किसीको अपना मानने या न माननेमें मनुष्य सर्वथा
स्वतन्त्र है, परतन्त्र है ही नहीं । आप धर्मशालामें रहते हैं, सब काम करते हैं, पर भीतरसे मानते हैं कि यह मेरा नहीं है । राजकीय
वस्तुको कोई अपनी मान लेता है तो उसको दण्ड मिलता है । उसको अपनी न मानकर उचित
व्यवहार करे तो दण्ड क्यों मिलेगा ? अगर आपको अपना
कल्याण करना है, जन्म-मरणमें नहीं जाना है तो इतनी-सी बात मान लो कि सब वस्तुएँ
भगवान्की हैं, मेरी नहीं हैं । भगवान् भी कहते हैं‒
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
(गीता ७/७)
‘हे धनञ्जय ! मेरे सिवाय इस जगत्का दूसरा
कोई किंचिन्मात्र भी (कारण तथा कार्य)
नहीं है ।’
अगर अपना उद्धार करना हो
तो सच्ची बातको स्वीकार कर लो कि सब कुछ भगवान्का है । स्वीकार करना या न करना
आपकी मरजीके अधीन है । शरीरको आपने अपना मान लिया, पर यह आपका है नहीं । एक दिन
शरीर छूट जायगा, मर जायगा और लोग इसको जला देंगे । जैसे मरनेके समय यह आपके साथ
नहीं रहेगा, ऐसे अब भी यह आपके साथ नहीं है । इतनी-सी बात आप स्वीकार कर लो तो सब
काम ठीक हो जायगा । आप कह सकते हैं कि हमारेसे स्वीकार नहीं होता । परन्तु यह बात
आपके भीतर खटकनी चाहिये कि स्वीकार क्यों नहीं होता ! इसपर आपका वश चलता है क्या ?
इसका रात-दिन विचार होना चाहिये । फिर स्वीकार हो जायगा । कारण कि सच्ची बात मिट
नहीं सकती । दो और दो चार ही होंगे, तीन या पाँच नहीं हो सकते । आप मकानको अपना
मानते हो, पर जब उसको बेच देते हो, तब उसको अपना मानते हो क्या ? आप खुद विचार करो
कि कौन-सी बात सच्ची है ! सच्ची बातको स्वीकार करनेमें बाधा क्या है ? आपके मनमें उत्कण्ठा होनी चाहिये कि अब मैं सच्ची बात मानूँगा
। चाहे आज मानो, चाहे वर्षोंके बाद मानो, चाहे जन्मोंके बाद मानो, कभी-न-कभी सच्ची
बातको मानना ही पड़ेगा । सच्ची बातको माने बिना पिण्ड नहीं छूटेगा । जब सच्ची बात
माने बिना कभी शान्ति मिलेगी नहीं, तो फिर झूठी बात क्यों मानें ? जब कभी कल्याण
होगा तो सच्ची बातको माननेसे ही होगा ।
रामानंद आनंद से सिंवरया सरसी काज ।
भावे सिंवरो काल ही, भावे सिंवरो आज ॥
यह आपके कल्याणकी बात है, इसलिये आपके हितके लिये ही कहता
हूँ । आप मान लोगे तो मेरेको क्या मिल जायगा ? आप नहीं मानोगे तो मेरेको क्या घाटा
पड़ जायगा ? मेरी तो यही प्रार्थना है कि आप सच्ची बात
मान लो । सच्ची बातको पहले स्वीकार कर लो, फिर वह वैसी ही दीखने लग जायगा ।
मन-बुद्धि आदि सबको भगवान्का मान लो तो आपका सांसारिक व्यवहार भी बढ़िया होगा ।
किसी प्रकारका कोई नुकसान नहीं होगा । अगर आपको विश्वास न होता हो तो
मेरेसे सौदा कर लो, जो नफा होगा, वह आपका और जो नुकसान होगा, वह मेरा ! आप यह तो
कह सकते हैं कि बात हमारे माननेमें नहीं आती, पर
बात यह सच्ची है, यह तो आप स्वीकार कर ही सकते हैं । स्वीकार करनेमें क्या
नुकसान है ?
|