।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशीवि.सं.२०७७, सोमवा
प्रतिकूलतामें विशेष भगवत्कृपा


मनुष्य अनुकूलताको तो चाहता है, पर प्रतिकूलताको नहीं चाहता–यह उसकी कायरता है । अनुकूलताको चाहना ही खास बन्धन है । इसके सिवाय और कोई बन्धन नहीं है । इस चाहनाको मिटानेके लिये ही भगवान्‌ बहुत प्यार और स्‍नेहसे प्रतिकूलता भेजते हैं । यदि जीवनमें प्रतिकूलता आये तो समझना चाहिये कि मेरे ऊपर भगवान्‌की बहुत अधिक, दुनियासे निराली कृपा हो गयी है । प्रतिकूलतामें कितना आनन्द, शान्ति, प्रसन्नता है, क्या बताऊँ ? प्रतिकूलताकी प्राप्ति मानो साक्षात् परमात्म-तत्त्वकी प्राप्ति है । भगवान्‌ने कहा है–‘नित्यं च समचित्तत्व-मिष्टानिष्टोपपत्तिषु’ (१३/९)प्रतिकूलता आनेपर प्रसन्न रहना–यह समताकी जननी है । गीतामें इस समताकी बहुत प्रशंसा की गयी है ।

भगवान्‌ विष्णु सर्वदेवोंमें श्रेष्ठ तभी हुए, जब भृगुजीके द्वारा छातीपर लात मारनेपर भी वे नाराज नहीं हुए । वे तो भृगुजीके चरण दबाने लगे और बोले कि ‘भृगुजी ! मेरी छाती तो बड़ी कठोर है और आपके चरण बहुत कोमल हैं; आपके चरणोंमें चोट आयी होगी !’ उन्हीं भगवान्‌के हम अंश हैं–‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५/७) उनके अंश होकर भी हम इस प्रकार छातीपर लात मारनेवालेका हृदयसे आदर नहीं कर सकते तो हम क्या भगवान्‌के भक्त हैं ? प्रतिकूलताकी प्राप्तिको स्वर्णिम अवसर मानना चाहिये और नृत्य करना चाहिये कि अहो ! भगवान्‌की बड़ी भारी कृपा हो गयी । ऐसा कहनेमें संकोच होता है कि इस स्वर्णिम अवसरको प्रत्येक आदमी पहचानता नहीं । यदि किसीको कहें कि ‘तुम पहचानते नहीं हो’ तो उसका निरादर होता है । अगर ऐसा अवसर मिल जाय और उसकी पहचान हो जाय कि इसमें भगवान्‌की बहुत विशेष कृपा है तो यह बड़े भारी लाभकी बात है ।


गीतामें आया है कि जिसका अन्तःकरण अपने वशमें है, ऐसा पुरुष राग-द्वेषरहित इन्द्रियोंके द्वारा विषयोंका सेवन करता हुआ अन्तःकरणकी प्रसन्नताको प्राप्त होता है; और प्रसन्नता प्राप्त होनेपर उसकी बुद्धि बहुत जल्दी परमात्मामें स्थिर हो जाती है (२/६४-६५) । जो प्रतिकूल-से-प्रतिकूल परिस्थितिमें प्रसन्न रहे, उसकी बुद्धि परमात्मामें बहुत जल्दी स्थिर होगी । कारण कि प्रतिकूलतामें होनेवाली प्रसन्नता समताकी माता (जननी) है । अगर यह प्रसन्नता मिल जाय तो समझना चाहिये कि समताकी माँ मिल गयी और परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिकी दादी मिल गयी । दादी कह दो या नानी कह दो ।