पिताजीने उनको शुक्राचार्यजीके पुत्र शण्डामर्कके पास भेजा ।
वहाँपर वे पढ़ाई नहीं करते । गुरूजी जब बाहर जाते,
तब वे पाठशाला बना देते । वे राजकुमार थे;
अतः सब लड़के उनके कहनेसे भजन करते । गुरुजीने देखा कि प्रह्लादजीने तो पाठशालाको भजनशाला बना दिया;
अतः वे हिरण्यकशिपुके पास जाकर बोले कि महाराज ! आपका लड़का खुद
तो बिगड़ा ही है, दूसरे लड़कोंको भी बिगाड़ रहा है । हिरण्यकशिपुने प्रह्लादजीको बुलाकर पूछा कि तेरी यह खोटी बुद्धि कहाँसे आयी है ?
स्वतः पैदा हुई है कि यहाँ किसीने तेरेको सिखायी है ? प्रह्लादजीने कहा कि पिताजी ! ऐसी बुद्धि न तो स्वतः पैदा होती
है और न इसको कोई सिखा सकता है । यह तो सन्त-महात्माओंकी कृपासे मिलती है । बचपनमें प्रह्लादजीपर नारदजी महाराजकी कृपा हुई थी । प्रह्लादजी जब माँके गर्भमें थे, तब
इन्द्रने आकर लूटपाट की और कयाधूको ले गया । हिरण्यकशिपु उस समय तपस्याके लिये
वनमें गया हुआ था । जब इन्द्र कयाधूको लेकर जा रहा था, तब
रास्तेमें नारदजी मिले । नारदजीने कहा कि इस अबलाको क्यों दुःख दे रहा है ?
इस बेचारीने क्या अपराध किया है ? इन्द्र बोला
कि महाराज ! इसके पेटमें मेरे शत्रु हिरण्यकशिपुका अंश है । उसने अकेले ही हमें
इतना तंग कर दिया है, जब दो हो जायँगे, तब बड़ी मुश्किल हो जायगी ! इसलिए मैं कयाधूको ले जाता हूँ । जब इसका बच्चा जन्मेगा, तब
मैं उसको मार दूँगा, कयाधूको कुछ नहीं करूँगा । नारदजीने कहा
कि इसका जो बच्चा होगा, वह
तेरा वैरी नहीं होगा । नारदजीकी बात राक्षस, असुर,
देवता, मनुष्य सब मानते हैं; क्योंकि वे सन्त जो ठहरे । सन्तोंपर सबका विश्वास होता है । इन्द्रने उनकी बात
मान ली और कयाधूको छोड़ दिया । नारदजीने कयाधूको एक कुटियामें रखा और कहा कि बेटी !
तुम चिन्ता मत करो और यहींपर आनंदसे रहो । जैसे पिताके घर लड़की प्यार-से रहती है, ऐसे
ही वह भी वहाँ रहने लग गयी । नारदजी उसके गर्भको लक्ष्यमें रखकर भगवान्की
कथाएँ सुनाते थे । इसके गर्भमें जो बालक है, वह भगवान्का भक्त
बन जाय—इस भावसे वे सत्संगकी बड़ी अच्छी-अच्छी बातें सुनाते
थे । माता घट रह्यो न लेश नारदके उपदेशको । नारदजीका उपदेश माँको तो याद नहीं रहा, पर प्रह्लादजीने गर्भमें ही उस उपदेशको धारण कर लिया । वे वहींसे भक्त बन गये । भक्त बननेसे उनके हृदयमें यह बात आ गयी कि मैं स्वयं तो वास्तवमें परमात्माका ही हूँ और यह शरीर माता-पिताका है । माता-पिता यदि इस शरीरके टुकड़े-टुकड़े भी करें तो भी मेरेको बोलनेका कोई अधिकार नहीं है; क्योंकि शरीर उनका दिया हुआ है । परन्तु मैं स्वयं साक्षात् परमात्माका अंश हूँ; अतः परमात्मासे हटानेका इनको अधिकार नहीं है । मैं परमात्माकी तरफ लगूँ और यह शरीर माता-पिताकी सेवामें लगे । |