।। श्रीहरिः ।।

       




           आजकी शुभ तिथि–
आश्विन (अधिक) शुक्ल नवमी
वि.सं.२०७७, शुक्रवा
अमृतबिन्दु 



शरीर-निर्वाहके लिये तो चिन्ता (विचार) करनेकी जरूरत ही नहीं है, पर शरीर छूटनेके बाद क्या होगा–इसके लिये चिन्ता करनेकी जरूरत है ।

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

जो होनेवाला है, वह होकर ही रहेगा और जो नहीं होनेवाला है, वह कभी नहीं होगा, फिर चिन्ता किस बातकी ?

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

हमें अपने लिये कुछ नहीं चाहिये; क्योंकि स्वरूपमें अभाव नहीं है और शरीरको जो चाहिये, वह प्रारब्धके अनुसार पहलेसे ही निश्चित है, फिर चिन्ता किस बातकी ?

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

भगवान्‌की ओरसे हमारे निर्वाहका प्रबन्ध तो है, पर भोगका प्रबन्ध नहीं है । इसलिये निर्वाहकी चिन्ता और भोगकी इच्छा नहीं करनी चाहिये ।

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

भगवान् जो कुछ करते हैं और करेंगे, उसीमें मेरा हित है–ऐसा विश्वास करके हर परिस्थितिकी प्राप्तिमें निश्चिन्त रहना चाहिये ।

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

दुःख-चिन्ताका कारण वस्तुओंका अभाव नहीं है, प्रत्युत मूर्खता है । यह मूर्खता सत्संगसे मिटती है ।

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

मनुष्य ज्यों-ज्यों अपने शरीरकी चिन्ता छोड़ता है, त्यों-त्यों उसके शरीरकी चिन्ता संसार करने लगता है ।

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

भगवान्‌के भरोसे रहनेपर किसी प्रकारकी चिन्ता टिक ही नहीं सकती ।

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

जिसे नहीं करना चाहिये, उसे करनेसे और जिसे करना चाहिये, उसे नहीं करनेसे चिन्ता और भय होते हैं ।

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

भगवान्‌ हमसे ज्यादा जानते हैं, हमसे ज्यादा समर्थ हैं और हमसे ज्यादा दयालु है, फिर हम चिन्ता क्यों करें ?

चिन्ता दीनदयालको,  मो  मन  सदा अनन्द ।

जायो  सो  प्रतिपालसी,  रामदास गोविन्द ॥

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

चाह गयी  चिन्ता मिटी,  मनुआँ बेपरवाह ।

जिसको कछू न चाहिये,  साहनपति  साह ॥

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

प्रारब्ध   पहले   रचा,   पीछे   रचा  शरीर ।

तुलसी चिन्ता क्यों करे, भज ले श्रीरघुवीर ॥

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

मुरदेको  हरि  देत  है,  कपडो  लकड़ी  आग ।

जीवित नर चिन्ता करे, उनका बड़ा अभाग ॥

॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰      ॰॰॰॰॰

चिन्ता चितासम ह्युक्ता बिन्दुमात्रं विशेषतः ।

सजीवं  दहते  चिन्ता   निर्जीवं  दहते  चिता ॥

‘चिन्ताको चिताके समान कहा गया है, केवल एक बिन्दुकी ही अधिकता है । चिन्ता जीवित पुरुषको जलाती है और चिता मरे हुए पुरुषको जलाती है ।’