" होहि राम को नाम जपु ”
भगवन्नामके प्रसंगमें एक बात विशेषतासे कही गयी थी कि नाम-जपमें विधियोंकी इतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी आवश्यकता
भीतरके प्रेमकी है । भगवान् प्रिय लगें, मीठे लगें । भगवान्का नाम, उनके गुण,
उनका प्रभाव, उनका तत्त्व, उनसे सम्बन्धित बातें प्रिय, मीठी लगें । जैसे
लोभीको धनकी बातें अच्छी लगती हैं, मोही आदमीको परिवारकी बातें अच्छी लगती हैं,
वैसे ही भगवान्की बातें अच्छी लगें, मीठी लगें । इस प्रियता, मिठासमें जो लाभ है,
वह पहले कही विधियोंमें नहीं है । हाँ, पहले कही विधियोंका पालन करते-करते भी यह
मिठास पैदा हो सकती है ।
भगवान् प्रिय, मीठे लगें‒इसमें खास बात है कि
भगवान् अपने हैं । संसार
अपना नहीं है । यह शरीर भी अपना नहीं है । यह मिला हुआ है और बिछुड़ जायगा । भगवान्
मिले हुए नहीं हैं और बिछुड़नेवाले नहीं हैं । वे सदैव साथ रहनेवाले हैं । भगवान्
हमारेसे दूर नहीं हुए हैं, अलग नहीं हुए हैं, हम ही भगवान्से विमुख हुए हैं । वे
सदैव हैं और अपने हैं । इस वास्ते भगवान्को अपना मानें । संसारको अपना न मानें । मनुष्योंकी उलटी धारणा हो रही है कि शरीरको, रुपये-पैसोंको, घरको अपना मानते हैं । ये किसीके
अपने नहीं हैं । रुपये इतने विरक्त हैं कि किसीके नहीं हैं । जिन रुपयोंको लिये
झूठ-कपट करते हो, बेईमानी करते हो, ठगी करते हो, धोखा देते हो, घरवालोंसे लड़ाई
करते हो और जिनके लिये ससुर-जवाँईमें लड़ाई हो जाय, भाई-भाईमें लड़ाई हो जाय,
मित्र-मित्रमें लड़ाई हो जाय‒ऐसे लड़ाई कर लेते हो, धर्म-कर्म छोड़ देते हो, वे रुपये
जाते हुए पूछते ही नहीं तुमसे । सलाह भी नहीं लेते और चले जाते हैं । फिर आप एक
तरफसे क्यों अपनापन करते हो ।
भगवान्को याद न करो तो भी भगवान् आपके हैं । वे आपका
पालन-पोषण करते हैं; आपकी रक्षा करते हैं; सब तरहसे आपका कल्याण करते हैं । ऐसे
प्रभुको अपना न मानना बड़ी भारी गलतीकी बात है । प्रभु अपने हैं और अपने होनेसे
अपनेको मीठे लगते हैं ।
‘पन्नगारि सुन प्रेम सम भजन न दूसर आन’ प्रेमके समान दूसरा कोई भजन नहीं है ।
प्रेम पैदा होता है अपनापन हो जानेसे । अपनापन
होते ही प्रियता पैदा होती है । अपना कपड़ा, अपनी वस्तु अपनेको अच्छी लगती है; क्योंकि उसको अपना मान लिया ।
बालकको माँ अच्छी लगती है । दूसरी स्त्री सुन्दर भी है । उसके गहने भी बढ़िया हैं ।
कपड़े भी बढ़िया हैं । परन्तु अपनी माँ जैसी प्यारी लगती है, मीठी लगती है, वैसी
प्यारी, मीठी दूसरी स्त्री नहीं लगती । माँको भी अपना लड़का अच्छा लगता है । वह
काला-कलूटा कैसा ही है, सुन्दर नहीं है, तब भी माँको वही अच्छा लगता है । अच्छा
लगनेमें कारण क्या है ? अपनापन है । यह अपनापन मार्मिक बात है और सार बात है ।
आपलोगोंको मामूली-सी सामान्य बात दिखती होगी, पर मेरेको
बहुत देरीसे मिली है । सुनने-पढ़नेमें भी नहीं मिली और मिली तो पकड़ी नहीं गयी । प्रेम कैसे हो ? उपाय कई पढ़े-सुने, परन्तु असली उपाय है‒अपनापन
। अपनापन होनेसे प्रेम होता है । इस वास्ते भगवान्को अपना मानो, संसारको
अपना मत मानो; क्योंकि यह संसार अपना नहीं है ।
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