भगवान् सबके परम सुहृद हैं । वे पापी, दुराचारीको
जल्दी मिलते हैं । माँ कमजोर बालकको जल्दी मिलती है । एक माँके दो बेटे हैं । एक बेटा तो समयपर भोजन कर लेता है,
फिर कुछ नहीं लेता और दूसरा बेटा दिनभर खाता रहता है ।
दोनों बेटे भोजनके लिये बैठ जायँ तो माँ पहले उसको रोटी देगी जो समयपर भोजन करता है; क्योंकि वह भूखा उठ जायगा तो शामतक खायेगा नहीं । दूसरे बेटेको माँ कहती है कि तू ठहर जा;
क्योंकि वह तो बकरीकी तरह दिनभर चरता रहता है । दोनों एक ही
माँके बेटे हैं, फिर भी
माँ पक्षपात करती है । इसी तरह जो एक भगवान्के सिवाय
कुछ नहीं चाहता, उसको भगवान् सबसे पहले मिलते हैं; क्योंकि
वह भगवान्को अधिक प्रिय है । वह एक भगवान्के सिवाय अन्य किसीको अपना नहीं मानता
। वह भगवान्के लिये दुःखी होता है तो भगवान्से उसका दुःख सहा नहीं जाता । कोई चार-पाँच वर्षका बालक हो और उसका माँसे झगडा हो आय तो माँ
उसके सामने ढीली पड़ जाती है । संसारकी लड़ाईमें तो
जिसमें अधिक बल होता है, वह जीत जाता है, पर
प्रेमकी लड़ाईमें जिसमें अधिक प्रेम होता है, वह
हार जाता है । बेटा माँसे कहता
है कि मैं तेरी गोदमें नहीं आऊँगा, पर माँ उसकी गरज करती है कि आ जा,
आ जा बेटा ! माँमें यह स्नेह
भगवान्से ही तो आया है । भगवान् भी भक्तकी गरज करते हैं । भगवान्को जितनी गरज
है, उतनी गरज दुनियाको नहीं है । माँको जितनी गरज होती है,
उतनी बालकको नहीं होती । बालक तो माँका दूध पीते समय
दाँतोंसे काट लेता है, पर माँ क्रोध नहीं करती । अगर वह क्रोध करे तो बालक जी सकता
है क्या ? माँ तो बालकपर कृपा ही करती है । ऐसे ही भगवान् हमारी अनन्त जन्मोंकी माता है । वे भक्तकी उपेक्षा
नहीं कर सकते । भक्तको वे अपना मुकुटमणि मानते हैं—‘मैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुटमणि’
। भक्तोंका काम करनेके लिये भगवान् हरदम तैयार रहते हैं । जैसे बच्चा माँके बिना नहीं रह सकता और माँ बच्चेके बिना नहीं रह सकती,
ऐसे ही भक्त भगवान्के बिना नहीं
रह सकता और भगवान् भक्तके बिना नहीं रह सकते । नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’
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