।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७७ शनिवार
तत्त्वप्राप्तिमें देरी नहीं है



जो बात हमारी उन्नतिके लिये ठीक नहीं है, सच्ची नहीं है, हमारे लिये लाभदायक नहीं है, उसका त्याग कर दें—इतनी ही बात है, कोई लम्बी-चौड़ी बात नहीं है । त्यागसे तत्काल ही शान्ति मिलती—‘त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्’ (१२ । १२) । उसमें कोई बाधा लगती हो तो बतायें, जिससे उसपर आपसमें विचार करें । साफ-साफ, सरलतासे कह दें । इसमें मान होगा, अपमान होगा, स्तुति होगी, निन्दा होगी, लोग क्या कहेंगे, क्या नहीं कहेंगे—इन सब बातोंको छोड़ दें । अगर अपना कल्याण करना हो तो लोग चाहे कुछ भी कहें, कुछ भी करें, उस तरफ ध्यान न दें ।

तेरे भावै जो करौ,     भलौ बुरौ संसार ।
‘नारायन’ तू बैठके, अपनौ भवन बुहार ॥

त्यागका, कल्याणका काम अभी करनेका है । यह काम धीरे-धीरे करनेका, कई दिनोंतक करनेका है—यह बात नहीं है । पर लोगोंके भीतर यह बात बैठी हुई है कि यह तो समय पाकर होगा । सज्जनो ! मैंने खूब विचार किया है । यह बात भविष्यकी है ही नहीं । भविष्यकी बात वह होती है, जिसका निर्माण किया जाता है । निर्माण करनेमें समय लगता है । परन्तु जो वस्तु पहलेसे ही है, उसमें समय नहीं लगता । वह तत्काल सिद्ध होती है । अतः जो बात हमारी जानकारीमें झूठी है, असत्य है, ठीक नहीं है, लाभदायक नहीं है, उसका त्याग कर देना है, बस । जो त्याग होता है, वह तत्काल होता है । त्याग धीरे-धीरे नहीं होता और ग्रहण भी धीरे-धीरे नहीं होता ।


भगवान्‌ने कहा है—‘नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।’ (गीता २ । १६) ‘असत् वस्तुकी तो सत्ता नहीं है और सत् वस्तुका अभाव नहीं होता ।’ फिर कहा है—‘उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः’ अर्थात् इन दोनोंके तत्त्वको तत्त्वदर्शी पुरुषोंने देखा है । देखा है—ऐसा कहा है, किया है—ऐसा नहीं कहा है । करनेमें देरी लगती है, देखनेमें देरी नहीं लगती । अगर देरी लगती है, समय लगता है, तो आपने देखना पसन्द नहीं किया है, करना पसन्द किया है । ज्ञान है, भक्ति है, योग है—ये तत्काल सिद्ध होते हैं । इनकी सिद्धि वर्तमानकी वस्तु है । अगर यह वर्तमानकी वस्तु न हो, अभी सिद्ध होने वाली न हो तो फिर सिद्ध कैसे होगी ? इसका निर्माण करना नहीं है, कहींसे लाना नहीं है, कहीं ले जाना नहीं है, इसमें कोई परिवर्तन करना नहीं है, फिर इसमें समयकी क्या जरूरत है ? इसपर विचार कर लें ।