।। श्रीहरिः ।।

                                                                     




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७७, गुरुवा
भगवान्‌से अपनापन


गीतामें कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोगइन तीनोंमें ही ममता और अहंताके त्यागकी बात आयी है

(१) निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति ॥

(२/७१)

(२) अहंकारं  बलं दर्पं   कामं  क्रोधं   परिग्रहम् ।

      विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥

(१८/५३)

(३) निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी ॥

(१२/१३)

ये मेरे नहीं हैं, संसारके हैंइस प्रकार संसारके माननेसे कर्मयोगहो जायगा । ये मेरे नहीं हैं, प्रकृतिमात्रके हैंइस प्रकार प्रकृतिके माननेसे ज्ञानयोगहो जायगा । ये मेरे नहीं हैं, ठाकुरजीके हैंइस प्रकार भगवान्‌के माननेसे भक्तियोगहो जायगा । ये मेरे हैंइस प्रकार माननेसे जन्म-मरणयोगहो जायगा अर्थात् जन्मो, फिर मरो, मरकर फिर जन्म लोइस तरह जन्म-मरणके साथ सम्बन्ध हो जायगा । आपकी ममता जहाँ रह जायगी, वहीं जन्म होगा । ममता नहीं रहेगी तो जन्म-मरणके चक्रसे मुक्ति हो जायगी । कितनी सरल और बढ़िया बात है !

श्रोताबढ़िया बात तो है, पर होती नहीं !

स्वामीजीहोती नहीं, ऐसी बात नहीं है । आप इसको आज, अभी मान लें तो अभी हो जायगी । आप यह तो मानते ही हैं कि मैं धोखा नहीं देता हूँ और सन्तोंकी, शास्त्रोंकी, गीताजीकी बात कहता हूँ । बड़ी-बूढ़ी माताओंसे पूछो । जब वे छोटी बच्‍ची थीं, तब वे अपने पिताके घरको अपना घर मानती थीं । उस घरमें ममता थी कि यह मेरा घर है । परन्तु विवाह होनेके बाद वे पतिके घरको अपना घर मानने लगीं । ससुरालवाले अपने हो गये । अतः मेरापन बदलना तो आपको आता ही है । ससुरालमें रहते-रहते वह इतनी रच-पच जाती है कि उसको यह खयाल ही नहीं आता कि मैं कभी इस घरकी नहीं थीं । परिवार फैल जाता है, तो बेटे-पोते हो जाते हैं । पोतेका विवाह होता है । और उसकी बहू आकर घरमें खटपट मचाती है तो वह बूढ़ी दादी माँ कहती है कि इस परायी जायी छोकरीने मेरा घर बिगाड़ दियाघर खोयो परायी जायी ! अब उस बूढ़ी माँसे कोई पूछे कि यह तो परायी जायी है, पर आप यहीं जन्मी थीं क्या ? उसको याद ही नहीं कि मैं तो परायी जायी हूँ ! वह यही मानती है कि मैं तो यहाँकी ही हूँ । बोलो, अपनापन बदल गया कि नहीं ? वह परायी जायी छोकरी भी एक दिन कहेगी कि यह मेरा घर है । आज आप उसको भले ही परायी जायी कह दो, पर यह घर भी उसका हो जायगा । माताओ ! जो घर अपना नहीं था, वह घर भी अपना हो गया, फिर भगवान्‌का घर तो पहलेसे ही अपना है ! भगवान्‌ कहते हैं

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।

हम सब-के-सब उस परमात्माके अंश हैं, उस प्रभुके लाड़ले पुत्र हैं । हम चाहे कपूत हों या सपूत, पर हैं प्रभुके ही ।