।। श्रीहरिः ।।

                                                               




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७७, शुक्रवा

भगवान्‌ आज ही मिल सकते है



भगवान्‌ सबके परम सुहृद हैं । वे पापी, दुराचारीको जल्दी मिलते हैं । माँ कमजोर बालकको जल्दी मिलती है । एक माँके दो बेटे हैं । एक बेटा तो समयपर भोजन कर लेता है, फिर कुछ नहीं लेता और दूसरा बेटा दिनभर खाता रहता है । दोनों बेटे भोजनके लिये बैठ जायँ तो माँ पहले उसको रोटी देगी जो समयपर भोजन करता है; क्योंकि वह भूखा उठ जायगा तो शामतक खायेगा नहीं । दूसरे बेटेको माँ कहती है कि तू ठहर जा; क्योंकि वह तो बकरीकी तरह दिनभर चरता रहता है । दोनों एक ही माँके बेटे हैं, फिर भी माँ पक्षपात करती है । इसी तरह जो एक भगवान्‌के सिवाय कुछ नहीं चाहता, उसको भगवान्‌ सबसे पहले मिलते हैं; क्योंकि वह भगवान्‌को अधिक प्रिय है । वह एक भगवान्‌के सिवाय अन्य किसीको अपना नहीं मानता । वह भगवान्‌के लिये दुःखी होता है तो भगवान्‌से उसका दुःख सहा नहीं जाता ।

कोई चार-पाँच वर्षका बालक हो और उसका माँसे झगडा हो आय तो माँ उसके सामने ढीली पड़ जाती है । संसारकी लड़ाईमें तो जिसमें अधिक बल होता है, वह जीत जाता है, पर प्रेमकी लड़ाईमें जिसमें अधिक प्रेम होता है, वह हार जाता है । बेटा माँसे कहता है कि मैं तेरी गोदमें नहीं आऊँगा, पर माँ उसकी गरज करती है कि आ जा, आ जा बेटा ! माँमें यह स्नेह भगवान्‌से ही तो आया है । भगवान्‌ भी भक्तकी गरज करते हैं । भगवान्‌को जितनी गरज है, उतनी गरज दुनियाको नहीं है । माँको जितनी गरज होती है, उतनी बालकको नहीं होती । बालक तो माँका दूध पीते समय दाँतोंसे काट लेता है, पर माँ क्रोध नहीं करती । अगर वह क्रोध करे तो बालक जी सकता है क्या ? माँ तो बालकपर कृपा ही करती है । ऐसे ही भगवान्‌ हमारी अनन्त जन्मोंकी माता है । वे भक्तकी उपेक्षा नहीं कर सकते । भक्तको वे अपना मुकुटमणि मानते हैंमैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुटमणिभक्तोंका काम करनेके लिये भगवान्‌ हरदम तैयार रहते हैं । जैसे बच्‍चा माँके बिना नहीं रह सकता और माँ बच्‍चेके बिना नहीं रह सकती, ऐसे ही भक्त भगवान्‌के बिना नहीं रह सकता और भगवान्‌ भक्तके बिना नहीं रह सकते ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

—‘मानवमात्रके कल्याणके लियेपुस्तकसे