।। श्रीहरिः ।।

                  




           आजकी शुभ तिथि–
आश्विन (अधिक) कृष्ण, चतुर्थी
वि.सं.२०७७, मंगलवा
प्रश्नोत्तर
(शिखा धारणकी आवश्यकताके सम्बन्धित)



प्रश्न‒चोटी रखनेसे क्या लाभ होगा ?

उत्तर‒जो लाभको देखता है, वह पारमार्थिक उन्नति कर सकता ही नहीं । लाभ देखकर ही कोई काम करोगे तो फिर शास्त्र-वचनका, सन्त-वचनका क्या आदर हुआ ? उनकी क्या इज्जत हुई ? अपने लाभके लिये, अपना मतलब सिद्ध करनेके लिये तो पशु-पक्षी भी कार्य करते हैं । यह मनुष्यपना नहीं है । चोटी रखनेमें आपकी भलाई है‒इसमें मेरेको रत्तीमात्र भी सन्देह नहीं है । वास्तवमें हमें लाभ-हानिको न देखकर धर्मको देखना है । धर्मशास्त्रमें आया है कि बिना शिखाके जो भी यज्ञ, दान, तप, व्रत आदि शुभकर्म किये जाते हैं, वे सब निष्फल हो जाते हैं‒

सदोपवीतिना  भाव्यं सदा  बद्धशिखेन  च ।

विशिखो व्युपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतम् ॥

                                             (कात्यायनस्मृति १/४)

इतना ही नहीं, शिखाके बिना किये गये वे पुण्यकर्म राक्षस-कर्म हो जाते हैं‒

विना यच्छिखया  कर्म विना यज्ञोपवीतकम् ।

राक्षसं तद्धि विज्ञेयं समस्ता निष्फला क्रियाः ॥

                                                        (व्यास)

इसलिये धर्मशास्त्रने आज्ञा दी है‒

स्नाने दाने जपे होम  संध्यायां देवतार्चने ।

शिखाग्रन्थिं सदा कुर्यादित्येतन्मनुरब्रवीत् ॥

‘स्नान, दान, जप, होम, संध्या और देवपूजनके समय शिखामें ग्रन्थि (चोटीमें गाँठ) अवश्य लगानी चाहिये‒ऐसा महाराज मनुने कहा है ।’

हिन्दूधर्मके सोलह संस्करोंमें ‘चुडाकरण संस्कार’ (मुण्डन संस्कार)-का विशेष महत्त्व है । इस संस्कारमें शिखा धारण करनेसे दीर्ध आयु, तेज, बल और ओजकी प्राप्ति होती है‒

दीर्घायुत्वाय बलाय वर्चसे शिखायै वषट् ।

शिखाके विशेष महत्त्वके कारण ही हिन्दुओंने यवन-शासनमें अपनी शिखाकी रक्षाके लिये सर कटवा दिया, पर शिखा नहीं कटवायी । कितने दुःखकी बात है कि आज हिन्दू उसी शिखाको अपने ही हाथो काट रहा हैं ! धर्मशास्त्रमें शिखा न रखनेका प्रायश्चित बताया गया है‒

शिखां छिन्दन्ति ये मोहद् द्वेषादज्ञानतोऽपि वा ।

तप्तकृच्छ्रेण  शुद्ध्यन्ति  त्रयो  वर्णा  द्विजातयः ॥

                                                    (लघुहारित)

‘तीनों वर्णोंके जो द्विजातिलोग मोहसे, द्वेषसे अथवा अज्ञानसे अपनी शिखा काट देते हैं, वे तप्तकृच्छ्र-व्रत करनेसे शुद्ध होते हैं ।’

अथ चेत् प्रमादान्निशिखं वपनं स्यात् तत्र कौशीं शिखां ब्रह्मग्रन्थिसमन्वितां दक्षिणकर्णोपरि आशिखाबन्धादवतिष्ठेत् ॥            (काठकगुह्यसूत्र)

‘यदि कोई मनुष्य प्रमादवश शिखासहित क्षौर (हजामत) करा ले तो वह ब्रह्मग्रन्थियुक्त कुशाकी शिखा बनाकर दाहिने कानपर तबतक रखे, जबतक बाँधनेयोग्य शिखा न बढ़ जाय ।’