।। श्रीहरिः ।।

         




           आजकी शुभ तिथि–
आश्विन (अधिक) शुक्ल एकादशी
वि.सं.२०७७, रविवा
अमृतबिन्दु 



मृत्यकालकी सब सामग्री तैयार है, कफन भी तैयार है, नया नहीं बनाना पड़ेगा । उठानेवाले आदमी भी तैयार है, नये नहीं जन्मेंगे । जलानेकी जगह भी तैयार है, नयी नहीं लेनी पड़ेगी । जलानेके लिये लकड़ी भी तैयार है, नये वृक्ष नहीं लगाने पड़ेंगे । केवल श्वास बन्द होनेकी देर है । श्वास बन्द होते ही यह सब सामग्री जुट जायगी । फिर निश्चिन्त कैसे बैठे हो ?

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चेत करो ! यह संसार सदा रहनेके लिये नहीं है । यहाँ केवल मरने-ही-मरनेवाले रहते हैं । फिर पैर फैलाये कैसे बैठे हो ?

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विचार करो, क्या ये दिन सदा ऐसे ही रहेंगे ?

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मकान यहाँ बना रहे हो, सजावट यहाँ कर रहे हो, संग्रह यहाँ कर रहे हो, पर खुद मौतकी तरफ भागे चले जा रहे हो ! जहाँ जाना है, पहले उसको ठीक करो !

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निश्चित समयपर चलनेवाली गाड़ीके लिये भी जब पहलेसे सावधानी रहती है, फिर जिस मौतरूपी गाड़ीका कोई समय निश्चित नहीं, उसके लिये तो हरदम सावधानी रहनी चाहिये ।

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 ‘करेंगे’‒यह निश्चित नहीं है, पर ‘मरेंगे’‒यह निश्चित है ।

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आप भगवान्‌को नहीं देखते, पर भगवान्‌ आपको निरन्तर देख रहे हैं ।

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आनेवाला जानेवाला होता है‒यह नियम है ।

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कालरूपी अग्निमें सब कुछ निरन्तर जल रहा है, फिर किसका भरोसा करें ? किसकी इच्छा करें ?

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विचार करो कि अपना कौन है ? अगर अभी मौत आ जाय तो कोई हमारी सहायता कर सकता है क्या ?

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जन्मदिन आनेपर बड़ा आनन्द मनाते हैं कि हम इतने वर्षके हो गये ! वास्तवमें इतने वर्षके हो नहीं गये, प्रत्युत इतने वर्ष मर गये अर्थात् हमारी उम्रमेंसे इतने वर्ष कम हो गये और मौत नजदीक आ गयी !

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बालक जन्मता है तो बड़ा होगा कि नहीं, पढ़ेगा कि नहीं, उसका विवाह होगा कि नहीं, उसके बाल-बच्‍चे होंगे कि नहीं, उसके पास धन होगा कि नहीं आदि सब बातोंमें सन्देह है, पर वह मरेगा कि नहीं‒इसमें कोई सन्देह नहीं है !

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