छोड़नेका उपाय क्या है ? जो लोग आपका कहना नहीं करते, वे तो
आपके अभिमानको दूर करते हैं और जो आपका कहना करते हैं वे आपके अभिमानको पुष्ट करते
हैं–यह बात आपको जँचती है कि नहीं ? जो कहना नहीं करते, वे आपका जितना उपकार करते
हैं, जितना हित करते हैं; कहना करनेवाले उतना
उपकार, हित नहीं करते । अगर आप अपना हित चाहते हो तो आपके अभिमानमें टक्कर
लगे, उतना ही बढ़िया है । कहना न करनेमें आपके लाभ है, हानि नहीं है । अभिमान पुष्ट करनेके लिये वे बढ़िया हैं, जो कहना करते हैं;
परन्तु आपका अभिमान दूर करनेके लिये वे बढ़िया है, जो कहना नहीं करते हैं । इसलिये
आपको तो उनका उपकार मानना चाहिये कि वास्तवमें हमारा हित इस बातमें है ।
यद्यपि वे जानकर हित नहीं करते है कि भाई, तुम्हारा अभिमान
दूर हो जाय, इसलिये हम आपका कहना नहीं करेंगे । फिर भी आपके तो फायदा ही हो रहा
है, वे आपके अभिमानको दृढ़ नहीं कर रहे हैं अर्थात् आपका अभिमान दृढ़ नहीं हो रहा है
। आप अपना हित चाहते हो कि अहित चाहते हो ? कल्याण चाहते हो कि पतन चाहते हो ? अगर
आप कल्याण चाहते हो तो कल्याण आपका निरभिमान होनेसे है और निरभिमान आप तभी होंगे,
जब आपका कहना कोई नहीं मानेगा । अगर कहना मानता है तो आपका कहना सब जगह डटा रहेगा
और यही अभिमान है, यही आसुरी सम्पत्ति है–‘दम्भो
दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः’ (१६/४) । तो जो आपका कहना नहीं मानते, वे आपपर बड़ी
भारी कृपा कर रहे हैं । आपकी आसुरी सम्पत्ति हटाकर आपमें दैवी सम्पत्ति ला रहे हैं
।
अब प्रश्न आया है कि कहना नहीं माननेसे तो बालक उद्दण्ड हो
जायेंगे ? आपका कहना माननेसे आप अभिमानी हो जायँगे और
आपका कहना नहीं मानते तो वे उद्दण्ड हो जायेंगे–इन दोनोंपर गहरा विचार करो । आप नहीं रहोगे
तो मनमानी करके उद्दण्ड तो फिर भी हो जायेंगे, परन्तु आपका अभिमान दूर कैसे होगा ?
उद्दण्ड तो आपके बिना भी हो जायेंगे, पर आपका अभिमान तो दूर नहीं होगा । इसलिये
आपको अभिमान तो पहले दूर कर ही लेना चाहिये ।
दूसरी बात यह है कि आप उनपर रोब
नहीं जमाओगे तो आपकी सौम्यावस्था और निरभिमान-अवस्थाका असर उनपर पड़ेगा, जिससे वे
उद्दण्ड नहीं होंगे, ठीक हो जायेंगे । आप कह दो कि भाई, ऐसा काम नहीं करना चाहिये
फिर भी वे वैसा ही करें तो आप शान्तिसे चुप-चाप रहो । कारण कि वे उद्दण्डता करेंगे
तो उनको वैसा फल मिलेगा । फल मिलनेसे उनको चेत होगा, जिससे उनकी उद्दण्डता स्वतः
मिटेगी । उनको चेत होकर जो उद्दण्डता मिटेगी, वह आपके कहनेसे नहीं मिटेगी; क्योंकि
उनके मनमें तो अपनी बात भरी रहेगी और आपकी बात उपरसे कलई-जैसे रहेगी, वह कलई उतर
जायगी तो इससे उद्दण्डता कैसे मिटेगी ? उसकी उद्दण्डता
मिटानेका सही उपाय यही है कि आप अपने अभिमानको दूर करो ।
मनुष्यको परिवारमें रहना है तो परिवारमें रहना सीख लेना
चाहिये । परिवारमें रहनेकी यह विद्या है कि उनका कहना
करो, उनके मनके अनुसार चलो । अपना जो कर्तव्य है, उसका तो पालन करो और उनकी
प्रसन्नता लो ।
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