साधककी समझमें चाहे कुछ न आता हो, उसको
भगवान्की शरण लेकर भगवन्नाम-जप तो आरम्भ कर ही देना चाहिये । ❇❇❇❇❇ भगवन्नाम जप और कीर्तन‒दोनों कलियुगसे रक्षा
करके उद्धार करनेवाले हैं । ❇❇❇❇❇ नामजपमें प्रगति होनेकी पहचान यह है कि नामजप
छूटे नहीं । ❇❇❇❇❇ नामजपमें रुचि नामजप करनेसे ही होती है । ❇❇❇❇❇ नामजप अभ्यास नहीं है, प्रत्युत पुकार है ।
अभ्यासमें शरीर-इन्द्रियाँ-मनकी और पुकारमें स्वयंकी प्रधानता रहती है । ❇❇❇❇❇ नामजप सभी साधनोंका पोषक है । ❇❇❇❇❇ भगवन्नाम सबके लिये खुला है और जीभ अपने
मुखमें हैं, फिर नरकोंमें क्यों जाते हैं‒यह बड़े आश्चर्यकी बात है ! ❇❇❇❇❇ भगवान्का होकर नाम लेनेका जो माहात्म्य है,
वह केवल नाम लेनेका नहीं है । कारण कि नामजपमें नामी (भगवान्)-का प्रेम मुख्य है, उच्चारण (क्रिया) मुख्य नहीं है । ❇❇❇❇❇ संख्या (क्रिया)-की तरफ वृत्ति रहनेसे
निर्जीव जप होता है और भगवान्की तरफ वृत्ति रहनेसे सजीव जप होता है । इसलिए जप और
कीर्तनमें क्रियाकी मुख्यता न होकर प्रेमभावकी मुख्यता होनी चाहिये कि हम अपने
प्यारेका नाम लेते हैं ! ❇❇❇❇❇ भगवान्का कौन-सा नाम और रूप बढ़िया है‒यह
परीक्षा न करके साधकको अपनी परीक्षा करनी चाहिये कि मुझे कौन-सा नाम और रूप अधिक
प्रिय है ।
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