।। श्रीहरिः ।।

                                                                      




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७७, शुक्रवा
भगवान्‌से अपनापन


पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं होती । ऐसे ही हमारे प्रभु कभी कुमाता-कुपिता नहीं होते । वे देखते हैं कि यह अभी बच्‍चा है, गलती कर दी; परन्तु फिर प्यार करनेके लिये तैयार !

अपि चेत्सुदुराचारो  भजते   मामनन्यभाक् ।

साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥

(गीता ९/३०)

दुराचारी-से-दुराचारी मनुष्य भी यदि भगवान्‌के भजनमें अनन्यभावसे लग जाय कि मैं तो भगवान्‌का हूँ और भगवान्‌ मेरे हैंतो उसको साधु ही मानना चाहिये । वह बहुत जल्दी धर्मात्मा बन जाता है और निरन्तर रहनेवाली शान्तिको प्राप्त हो जाता हैक्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति । (गीता ९/३१) । यह सच्‍ची बात है ।

संसारके हम नहीं हैं, संसार हमारा नहीं हैं । संसारके साथ अपनापन हमने किया है । वास्तवमें तो हम सदासे भगवान्‌के हैं और भगवान्‌ हमारे हैं । हम भले ही भूल जायँ, पर भगवान्‌ हमें भूलते नहीं हैं । हम चाहे भगवान्‌से विमुख हो जायँ, पर भगवान्‌ हमारेसे विमुख नहीं हुए हैं । भगवान्‌ कहते हैंसब मम प्रिय सब मम उपजाए (मानस, उत्तर ८६/२) सब-के-सब मेरेको प्यारे लगते हैं । इसलिये सज्जनो ! हम सब भगवान्‌के लाड़ले हैं, उनके प्यारे हैं !

अर्जुनने पूरी गीता सुननेके बाद क्या कहा ? ‘नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा (१८/७३) मोह नष्ट हो गया और स्मृति मिल गयी, याद आ गयी । जो भूल हो गयी थी, वह याद आ गयी कि मैं तो आपका हूँ । अब क्या करोगे ? तो कहाकरिष्ये वचनं तव आप जो कहोगे, वही करूँगा । मैं तो आपका हूँ ही, पहले भूल गया था, अब वह भूल मिट गयी ।

हम सदासे परमात्माके ही हैं । शरीर संसारसे मिला है । जिन माता-पितासे यह शरीर मिला है, उनकी सब तरहसे सेवा करना, सुख पहुँचाना, आदर करना हमारा कर्त्तव्य है । पर हम स्वयं परमात्माके ही हैं । इस बातको ज्ञानी भक्त प्रह्लादजी जानते थे । पिताजी कहते हैं कि तुम भगवान्‌का नाम मत लो, उनका भजन मत करो; यदि करोगे तो मार दिये जाओगे । परन्तु प्रह्लादजी इस बातसे भयभीत नहीं होते । उनके पिता हिरण्यकशिपुने अपनी स्त्री कयाधूसे कहा कि तू अपने लड़केको जहर पिला दे । कयाधू पतिव्रता थी । उसकी गोदमें प्रह्लाद है और हाथमें जहरका प्याला । माँके द्वारा बच्‍चेको जहर पिलाया जाना बड़ा कठीन काम है । प्रह्लादजी अपनी माँसे कहते हैं कि माँ ! तू मेरेको जहर पिला दे तो तेरे भी धर्मका पालन हो जायगा और मेरे भी धर्मका पालन हो जायगा । प्रह्लादजी जहर पी गये, पर मरे नहीं; क्योंकि उनको भगवान्‌पर पूरा भरोसा था । उन्होंने पिताजीकी आज्ञाको भंग नहीं किया । उनको समुद्रमें डुबाने लगे तो उन्होंने यह नहीं कहा कि मेरेको समुद्रमें क्यों डुबाते हो ? वे वहाँसे बच गये तो उनके ऊपर वृक्ष और पत्थर डाल दिये गये । उनको पहाड़से गिराया गया, हाथीसे कुचलवाया गया, अस्त्र-शस्त्रोंसे काटनेकी चेष्टा की गयी, पर वे मरे नहीं । प्रह्लादजीने कभी यह नहीं कहा कि आप मेरेको मारते क्यों हो ? परन्तु भगवान्‌का भजन नहीं छोड़ा ।