यदि सत्तर वर्षकी अवस्थाके बाद (वृद्धावस्थामें) बाल झड़
जानेके कारण शिखा न रहे तो यथासम्भव चारों ओर बचे हुए बालोंसे शिखा बनाकर
नित्यकर्म करता रहे । यदि बाल बिलकुल न हों तो कुशा आदिकी शिखा रखकर नित्यकर्म
करे, पर शिखाशून्य कभी न रहे‒ सप्तत्यूर्ध्वं तु चेत्तस्याः पूर्वतः पृष्ठतोऽपि वा । पाश्वर्तः परितो वापि
समुद्भूतैश्च रोमभिः ॥ शिखा कार्या प्रयत्नेन
न चेन्नैवोपपद्यते । तत्स्थाने सर्वशून्ये तु
परितो वापि किं पुनः ॥ ब्राह्मणसूचनायैवं
तानि लोमानि धारयेत् । अन्यथा न भवेदेव
तथा तस्मात्समाचरेत् ॥
(आंगिरसस्मृति ६१-६३) ‘अखिल भारतीय पण्डित महापरिषद्’ (वाराणसी) ने शिखा रखनेके निम्न लाभ बताये हैं‒ 1) शिखा रखने तथा उसके नियमोंका यथावत् पालन करनेसे मनुष्यको सद्बुद्धि, सद्विचार आदिकी प्राप्ति होती है । 2) शिखा रखनेसे आत्मशक्ति प्रबल बनी रहती है । 3) शिखा रखनेसे मनुष्य धार्मिक, सात्त्विक और संयमी बनता है । 4) शिखा रखनेसे मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्योंमें सफलता प्राप्त करता है । 5) शिखा रखनेसे मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि क्रियाओंको ठीक-ठीक कर सकता है । 6) शिखा रखनेसे सभी देवता मनुष्यकी रक्षा करते हैं । 7) शिखा रखनेसे मनुष्यकी नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है । 8) शिखा रखनेसे मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है । प्रश्न‒चोटी
रखनेसे शर्म आती है, वह कैसे छूटे ? उत्तर‒आश्चर्यकी
बात है कि व्यापार आदिमें बेईमानी, झूठ-कपट करनेमें शर्म नहीं आती, गर्भपात आदि पाप
करनेमें शर्म नहीं आती, चोरी, विश्वासघात आदि करते समय शर्म नहीं आती, पर चोटी
रखनेमें शर्म आती है ! आपकी शर्म ठीक है या भगवान् और सन्तोंकी बात मानना, उनको प्रसन्न करना ठीक है ? आप चोटी रखो तो आरम्भमें शर्म
आयेगी, पर पीछे सब ठीक हो जायगा । प्रश्न‒चोटी
देखकर लोग हँसी उड़ाते हैं, कैसे बचें ? उत्तर‒लोग हँसी उड़ायें, पागल कहें तो उसको सह लो, पर
धर्मका त्याग मत करो । आपका
धर्म आपके साथ चलेगा, हँसी-दिल्लगी आपके साथ नहीं चलेगी । लोगोंकी हँसीसे
आप डरो मत । लोग पहले
हँसी उड़ायेंगे, पर बादमें आदर करने लगेंगे कि यह अपने धर्मका पक्का आदमी है । एक शंकरानन्द नामके हमारे प्रेमी सज्जन थे । वे
बहुत पढ़े-लिखे थे । उन्होंने मेरेको बताया कि मैं पढ़नेके लिये जर्मनी गया । वहाँ
मैं धोती पहना करता था । मेरी वेशभूषा देखकर पहले तो वहाँके लोगोंने मेरी हँसी
उड़ायी, पर बादमें सब मेरा विशेष आदर करने लग गये कि यह ईमानदार आदमी है, सच्चा धर्मात्मा आदमी है । इसलिये अपने धर्मका पालन निधड़क होकर करो,
इसमें डर किस बातका ? एक कहानी है । एक आदमीकी किसी कारणसे नाक कट गयी । उसके
साथीने पूछा तो वह बोला कि दोनों आँखोंके बीचमें नाक आड़े आती है, इसलिये ब्रह्मके
दर्शन नहीं होते । अगर बीचमें नाक न रहे तो दोनों आँखोंकी दृष्टि मिलनेसे साक्षात्
ब्रह्मके दर्शन होते हैं ! ऐसा सुनकर उसके साथीने भी अपनी नाक कटवा ली । जब उसको
ब्रह्मके दर्शन नहीं हुए तो उसने साथीसे कहा कि नाक कटवानेसे मेरेको दर्शन नहीं
हुए ? वह साथी बोला‒‘चुप रह, हल्ला मत कर ! तेरेसे कोई पूछे तो यही कहना कि मेरेको
ब्रह्मके दर्शन होते हैं ।’ धीरे-धीरे यह बात फैलती गयी । दूसरोंके कहनेसे,
एक-दूसरेको देखकर नाक तो सबने कटवा ली, पर ब्रह्मके दर्शन किसीको नहीं हुए । एक
पूरा समुदाय कटी नाकका हो गया ! अब कोई नाकवाला आदमी उनके बीच आता तो वे सब मिलकर
हँसी उड़ाते कि देखो, नक्कू आ गया ! नक्कू आ गया ! इसी
तरह चोटीकटिया लोग आज चोटीवालेकी हँसी उड़ाते हैं । अतः उनकी हँसीकी परवाह न करके
अपने धर्मका पालन करना चाहिये । न जातु कामान्न भयान्न लोभाद् धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः । नित्यो धर्मः सुखदुःखे त्वनित्ये जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः ॥ (महाभारत स्वर्गा॰ ५/६३) ‘कामनासे, भयसे, लोभसे अथवा प्राण बचानेके
लिये भी धर्मका त्याग न करे । धर्म नित्य है और सुख-दुःख अनित्य हैं । इसी प्रकार
जीवात्मा नित्य है और उसके बन्धनका हेतु (राग) अनित्य है ।’ नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒ ‘शिखा (चोटी) धारणकी आवश्यकता’ पुस्तकसे |

