।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७७ गुरुवार
रामनवमी
क्रोधपर विजय कैसे हो ?


परिवारमें रहना क्या है ? आपके कर्तव्यका आपपर दायित्व है । आपका कर्तव्य क्या है ? स्त्री मानें, न मानें; पुत्र मानें, न मानें; भाई मानें, न मानें; माँ-बाप मानें, न मानें; भौजाई और भतीजे मानें, न मानें; आप अपने कर्त्तव्यका ठीक तरह पालन करें । वे अपना कर्त्तव्य पालन करते हैं या नहीं करते, उधर आप देखो ही मत । क्योंकि जब आप उनके कर्त्तव्यको देखते हो कि ‘ये उदण्ड न हो जायँ ।’ ऐसे समयमें आप अपने कर्त्तव्यसे च्युत ही हैं, आप अपने कर्त्तव्यसे गिरते हो; क्योंकि आपको दूसरोंका अवगुण देखनेके लिये कर्त्तव्य कहाँ बताया है ? शास्त्रोंमें कहीं भी यह नहीं बताया है कि तुम दूसरोंका अवगुण देखा करो; प्रत्युत यह बताया है कि यह संसार गुण-दोषमय है–

सुनहु  तात  माया  कृत   गुन  अरु  दोष  अनेक ।
गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक ॥
                                              (मानस ७/४१)

दूसरोंमें गुण है, उनको तो भले ही देखो, पर अवगुण मत देखो । अवगुण देखोगे तो वे अवगुण आपमें आ जायेंगे और अवगुण देखकर उनको उद्दण्डतासे बचानेके लिये क्रोध करते हो तो आप क्रोधसे नहीं बच सकते । इसलिये आप अपना कर्त्तव्यका पालन करो । दूसरोंका न कर्त्तव्य देखना है और न अवगुण देखना है । हाँ, लड़का है तो उसको अच्छी शिक्षा देना आपका कर्त्तव्य है, पर वह वैसा ही करे–यह आपका कर्त्तव्य नहीं है । यह तो उसका कर्त्तव्य है । उसको कर्त्तव्य बताना–यह आपका कर्त्तव्य नहीं है । आपको तो सिर्फ इतना ही है कि भाई, ऐसा करना ठीक नहीं है । अगर वह कहे–‘नहीं-नहीं बाबूजी, ऐसे करेंगे’; तो कह दो–‘अच्छा ऐसे करो !’–यह बहुत बढ़िया दवाई है । मैं नहीं कहने योग्य एक बात कहा रहा हूँ कि ‘इस दवाईका मैं भी सेवन कर रहा हूँ ।’ आपको जो दवाई बताई, यह बहुत बढ़िया दवाई है । आप कहो–‘ऐसा करो’ और अगर वह कहे नहीं, हम तो ऐसा करेंगे । अच्छा, ठीक है, ऐसा करो ।

रज्जब रोस न कीजिये कोई कहे क्यूँ ही ।
हँसकर उत्तर दीजिये हाँ बाबाजी यूँ ही ॥

अन्याय हो, पाप हो तो उसको अपने स्वीकार नहीं करेंगे । अपने तो शास्त्रके अनुसार बात कह दी और वे नहीं मानते तो शास्त्र क्या कहता है ? क्या उनके साथ लड़ाई करो ! या उनपर रोब जमाओ ! आपको तो केवल कहनेका अधिकार है–‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ (गीता २/४७) और वे ऐसा ही मान लें–यह फल है, आपका अधिकार नहीं है । ‘मा फलेषु कदाचन’ (गीता २/४७) । आपने अपनी बारी निकाल दी, बस ! कर्त्तव्य तो आपका कहना ही था, उनसे वैसा करा लेना आपका कर्त्तव्य थोडा ही है ! वैसा करे, यह उनका कर्त्तव्य है । अपने तो कर्त्तव्य समझा देना है । उसने कर्त्तव्य-पालन कर लिया तो आपके कल्याणमें कोई बाधा नहीं और वह नहीं करेगा तो उसका नुकसान है, आपके तो नुकसान है नहीं, क्योंकि आपने तो हितकी बात कह दी ।–यह बहुत मूल्यवान बात है !

नारायण !    नारायण !!    नारायण !!! 

—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे