।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७७ शनिवार
नागपंचमी
अपने प्रभुको कैसे पहचानें ?


संसारमें जो कुछ भी है, वह सब भगवान्‌का ही शरीर है–

                   खं वायुमग्निं सलिलं महीं च
                             ज्योतींषि सत्त्वानि दिशो द्रुमादीन् ।
                      सरित्समुद्रांश्च हरेः शरीरं ।
                          यत्   किञ्च   भूतं   प्रणमेदनन्यः ॥
                                                          (श्रीमद्भागवत ११/२/४१)

‘आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, ग्रह-नक्षत्र, जीव-जन्तु, दिशाएँ, वृक्ष, नदियाँ, समुद्र–सब-के-सब भगवान्‌के ही शरीर हैं–ऐसा मानकर भक्त सभीको अनन्यभावसे प्रणाम करता है ।’

चाहे अद्वैतवाद मानें, चाहे विशिष्ठाद्वैत मानें, चाहे अचिन्त्य भेदाभेदवाद माने, सबमें परमात्मा एक ही हैं । परमात्मा चाहे द्विभुजी माने, चाहे चतुर्भुजी मानें, चाहे सहस्रभुजी (विराट्‌रूप) मानें, चाहे नराकार (राम, कृष्ण आदि) मानें, चाहे नीराकार (गंगाजी) मानें, चाहे निर्गुण मानें, चाहे सगुण मानें, परमात्मा तो एक ही हैं । सब-के-सब रूप एक ही समग्र परमात्माके अंग हैं । किसी भी अंगको पकड़ लें तो समग्र परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी । परमात्माके एक नामको ही पकड़ लें तो उसीसे समग्र परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी !

परमात्मा पूर्ण हैं । ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ परमात्मा न हों–

सर्वतः पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतः  श्रुतिमल्लोके   सर्वमावृत्य   तिष्ठति ॥
                                                 (गीता १३/१३)

‘वे परमात्मा सब जगह हाथों और पैरोंवाले, सब जगह नेत्रों, सिरों और मुखोंवाले तथा सब जगह कानोंवाले हैं । वे संसारमें सबको व्याप्त करके स्थित हैं ।’

कलम और स्याहीमें किस जगह कौन-सी लिपि नहीं है ? जानकर आदमी उस एक ही कलम और स्याहीसे अनेक लिपियाँ लिख देता है । सोनेकी डलीमें किस जगह कौन-सा गहना नहीं है ? सुनार उस एक डलीमेंसे कड़ा, कंठी, हार, नथ आदि अनेक गहने निकाल लेता है । इसी तरह लोहेमें किस जगह कौन-सा अस्त्र-शस्त्र नहीं है ? मिट्टी और पत्थरमें किस जगह कौन-सी मूर्ति नहीं है ? ऐसे ही भगवान्‌में किस जगह क्या नहीं है ? भगवान्‌से ही यह सब सृष्टि पैदा हुई है और अन्तमें उसीमें लीन हो जाती है । पहले भी वही है, पीछे भी वही है, फिर बीचमें दूसरी चीज कैसे आये, कहाँसे आये ? इस बातको दृढ़तासे स्वीकार कर लें तो फिर भगवान्‌ दिखने लग जायँगे; क्योंकि वास्तवमें हैं ही वहीं !

जैसे, मिट्टीसे पैदा होनेवाली सब चीजें मिट्टी ही होती हैं । इसकी परीक्षा करनी हो तो लोहेकी एक परात लें । उसमें सुखी मिट्टी तौलकर डाल दें । फिर उसमें गेहूँ भी तौलकर बो दें और जल डालते रहें । फिर उसमें गेहूँके पौधे हो जायँगे । अब मिट्टीको (सर्वथा सूखनेके बाद) तौलकर देखें तो मिट्टी कम निकलेगी । परन्तु मिट्टीके साथ-साथ गेहूँके पौधेको भी तौलें तो कुल वजन उतना ही निकलेगा, जितना पहले केवल मिट्टीका था । इससे यह सिद्ध हुआ कि जितनी मिट्टी कम हुई थी, उतनी पौधेंके रूपमें परिणत हो गयी । अतः गेहूँके पौधे मिट्टी ही हुए ! गेहूँको खा लें अथवा पीस दें तो वे मिट्टी ही हो जायँगे । ऐसे ही हमारे शरीर भी मिट्टीके ही बने हुए हैं और अन्तमें मिट्टीमें ही मिल जायँगे । इसी तरह यह सब संसार परमात्मासे ही बना हुआ है । अतः कोई-सा भी रूप दीखे, वह परमात्मा ही है–ऐसा दृढ़तापूर्वक मान लें तो असली ज्ञान हो जायगा । कितना सुगम और सरल साधन है ।