।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण एकादशीवि.सं.२०७७, शनिवा
स्वतन्त्रता दिवस
सर्वत्र भगवद्दर्शन


प्रश्न–कोई आदमी हमें गाली देता है तो वहाँ कैसे भगवान्‌को देखें ?

उत्तर–उपनिषद्‌में आया है कि शब्द (वाणी) ही ब्रह्म है–‘वाग् वै ब्रह्मेति’ (बृहदारण्यक ४/१/२) । सन्तोंकी वाणीमें भी यही बात आयी है–

जो तू  चेला  देह को,  देह  खेह  की  खान ।
जो तू चेला सबद को, सबद ब्रह्म कर मान ॥

अतः शब्द भगवान्‌का ही स्वरूप है । कोई अच्छा कहे या मन्दा कहे, वह भगवान्‌ ही है । वराहावतारमें भगवान्‌ सूअर भी बनते हैं और वामनावतारमें ब्रह्मचारी ब्राह्मण भी बनते हैं । सूअर और ब्राह्मण–दोनों ही भगवान्‌ हैं । जब सूअर भी भगवान्‌ है तो क्या गाली भगवान्‌ नहीं हैं ?

कोई कैसा ही बर्ताव करे, पर आप ‘वासुदेवः सर्वम्’ को मत छोड़ो । एक सन्त नदीमें स्नान कर रहे थे । उन्होंने एक बिच्छूको जलके प्रवाहमें बहते हुए देखा । वे अपने हाथसे उसको जलसे बाहर फेंकने लगे तो बिच्छूने उनके हाथमें डंक मार दिया । डंक मारते ही बिच्छू छूट गया और पुनः बहने लगा । सन्तने फिर बिच्छूको स्पर्श किया तो उसने फिर डंक मार दिया । सन्त बार-बार हाथसे बाहर फेंकनेकी चेष्टा करते थे और वह बार-बार डंक मारता था । एक आदमी यह सब देख रहा था । वह बोला कि कैसे मूर्ख हो ! बिच्छू बार-बार डंक मारता है, फिर भी आप उसका स्पर्श करते हो ! सन्त बोले कि बिच्छूका स्वभाव है कि जो भी छुए, उसको डंक मार देना और मेरा स्वभाव है कि कोई मरता हो तो उसको बचा देना । जब बिच्छू अपना बुरा स्वभाव भी नहीं छोड़ता, तो मैं अपना अच्छा स्वभाव कैसे छोड दूँ ? तात्पर्य है कि अगर दुष्ट व्यक्ति अपनी बुरी बात नहीं छोडता तो आप अपनी अच्छी, सर्वश्रेष्ठ बात क्यों छोड़ो ?

प्रश्न–शास्त्रोंमें संसार असत्य है–ऐसा क्यों कहा गया है ? सब कुछ भगवान्‌ ही हैं–यही बात सब जगह क्यों नहीं कही गयी ?


उत्तर–संसारको असत्य इसलिये कहा गया है कि आप उससे सुख लेना चाहते हो । जैसे, मन्द अन्धकारमें रस्सी साँपकी तरह दीखती है । जो उसको देखकर डर जाता है, उसको कहते है कि ‘डरो मत, यह साँप नहीं है, यह तो रस्सी है ।’ परन्तु उसको देखकर नहीं डरता, उसको कहते हैं कि ‘यह रस्सी है’ । ऐसे ही जो संसारसे सुख चाहता है और जिसके भीतर ‘संसार सत्य है, सुखरूप है’–ऐसा प्रभाव पड़ा हुआ है, उसके लिये भगवान्‌ कहते हैं कि यह संसार दुःखालय और नाशवान् है–‘दुःखालयमशाश्वतम्’ (गीता ८/१५) । परन्तु जो संसारसे सुख नहीं चाहता, जिसपर संसारका प्रभाव नहीं है, उसके लिये कहते हैं कि सब कुछ भगवान्‌ ही हैं–‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७/१९)