।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७७ मंगलवार
सबके अनुभवकी बात



यह सबका अनुभव है कि ऐसा कोई वर्ष, महीना, दिन, घंटा, मिनट और क्षण नहीं है, जिसमें शरीरका परिवर्तन अथवा वियोग न होता हो । परन्तु चेतन-तत्त्वका कभी किसी भी वर्ष, महीना, दिन, घंटा, मिनट और क्षणमें परिवर्तन अथवा वियोग नहीं होता अर्थात् उसका नित्ययोग है । इस चेतन तत्त्व (स्वरुप)-की नित्यताका अनुभव भी सबको है; जैसे–आज तो मैं ऐसा हूँ, पर बचपनमें ऐसा था, इस तरह पढ़ता था–ऐसा कहनेमात्रसे सिद्ध होता है कि शरीर, क्रिया, परिस्थिति आदि बदले हैं, मैं नहीं बदला हूँ, प्रत्युत मैं वही हूँ । शरीर आदिके परिवर्तनका अनुभव सबको है, पर स्वयंके परिवर्तनका अनुभव किसीको नहीं है । जीव अपने कर्मोंका फल भोगनेके  लिये चौरासी लाख योनियोंमें जाता है, नरक और स्वर्गमें जाता है–ऐसा कहनेमात्रसे सिद्ध होता है कि चौरासी लाख योनियाँ छूट जाती हैं, नरक और स्वर्ग छूट जाते हैं, पर स्वयं वही रहता है । योनियाँ (शरीर) बदलती हैं, जीव नहीं बदलता । जीव एक रहता है, तभी तो वह अनेक योनियोंमें, अनेक लोकोंमें जाता है । भगवान्‌ने भी अनित्य पदार्थ और क्रियाकी तरफसे दृष्टि हटाकर नित्य तत्त्वकी तरफ दृष्टि करानेके लिये कहा है–

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न  चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्    ॥
(गीता २/१२)

‘किसी कालमें मैं नहीं था–यह बात नहीं है अर्थात् मैं जरूर था, तू नहीं था–यह बात भी नहीं है अर्थात् तू भी जरूर था तथा ये राजालोग नहीं थे–यह बात भी नहीं है अर्थात् ये राजालोग भी जरूर थे; और इसके बाद मैं, तू तथा ये राजालोग नहीं रहेंगे–यह बात भी नहीं है अर्थात् मैं, तू तथा ये राजालोग नित्य रहेंगे ही ।’ तात्पर्य है कि मैं कृष्णरूपसे, तू अर्जुनरूपसे तथा ये राजारूपसे पहले भी नहीं थे और आगे भी नहीं रहेंगे, पर सत्तारूपसे हम सब (जीवमात्र) पहले भी थे और आगे भी रहेंगे । शरीरको लेकर मैं, तू तथा राजालोग–ये तीन हैं, पर सत्ताको लेकर एक ही हैं ।

‒यह दृष्टि आत्मतत्त्वकी तरफ है, शरीरकी तरफ नहीं ।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानी  गृह्णाति नरोऽपराणी
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही  
(गीता २/२२)

‘मनुष्य जैसे पुराने कपडोंको छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही (जीवात्मा) पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाता है ।’

कपड़े अनेक होते हैं, पर कपड़े पहनेवाला एक ही होता है । पुराने कपड़े उतारनेसे मनुष्य मर नहीं जाता और दूसरे नये कपड़े पहननेसे उसका जन्म नहीं हो जाता । तात्पर्य है कि मरना और जन्मना शरीरोंका होता है, स्वयंका नहीं ।