिस्थितिका भी । स्वस्थताका भी सदुपयोग कर सकते हैं और अस्वस्थताका भी । पासमें बहुत कुछ हो अथवा कुछ न हो‒दोनों परिस्थितियोंका आप सदुपयोग कर सकते हैं । इसलिये आप अपनी परिस्थिति देखकर घबरायें नहीं । उस परिस्थतिका सदुपयोग करें तो भगवान्‌ प्रसन्न हो जायँगे ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘भगवान्‌में अपनापन’ पुस्तकसे