सन्तोंने कहा है–
सब जग ईश्वर रूप है, भलो बुरो नहिं कोय ।
जैसी जाकी भावना, तैसो ही
फल होय ॥
यह सम्पूर्ण संसार साक्षात् परमात्माका स्वरूप है । इसमें भला-बुरा,
अच्छा-मन्दा, गुण-दोष आदि दो चीजें हैं ही नहीं । रामायणमें आया है–
सुनहु तात माया कृत गुन
अरु दोष अनेक
।
गुन यह उभय न देखअहिं देखिअ सो अबिबेक ॥
(मानस,
उत्तरकाण्ड ४१)
तात्पर्य है कि गुण और दोष मायाकृत हैं, भगवान्में नहीं
हैं । जो लोग मायासे मोहित हैं, उन्हींकी दृष्टिमें ये दोनों भगवान्में दीखते हैं
। असली गुण है–गुण और दोष
दोनोंको ही न देखना–‘गुन यह उभय न
देखिअहिं’ । इन दोनोंका देखना अविवेक है ।
‘गुन यह उभय न देखिअहिं’ के दो अर्थ होते हैं–(१) गुण और दोषको न
देखकर गुण-ही-गुण देखना, और (२) गुण और दोषको न देखकर परमात्माको ही देखना, जो कि
गुण-दोषसे रहित और गुणातीत है । गुण और दोषको देखना अविवेक है, अज्ञान है, मूर्खता
है, जडता है–‘देखिअ सो अबिबेक’ । कारण कि वास्तवमें संसार साक्षात् भगवान् ही
है–‘सब जग ईश्वररूप है’ । यह ईश्वरका सर्वोपरि रूप है ! ईश्वर भला और बुरा–दो नहीं हो सकता । ईश्वर एक ही होता है ।
भगवान् गीतामें कहते हैं–
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
(४/११)
‘जो जिस भावसे मेरा भजन करते हैं, मैं भी उसी भावसे उनका
भजन करता हूँ ।’
अतः हम भले और बुरे–दो रूपोंको देखते हैं तो भगवान् भी भले और बुरे–दो रूपोंसे प्रकट हो जाते हैं और हम भले-बुरेको
न देखकर भगवान्को देखते हैं तो भगवान् भी अपने वास्तविक रूपमें प्रकट हो जाते
हैं–
जिन्ह कें रही भावना जैसी ।
प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी ॥
(मानस, बाल. २४१/२)
एक सन्त थे । कोई उनसे कहता कि ‘महाराज ! आप तो बहुत बड़े महात्मा है’ तो वे
कहते–‘रामजी !’ कोई कहता कि ‘आप बड़े ठग हैं’ तो
वे कहते–‘रामजी !’ कोई कहता कि ‘आप तो बहुत बुरे हैं’ तो वे
कहते– ‘रामजी !’ तात्पर्य है कि सब
कुछ रामजी ही हैं, फिर उसमें क्या अच्छा और क्या बुरा ? ‘जैसी जाकी भावना, तैसो ही फल होय’ । भावना ही करनी हो तो बढ़िया भावना करें, घटिया भावना क्यों करें
? मनके लड्डू बनायें तो उसमें घी और चीनी कम
क्यों डालें ? इसमें कौन-सा खर्च लगता है ? इसलिए बढ़िया-से-बढ़िया भावना
करनी चाहिये । वह
बढ़िया-से-बढ़िया भावना है–‘वासुदेवः सर्वम्’ अर्थात् सब कुछ
परमात्मा-ही-परमात्मा हैं । यह कोरी भावना ही नहीं है, प्रत्युत वास्तविकता है । इसको स्वीकार करनेमें न तो कोई परिश्रम करना पड़ता है और न अपनेमें कोई
विशेष योग्यता लानी पड़ती है, फिर इसको
माननेमें क्या बाधा है ? यह सरल-से-सरल और ऊँचा-से-ऊँचा साधन है ।
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