(६१) श्रेष्ठ पुरुष वही है, जो दूसरोंके हितमें
लगा हुआ है । (६२) चरित्रकी सुन्दरता ही असली सुन्दरता है । (६३) रुपयोंको सबसे बढ़िया मानना बुद्धि-भ्रष्ट
होनेका लक्षण है । (६४) याद करो तो भगवान्को याद करो, काम करो तो
सेवा करो । (६५) धर्मके लिये धन नहीं चाहिये, मन चाहिये । (६६) मनुष्यको वस्तु गुलाम नहीं बनाती, उसकी इच्छा
गुलाम बनाती है । (६७) शरीरका सदुपयोग केवल संसारकी सेवामें ही है । (६८) भगवान् सर्वसमर्थ होते हुए भी हमारेसे दूर
होनेमें असमर्थ हैं । (६९) यदि शान्ति चाहते हो तो कामनाका त्याग करो । (७०) कुछ भी लेनेकी इच्छा भयंकर दुःख देनेवाली है । (७१) पारमार्थिक उन्नति करनेवालेकी लौकिक उन्नति
स्वतः होती है । (७२) संसार विश्वास करनेयोग्य नहीं है, प्रत्युत
सेवा करनेयोग्य है । (७३) सच्ची बातको स्वीकार करना मनुष्यका धर्म है । (७४) ज्ञान मुक्त करता है, पर ज्ञानका अभिमान
नरकोंमें ले जाता है । (७५) प्रतिक्षण बदलनेवाले संसारपर विश्वास ही
भगवान्पर विश्वास नहीं होने देता । (७६) भोगी योगी नहीं होता, प्रत्युत रोगी होता है
। (७७) सबमें भगवद्भाव करनेसे सम्पूर्ण विकारोंका नाश
हो जाता है । (७८) भक्त दुर्लभ है, भगवान् नहीं । (७९) विचार करो, क्या ये दिन सदा ऐसे ही रहेंगे ? (८०)
भगवान् हमारे हैं, पर मिली हुई वस्तु हमारी
नहीं है, प्रत्युत भगवान्की है । |

