।। श्रीहरिः ।।

                                                                    




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७७, बुधवा
भगवान्‌से अपनापन



डॉक्टरने बीमारी देखकर कहा कि इसको खून चढ़ाया जाय तो यह ठीक हो जायगी । खून कौन दे ? परीक्षा की गयी । मुसलमानका वह लड़का, जो कम्पाउण्डर बना हुआ था, उसी अस्पतालमें था । दैवयोगसे उसका खून मिल गया । उस माईने तो उसको पहचाना नहीं, पर उस लड़केने उसको पहचान लिया कि यही मेरा पालन करनेवाली माँ है । बचपनमें उसका दूध पीकर पला था, इस कारण खूनमें एकता आ गयी थी । डॉक्टरने कहा, इसका खून चढ़ाया जा सकता है । उससे पूछा कि तुम खून दे सकते हो ? उसने कहा खून तो दूँगा, पर दो सौ रुपये लूँगा । अहीरने उसको दो सौ रुपये दे दिये । उसने आवश्यकतानुसार अपना खून दे दिया । वह खून उस माईको चढ़ा दिया गया, जिससे उसका शरीर ठीक हो गया और वह अपने घर चली गयी ।

कुछ दिनोंके बाद वह लड़का अहीरके घर गया और हजार-दो हजार रुपये माँके चरणोमें भेंट करके बोला कि आप मेरी माँ हैं । मैं आपका बच्‍चा हूँ । आपने मेरा पालन किया है । ये रुपये आप ले लें । उसने मना किया तो कहा कि ये आपको लेने ही पड़ेंगे । उसने अस्पतालकी बात याद दिलाई कि खूनके दो सौ रुपये मैंने इसलिए लिये थे कि मुफ्तमें आप खून नहीं लेती और खून न लेनेसे आपका बचाव नहीं होता । यह खून तो वास्तवमें आपका ही है । आपके दूधसे ही मैं पला हूँ, इसलिए मेरा यह शरीर और सब कुछ आपका ही है । मेरे रुपये शुद्ध कमाईके हैं । आपकी कृपासे मैं लहसुन और प्याज भी नहीं खाता हूँ । अपवित्र, गन्दी चीजोंमें मेरी अरुचि हो गयी है । अतः ये रुपये आपको लेने ही पड़ेंगे । ऐसा कहकर उसने रुपये दे दिये । अहीरकी स्त्री बड़े शुद्ध भाववाली थी, जिससे उसके दूधका असर ऐसा हुआ कि वह लड़का मुसलमान होते हुए भी अपवित्र चीज नहीं खाता था ।

आप विचार करें । जितनी माताएँ हैं, सब अपने-अपने बच्‍चोंका पालन करती ही हैं । हम सबका पालन बहनों-माताओंने ही किया है । परन्तु उनकी कोई कथा नहीं सुनाता, कोई बात नहीं करता । अहीरकी स्त्रीकी बात आप और हम करते हैं । उसका हमपर असर पड़ता है कि कितनी विशेष दया थी उसके हृदयमें ! उसके मनमें यह भेद-भाव नहीं था कि दूसरेके बच्‍चेका मैं कैसे पालन करूँ ? इसलिये आज हमलोग उसका गुण गाते हैं कि कितनी श्रेष्ठ माँ थी, जिसने दूसरेके बालकका भी पालन किया और पालन करके उसके पिताको सौंप दिया ! अपने बच्‍चोंका पालन तो कुतिया भी करती है, इसमें क्या बड़ी बात है ?

चाहे तो अपने बालकोंको अपना न मानकर (ठाकुरजीका मानकर) पालन करो और चाहे जो अपने बालक नहीं हैं,उनका पालन करो तो बड़ा पुण्य होगा । परन्तु ममता करनेसे यह पुण्य खत्म हो जाता है । मैं अपने बच्‍चोंका पालन करूँ, अपने जनोंकी रक्षा करूँयह अपनापन ही आपके पुण्यका भक्षण कर जाता है । इसलिए सज्जनो ! आप कृपा करके अपने कुटुम्बको भगवान्‌का मानें । छोटे-बड़े जितने हैं, सब प्रभुके हैं । उनकी सेवा करें और प्रभुसे कहें कि हे नाथ ! हम आपके जनोंकी सेवा करते हैं यदि आप ऐसा करने लग जायँ तो भगवान्‌पर इसका अहसान हो जाय । भगवान्‌ भी कहेंगे कि हाँ भाई, मेरे बालकोंका पालन किया । आप ममता करेंगे तो भगवान्‌पर कोई अहसान नहीं । अपने बच्‍चोंका पालन तो सब करते हैं । केवल यह भाव रखें कि ये हमारे नहीं हैं, ये ठाकुरजीके हैं । जीवन सफल हो जायगा सज्जनो !