।। श्रीहरिः ।।

                                      




           आजकी शुभ तिथि–
आश्विन शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७७, सोमवा
चेतावनी



विचार करें कि धन आदि पदार्थोंमें जो सुख दिखलायी देता है एवं हम उनसे सुखकी आशा करते है, तो क्या उनमें पूरा सुख है ? क्या उनके सम्बन्धसे कभी दुःख होता ही नहीं ? क्या वे सदा साथ रहेंगे ? क्या उन पदार्थोंके रहते हुए दुःख होता ही नहीं ? ऐसा तो हो ही नहीं सकता; प्रत्युत उन पदार्थोंके सम्बन्धसे, उनको अपने माननेसे लोभ जैसा नरक-द्वाररूप भयंकर दोष उत्पन्न हो जाता है, जो जीते-जी आगकी तरह जलाता ही रहता है और मरनेपर सर्प आदि दुःखमयी योनियों तथा महान्‌ यन्त्रणामय नरकोंमें ले जाता है ।

विचार करें कि आप अपने कुटुम्बके लोगोंसे एवं अन्य प्राणियोंसे सुख चाहते हैं, तो क्या वे सभी सुखी हैं ? क्या कभी दुःखी नहीं होते ? क्या वे सभी सबके अनुकूल होते भी हैं ? क्या वे सभी आपके साथ रहते भी है ? क्या रहना चाहते भी हैं ? क्या वे सभी आपके साथ रह भी सकते हैं ? क्या पहलेवाले सभी साथी आपके साथ हैं ? क्या उनके मनोंमें और शरीरोंमें परिवर्तन नहीं होता ? क्या उनमेंसे किसीके मनमें किसी प्रकारकी कमीका बोध नहीं होता ? क्या वे सर्वदा सर्वथा पूर्ण हैं ? क्या वे कभी किसीसे कुछ भी नहीं चाहते हैं ? कम-से-कम आपसे तो कुछ नहीं चाहते होंगे ? सोचिये ! जो दूसरोंसे अपने लिये कुछ भी चाहता है, क्या वह दूसरोंकी चाह पूरी कर सकता है ? क्या स्वयं सुख चाहनेवाला औरोंको सुख दे सकता है ?

चेत करें । सबका हर समय वियोग हो रहा है । आयु पल-पलमें घट रही है । मृत्यु प्रतिक्षण समीप आ रही है । ये बातें क्या विचारसे नहीं दिखलायी देती हैं ? यदि कहे कि ‘हाँ, दिखलायी देती हैं ।’ तो ठीक तरहसे क्यों नहीं देखते ? कब देखेंगे ? किसकी प्रतीक्षा करते हैं ? या इस मोहमें पड़े रहनेसे आपको अपना हित दिखलायी देता है ? यदि नहीं तो आपका हित कौन करेगा ? किसके भरोसे निश्चिन्त बैठे हैं ? ऐसे कबतक काम चलेगा ? कभी सोचा है ? नहीं तो कब सोचोगे ? आपका सच्‍चा साथी कौन है ? क्या यह शरीर; जिसे आप मेरा कहते-कहते ‘मैं’ भी कह देते हैं, आपकी इच्छाके अनुसार नीरोग रहेगा ? क्या जैसा चाहें, वैसा काम देगा ? क्या सदा साथ रहेगा, मरेगा नहीं ? इस ओर आपने अपनी विवेक-दृष्टीसे देखा भी है ? कब देखेंगे ? क्या इस विषयमें अपरिचित ही रहना है ? क्या यह बुद्धिमानी है ? क्या इसका परिणाम और कोई भोगेगा ?

चेत करें ! पहले आप जिन पदार्थों और कुटुम्बीयोंके साथ रहे हैं, वे सब आज हैं क्या ? एवं आज जो आपके साथ हैं, वे रहेंगे क्या ? वे सब-के-सब सदा साथ रह सकते हैं क्या ? थोडा ध्यान देकर विचार करें ।

यदि आप ठीक विचार करेंगे तो आपको ज्ञात हो जायगा कि सदा साथ रहनेवाले तो केवल एक वे परम कृपामय परमात्मा ही हैं । अतएव आपको उन्हींके चरणोंकी शरण लेनी चाहिये ।

१.   परमात्मामें नित्य-सिद्ध अपनापन है, केवल जीव भूल गया है ।

१.   संसारमें अपनापन है ही नहीं, केवल जीवने भूलसे मान लिया है ।

२.    परमात्माका कभी वियोग हो ही नहीं सकता ।

२.    संसारके साथ कभी संयोग रह ही नहीं सकता ।

३.   परमात्मा जीवको कभी छोड़ ही नहीं सकते ।

३.   संसार जीवके साथ कभी रह ही नहीं सकता ।

४.   परमात्मामें आनन्द-ही-आनन्द है, दुःख है ही नहीं ।

४.   संसारमें आनन्द अर्थात् दुःखरहित सुख है ही नहीं ।


शयनकालको भजन बनानेका साधन

मैं भगवान्‌का हूँ, शरीर भी भगवान्‌का ही है । अतः नींद लेनेका लक्ष्य न रखकर भजन करनेका ही उद्देश्य रखना । इतनी देरतक चलते-फिरते, बैठकर भजन किया है, अब लेटकर भजन करना है । भगवान्‌की विस्मृति न हो जाय । ध्यान-सहित जप करते रहना है । जप करते-करते नींद आ जाय तो वह नींद भी भजन ही है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘चेतावनी’ (पुरानी) पुस्तकसे