।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण नवमीवि.सं.२०७७गुरुवार
सर्वत्र भगवद्दर्शन


ज्ञानमार्गमें यह बात आती है कि देखने, सुनने, चिन्तन करने आदिमें जो कुछ आता है, वह सब असत् माया है‒

किं भद्रं किमभद्रं वा द्वैतस्यावस्तुनः कियत् ।
वाचोदितं  तदनृतं   मनसा  ध्यातामेव  च ॥
                                         (श्रीमद्भागवत ११/२८/४)

‘संसारकी सब वस्तुएँ वाणीसे कही जा सकती हैं और मनसे सोची जा सकती हैं; अतः वे सब असत्य हैं । जब द्वैत नामकी कोई वस्तु है ही नहीं, तो फिर उसमें क्या अच्छा और क्या बुरा ?’

देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं ।
मोह   मूल    परमारथु    नाहीं ॥
                              (मानस, अयोध्याकाण्ड ९२/४)

न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः ।
सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः ॥
                                           (गीता १८/४०)

‘पृथ्वीमें या स्वर्गमें अथवा देवताओंमें तथा इनके सिवाय और कहीं भी ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो प्रकृतिसे उत्पन्न इन तीनों गुणोंसे रहित हो ।’

परन्तु भक्तिमार्गमें यह बात आती है कि देखने, सुनने, चिन्तन करने आदिमें जो कुछ आता है, वह सब कुछ भगवान्‌ ही हैं‒

मनसा वचसा दृष्ट्या गृह्यतेऽन्यैरपीन्द्रियै ।
अहमेव  न  मत्तोऽन्यदिति  बुध्यध्वमञ्जसा ॥
                                     (श्रीमद्भागवत ११/१३/२४)

‘मनसे, वाणीसे, दृष्टिसे तथा अन्य इन्द्रियोंसे जो कुछ (शब्दादि विषय) ग्रहण किया जाता है, वह सब कुछ मैं ही हूँ । अतः मेरे सिवाय और कुछ भी नहीं है‒यह सिद्धान्त आप विचारपूर्वक शीघ्र समझ लें अर्थात् स्वीकार कर लें ।’

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि ।
                                             (मानस, बालकाण्ड ७)

न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥
                                              (गीता १०/३९)

‘मेरे बिना कोई भी चर-अचर प्राणी नहीं है ।’

तात्पर्य है कि ज्ञानमार्गमें सब कुछ प्रकृतिरूप है और भक्तिमार्गमें सब कुछ भगवद्‌रूप है ।


ज्ञानमार्ग जड़ताके त्यागमें काम आता है और भक्तिमार्ग भगवान्‌के प्रेममें काम आता है । ज्ञानमार्गमें परमात्मा संसारमें व्याप्त हैं‒‘येन सर्वमिदं ततम्’ (गीता २/१७), ईशावास्यमिदं सर्वम्’ (ईश १) और भक्तिमार्गमें संसाररूपसे परमात्मा ही हैं‒‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७/१९) । ज्ञानमार्गमें गुण ही गुणोंमें बरत रहे हैं‒‘गुणा गुणेषु वर्तन्ते’ (गीता ३/२८) और भक्तिमार्गमें भगवान्‌ ही भगवान्‌ बरत रहे हैं अर्थात् लीला कर रहे हैं‒‘यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति’ (गीता ६/३०) । ज्ञानमार्गमें साधक अपने स्वरूपमें स्थित होता है और भक्तिमार्गमें साधक भगवान्‌के अर्पित होता है, भगवान्‌का प्रेमी होता है । भगवान्‌ प्रेमके भूखे हैं, ज्ञानके नहीं । भक्त भगवान्‌से प्रेम करता है और भगवान्‌ भक्तसे प्रेम करते हैं; अतः उनमें प्रतिक्षण वर्धमान प्रेम होता है ।