।। श्रीहरिः ।।

                            




           आजकी शुभ तिथि–
आश्विन (अधिक) अमावस्या
वि.सं.२०७७, शुक्रवा
सत्संगके अमृत-कण



(६१)

श्रेष्ठ पुरुष वही है, जो दूसरोंके हितमें लगा हुआ है ।

(६२)

चरित्रकी सुन्दरता ही असली सुन्दरता है ।

(६३)

रुपयोंको सबसे बढ़िया मानना बुद्धि-भ्रष्ट होनेका लक्षण है ।

(६४)

याद करो तो भगवान्‌को याद करो, काम करो तो सेवा करो ।

(६५)

धर्मके लिये धन नहीं चाहिये, मन चाहिये ।

(६६)

मनुष्यको वस्तु गुलाम नहीं बनाती, उसकी इच्छा गुलाम बनाती है ।

(६७)

शरीरका सदुपयोग केवल संसारकी सेवामें ही है ।

(६८)

भगवान्‌ सर्वसमर्थ होते हुए भी हमारेसे दूर होनेमें असमर्थ हैं ।

(६९)

यदि शान्ति चाहते हो तो कामनाका त्याग करो ।

(७०)

कुछ भी लेनेकी इच्छा भयंकर दुःख देनेवाली है ।

(७१)

पारमार्थिक उन्नति करनेवालेकी लौकिक उन्नति स्वतः होती है ।

(७२)

संसार विश्वास करनेयोग्य नहीं है, प्रत्युत सेवा करनेयोग्य है ।

(७३)

सच्ची बातको स्वीकार करना मनुष्यका धर्म है ।

(७४)

ज्ञान मुक्त करता है, पर ज्ञानका अभिमान नरकोंमें ले जाता है ।

(७५)

प्रतिक्षण बदलनेवाले संसारपर विश्वास ही भगवान्‌पर विश्वास नहीं होने देता ।

(७६)

भोगी योगी नहीं होता, प्रत्युत रोगी होता है ।

(७७)

सबमें भगवद्‌भाव करनेसे सम्पूर्ण विकारोंका नाश हो जाता है ।

(७८)

भक्त दुर्लभ है, भगवान्‌ नहीं ।

(७९)

विचार करो, क्या ये दिन सदा ऐसे ही रहेंगे ?

(८०)

भगवान्‌ हमारे हैं, पर मिली हुई वस्तु हमारी नहीं है, प्रत्युत भगवान्‌की है ।