डॉक्टरने बीमारी देखकर कहा कि इसको खून
चढ़ाया जाय तो यह ठीक हो जायगी । खून कौन दे ?
परीक्षा की गयी । मुसलमानका वह लड़का,
जो कम्पाउण्डर बना हुआ था,
उसी अस्पतालमें था । दैवयोगसे उसका खून मिल गया । उस माईने
तो उसको पहचाना नहीं, पर उस लड़केने उसको पहचान लिया कि यही मेरा पालन करनेवाली
माँ है । बचपनमें उसका दूध पीकर पला था, इस कारण खूनमें एकता आ गयी थी । डॉक्टरने कहा,
इसका खून चढ़ाया जा सकता है । उससे पूछा कि तुम खून दे सकते
हो ? उसने कहा खून तो दूँगा, पर दो सौ रुपये लूँगा । अहीरने उसको दो सौ रुपये दे दिये ।
उसने आवश्यकतानुसार अपना खून दे दिया । वह खून उस माईको चढ़ा दिया गया,
जिससे उसका शरीर ठीक हो गया और वह अपने घर चली गयी । कुछ दिनोंके बाद वह लड़का अहीरके घर गया और हजार-दो हजार रुपये
माँके चरणोमें भेंट करके बोला कि आप मेरी माँ हैं । मैं आपका बच्चा हूँ । आपने मेरा
पालन किया है । ये रुपये आप ले लें । उसने मना किया तो कहा कि ये आपको लेने ही पड़ेंगे
। उसने अस्पतालकी बात याद दिलाई कि खूनके दो सौ रुपये मैंने इसलिए लिये थे कि मुफ्तमें
आप खून नहीं लेती और खून न लेनेसे आपका बचाव नहीं होता । यह
खून तो वास्तवमें आपका ही है । आपके दूधसे ही मैं पला हूँ, इसलिए
मेरा यह शरीर और सब कुछ आपका ही है । मेरे रुपये शुद्ध कमाईके हैं । आपकी कृपासे
मैं लहसुन और प्याज भी नहीं खाता हूँ । अपवित्र, गन्दी
चीजोंमें मेरी अरुचि हो गयी है । अतः ये रुपये आपको लेने ही पड़ेंगे । ऐसा कहकर
उसने रुपये दे दिये । अहीरकी स्त्री बड़े शुद्ध भाववाली थी, जिससे
उसके दूधका असर ऐसा हुआ कि वह लड़का मुसलमान होते हुए भी अपवित्र चीज नहीं खाता था
। आप विचार करें । जितनी माताएँ हैं,
सब अपने-अपने बच्चोंका पालन करती ही हैं । हम सबका पालन बहनों-माताओंने
ही किया है । परन्तु उनकी कोई कथा नहीं सुनाता,
कोई बात नहीं करता । अहीरकी स्त्रीकी बात आप और हम करते हैं
। उसका हमपर असर पड़ता है कि कितनी विशेष दया थी उसके हृदयमें ! उसके मनमें यह भेद-भाव
नहीं था कि दूसरेके बच्चेका मैं कैसे पालन करूँ ?
इसलिये आज हमलोग उसका गुण गाते हैं कि कितनी श्रेष्ठ माँ थी,
जिसने दूसरेके बालकका भी पालन किया और पालन करके उसके पिताको
सौंप दिया ! अपने
बच्चोंका पालन तो कुतिया भी करती है, इसमें क्या
बड़ी बात है ? चाहे तो अपने बालकोंको अपना न मानकर (ठाकुरजीका मानकर) पालन करो और चाहे जो अपने बालक नहीं हैं,उनका पालन करो तो बड़ा पुण्य होगा । परन्तु ममता करनेसे यह पुण्य खत्म हो जाता है । मैं अपने बच्चोंका पालन करूँ, अपने जनोंकी रक्षा करूँ—यह अपनापन ही आपके पुण्यका भक्षण कर जाता है । इसलिए सज्जनो ! आप कृपा करके अपने कुटुम्बको भगवान्का मानें । छोटे-बड़े जितने हैं, सब प्रभुके हैं । उनकी सेवा करें और प्रभुसे कहें कि हे नाथ ! हम आपके जनोंकी सेवा करते हैं यदि आप ऐसा करने लग जायँ तो भगवान्पर इसका अहसान हो जाय । भगवान् भी कहेंगे कि हाँ भाई, मेरे बालकोंका पालन किया । आप ममता करेंगे तो भगवान्पर कोई अहसान नहीं । अपने बच्चोंका पालन तो सब करते हैं । केवल यह भाव रखें कि ये हमारे नहीं हैं, ये ठाकुरजीके हैं । जीवन सफल हो जायगा सज्जनो ! |